जाड़े की रात बिताने के लिए रैन बसेरे खुले हैं या नहीं, इन्हें नहीं पता। अलबत्ता इसी तरह कंपकंपाते हुए रात बिताना इनकी मजबूरी है। पत्रिका टीम ने शनिवार रात सडक़ किनारे फुटपाथों पर दुकानों के बाहर खुले में रात गुजारते लोगों के हालात का लिया जायजा-
जेएलएन व जनाना अस्पताल, लौंगिया अस्पताल, पड़ाव, आजाद पार्क, नौसर घाटी। जरूरत पडऩे पर यहां अस्थायी रैन बसेरे : केंद्रीय बस स्टैंड, बजरंगगढ़ चौराहा।
ये सुविधाएं : बिस्तर व रजाई, गर्म पानी के लिए गीजर, महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग व्यवस्था।
शहर में 6 स्थायी व जरूरत पडऩे पर स्वयंसहायता समूहों की मदद से दो स्थानों पर अस्थायी रैन बसेरों की व्यवस्था की जाती है। इनमें अधिकतम 300 लोगों के ठहर सकते हैं। लोग अपने पहचान-पत्र दिखाकर रैन बसेरों में ठहर सकते हैं। फुटपाथों पर अक्सर भिखारी और खानाबदोश लोग सोते हैं।