scriptअस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट से मंडराया गंभीर संक्रमण का खतरा | Biomedical waste in hospitals is in danger of serious infection | Patrika News
अजमेर

अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट से मंडराया गंभीर संक्रमण का खतरा

प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में जैविक कचरे के निस्तारण के नहीं हैं प्लांट, नहीं उठता समय पर, निजी अस्पतालों के भी ये ही हालात, निजी फर्मों में तोल में घालमेल

अजमेरOct 03, 2019 / 11:45 pm

CP

अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट से मंडराया गंभीर संक्रमण का खतरा

अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट से मंडराया गंभीर संक्रमण का खतरा

चन्द्रप्रकाश जोशी .

अजमेर. प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों एवं निजी अस्पतालों में ठोस एवं तरल बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण (जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन) कहीं भगवान भरोसे है तो कहीं निजी फर्मों के प्लांट पर निस्तारित होने का दावा किया जा रहा है। मेडिकल कॉलेज एवं निजी अस्पतालों के स्तर पर बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट प्लांट की कहीं व्यवस्था नहीं है। तरल बायो मेडिकल वेस्ट तो शहरों की नालियों एवं सीवरेज लाइनों में पहुंच कर संक्रमण पैदा कर रहा है। वहीं प्रदेश के निजी अस्पतालों में तो समय पर वेस्ट नहीं उठने से संक्रमण का खतरा बना हुआ है। जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के अन्तर्गत प्रदेशभर में सरकारी प्लांट प्रारंभ नहीं हुआ। यहां मध्यप्रदेश एवं राजस्थान की कुछ निजी फर्मों की ओर से प्लांट स्थापित कर मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध सरकारी एवं कुछ निजी अस्पतालों से अपशिष्ट का संग्रहण कर इनका निस्तारण किया जा रहा है। जबकि अधिकांश निजी अस्पताल, निजी क्लिनिक एवं लैब आज भी मात्र रजिस्ट्रेशन करवा कर इतिश्री कर रहे हैं। जहां रजिस्ट्रेशन है वहां प्रतिदिन बायो मेडिकल वेस्ट का उठाव भी नहीं होता है।
Read more: दो शिक्षिकाएं, 5 कक्षा व 107 बच्चे
ऐसे हैं प्रदेश के हालात

अजमेर(Ajmer) : निजी अस्पताल फैला रहे संक्रमण
अजमेर के सेदरिया में निजी फर्म के प्लांट में सरकारी व निजी अस्पतालों के वेस्ट पहुंचता है। रजिस्टर्ड कई अस्पताल हैं मगर प्रतिदिन कचरे का उठाव नहीं होता। इससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। कई निजी अस्पताल खुले में वेस्ट डाल देते हैं। यहां से 6 कचरा संग्रहण बंद गाडिय़ों से प्लांट तक ठोस कचरा पहुंचाया जाता है, जबकि लिक्विड वेस्ट निस्तारण का कोई बंदोबस्त नहीं होने से नाले- नालियों में पहुंच रहा है।
जयपुर (Jaipur): पलंग 50 हजार, निस्तारण की व्यवस्था 24 हजार के लिए
जयपुर में आगरा रोड स्थित खोरी रोताड़ा गांव में बायोवेस्ट निस्तारण का प्लांट नगर निगम की ओर से स्थापित है, क्षमता 24 हजार पलंगों से आने वाले बायो वेस्ट की है। जिसमें सरकारी व निजी दोनों ही तरह के अस्पताल शामिल हैं। जयपुर में इस समय करीब 1 हजार छोटे बड़े निजी अस्पतालों में कम से कम 50 हजार पलंग हैं। जबकि निगम के पास निस्तारण का प्लांट केवल 24 हजार के लिए है।
भीलवाड़ा (Bhilwara): अजमेर भेज रहे वेस्ट
भीलवाड़ा शहर में कोई बायो मेडिकल वेस्ट निस्तारण प्लांट नहीं है। भीलवाड़ा से अजमेर की सेल्स प्रमोटर कंपनी बंद गाड़ी में वेस्ट अजमेर स्थित प्लांट पर लेकर जाती है। सरकारी व निजी अस्पतालों में प्रतिदिन 720 किग्रा वेस्ट निकलता है।
कोटा (Kota) : निस्तारण के प्लांट ही नहीं
कोटा में सरकारी अस्पताल व निजी अस्पताल से होजबीन फर्म की ओर से बायो मेडिकल वेस्ट उठाकर 88 किमी दूर झालावाड़ कंपनी के प्लांट पर निस्तारित किया जाता है। कोटा मेडिकल कॉलेज व बड़े निजी अस्पताल का कोई निस्तारण प्लांट संचालित नहीं है।
जोधपुर (Jodhpur): बरती जा रही है लापरवाही

जोधपुर शहर के सरकारी अस्पतालों में बायोवेस्ट ठेका फर्मों के जरिए नगर निगम के केरू प्लांट के आगे स्थित अरणा फांटा भेजा जाता है। कई बार ठेका फर्मों की लापरवाही से कई दिनों तक अस्पतालों में बायोवेस्ट नहीं उठता। यहां मशीनें समुचित नहीं हैं वहीं प्लांट अपग्रेड नहीं हैं।
सीकर(Sikar). शेखावाटी के सबसे बड़े सरकारी एसके अस्पताल की लैब में लिए जाने वाले खून के नमूने पॉलिथीन में भर लैब के बाहर ही फैंके जा रहे हैं। इन पर श्वान मुंह मारते नजर आते हैं। ये इतने खुंखार होते जा रहे हैं कि जब इन्हें खून नहीं मिलता है, तो अस्पताल में मरीजों को काटने के लिए दौड़ते हैं। राजस्थान पत्रिका ने तीन दिन तक लैब के बाहर नजर रखी, तो ऐसे हृदयविदारक दृश्य देखने को मिले, जिससे मरीज और उनके परिजन रोजाना दो-चार हो रहे थे। एस के अस्पताल में रोजाना डेढ़ सौ से अधिक मरीजों के खून के नमूने लिए जाते हैं।
इनका कहना है
अजमेर के 67 अस्पताल, 71 निजी अस्पताल, क्लिनिक, लैब पंजीकृत हैं, प्रतिदिन 850 किग्रा वेस्ट प्लांट में आता है। वहीं भीलवाड़ा के 57 अस्पताल निजी एवं 42 सरकारी अस्पताल व 82 क्लिनिक व लैब पंजीकृत हैं।
-अनिल जैन, संचालक सेल्स प्रमोटर्स कंपनी, अजमेर

ऐसे निस्तारण का दावा

पीली थैली : कटे मानव व पशुअंग, गॉज, प्लास्टर, खून से सनी कॉटन आदि को 1050 टेम्प्रेचर पर प्लांट में डीजल फायरिंग से जलाकर राख बनाई जाती है, राख पिट्स में एकत्रित होती है, जिसे उदयपुर में मिनरल प्लांट में सप्लाई की जाती है।
लाल बाल्टी : इसमें प्लास्टिक का कचराआईवी सेट, ग्लूकोज की बोतल आदि को प्लांट में डाला जाता है। इसे केमिकल से संक्रमणरहित कर कचर से बारीक टुकड़े किए जाते हैं, बाद में यह प्लास्टिक का टुकड़ा इकाइयों में बिकता है।

Hindi News / Ajmer / अस्पतालों में बायोमेडिकल वेस्ट से मंडराया गंभीर संक्रमण का खतरा

ट्रेंडिंग वीडियो