भरतपुर जिले के वैर तहसील के बजेरा कला में जन्में प्रदीप का परिवार पिछले बीस साल से अजमेर की फायसागर रोड, टीचर्स कॉलोनी में रह रहा है। स्वयं ब्यावर में रहते हैं। उन्होंने बताया कि जन्म के छह माह बाद ही पोलियो से उनके दोनों पैर खराब हो गए। माता पिता और भाई बहिनों ने पूरा ध्यान रखा। चलने फिरने की लाचारी से सबसे बड़ी परेशानी स्कू ल जाने में आई। उनके भाई बहन ही गांव के स्कू ल ले जाते और लेकर आते थे। कई बार तो एेसा भी हुआ कि छुट्टी के बाद घंटो तक उन्हें स्कू ल में ही रहना पड़ता।
यहां हुई शिक्षा पहली से कक्षा आठवीं तक की शिक्षा भरतपुर जिले के गांव बजेरा कला में हुई और उसके बाद पापा दौलतराम शर्मा की अजमेर में नियुक्ति होने के कारण कक्षा ९ से १२ तक की पढ़ाई अजमेर के ओसवाल स्कू ल में हुई। स्नातक स्वयंपाठी छात्र के रूप में २००१ में अंग्रेजी, अर्थशास्त्र व दर्शनशास्त्र विषय में उतीर्ण की। अजमेर के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय सें अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। इसके बाद २००५ में रीजनल कॉलेज, अजमेर से बीएड किया। बारहवीं के बाद से ही कोचिंग १९९८ में बारहवीं कक्षा पास करने के बाद से ही वह नियमित रूप से बच्चों को कोचिंग देते थे। यह सिलसिला नौकरी लगने तक जारी रखा। बीएड,रेलवे व अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए अंग्रेजी विषय को लेकर किताबें भी लिखी हैं।
नहीं भूले वो दिन प्रदीप ने बताया कि उनके जीवन का सबसे खराब दिन वह था जब इंजीनियरिंग कॉलेज के दाखिले में दिव्यांगता बाधक बनी। पढ़ाई में तेज होने के कारण उनके परीक्षा में हमेशा अच्छे नम्बर आते थे। वर्ष १९९८ की इंजीनियर परीक्षा की मेरिट में उनका पहला स्थान था। वह इंजीनियरिंग कॉलेज में इन्टरव्यू के लिए गए लेकिन शारीरिक अक्षमता के कारण उनको प्रवेश से वंचित होना पड़ा। ।
यूं बदली जिंदगी वर्ष २००४ में शिक्षक प्रथम ग्रेड की वैकेन्सी निकली और उन्होंने आवेदन किया। २००६ में परीक्षा परिणाम आया औार सलेक्ट हो गए। २ जनवरी २००७ को नियुक्ति पत्र मिला। वह दिन आज तक नहीं भूले हैं। पहली पोस्टिंग कडे़ल में अंग्रेजी व्याख्याता के रूप में हुई। उसके बाद अजमेर के वैशाली नगर स्कू ल में व्याख्याता और वर्तमान में छावनी गल्र्स स्कू ल में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
कक्षाएं भी लेते हैं प्रदीप न केवल ऑफिस का कामकाम बखूबी कर लेते हैं बल्कि कक्षाएं भी लेते हैं। तिपहिया वाहन से स्कू ल आते हैं और उसके बाद व्हील चेयर पर बैठकर ग्राउंड फ्लोर के ऑफिस तक जाते हैं। इसी चेयर पर बैठकर ग्राउंड फ्लोर की कक्षाओं में अक्सर पढ़ाने भी जाते हैं। प्रथम मंजिल की कक्षाओं पर नहीं पहुंच पाने के कारण वहां का अवलोकन सीसीटीवी कैमरों से करते हैं। उनका कहना है कि अंग्रेजी जैसे विषय की बारिकीयों को सरलता से समझाने के कारण वह जहां भी नियुक्त रहे उस स्कू ल का परीक्षा परिणाम ९० प्रतिशत से ज्यादा रहा है।
जीवन संघर्ष का नाम संघर्ष को ही जीवन मानकर चल रहे प्रदीप का कहना है कि एक शिक्षक के पास असीमित सामथ्र्य होता है। यदि शिक्षक अपनी क्षमताओं व दायित्वों का पूरी निष्ठा, ईमानदारी और समर्पण के साथ उपयोग करे तो चमत्कार हो सकता है। जीवन में मेहनत जितनी कठोर होगी परिणाम उतना ही सुखद होगा।