वडोदरा जिले की करजण तहसील के सगडोल गांव के हरेन्द्रसिंह युवावस्था से ही देश भक्ति के रंग में रंगे हुए हैं। 1974 में एक अखबार में राष्ट्र ध्वज फहराने की सही पद्धति के बारे में एक आलेख प्रकाशित किया गया था। हरेन्द्रसिंह ने आलेख पढ़ा और सरदार भवन में प्रशिक्षण लेने पहुंचे। उन्होंने रमण राणा से कुछ घंटे तक प्रशिक्षण लिया। इसके बाद से उन्होंने लोगों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। इस दौरान उन्होंने सयाजीराव यूनिवर्सिटी में नाट्यशास्त्र की पढ़ाई पूरी की। वर्तमान में सरदार भवन में निदेशक के तौर पर कार्यरत हरेन्द्रसिंह कहते हैं कि हम शैक्षणिक या सामाजिक संस्थाओं में प्रशिक्षण देने का काम करते हैं। विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के आमंत्रण पर वहां जाकर विद्यार्थियों को राष्ट्र ध्वज फहराने के लिए तिरंगे को मोडऩे, सूत की रस्सी को बांधने आदि से अवगत कराते हैं। गैर सरकारी संस्थाओं में ध्वजारोहण के कार्यक्रम आयोजित करने के तरीके, राष्ट्र गान गाने की पद्धति आदि सभी महत्व की बातों से लोगों को अवगत करवा रहे हैं। उनके अनुसार ध्वजारोहण के लिए हमेशा सूत की रस्सी का इस्तेमाल करना जरूरी होता है। हालांकि बर्फीले प्रदेशों में छोटी-छोटी कडिय़ों वाली चेन का इस्तेमाल भी करते हैं।
लोग सही नहीं करते उच्चारण
उनके अनुसार सामान्य रूप से काफी हद तक राष्ट्र गान के समय लोग शब्दों का उच्चारण सही रूप में नहीं करते हैं। सिंधु के बदले सिंध, उत्कल के स्थान पर उच्चछल, बंग के बदले बंगा, तरंग के बदले तरंगा और गाहे के बदले गाये आदि शब्दों को लोग बोलते हैं। लोगों को, विद्यार्थियों को सही शब्दों के उच्चारण का अभ्यास करवाने के लिए वे प्रशिक्षण दे रहे हैं। उनके अनुसार राष्ट्र गान को 52 सेकंड में पूरा करने का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके अलावा हरेन्द्रसिंह करीब 50 वर्ष से सांप्रदायिक सौहार्द-एकता को लेकर वसंत-रजब संभाषण प्रतियोगिता का भी आयोजन कर रहे हैं। वसंत हेगिष्ठ और रजब लाखाणी अहमदाबाद में सांप्रदायिक दंगों के दौरान सदभावना बनाए रखने के लिए शहीद हुए थे।