अहमदाबाद साइबर क्राइम ब्रांच की उपायुक्त (डीसीपी) डॉ. लवीना सिन्हा ने बताया कि 16 नवंबर को शहर के एक बुजुर्ग ने शिकायत दी कि उन्हें वॉट्सएप कॉल कर कहा कि वह दिल्ली पुलिस से बोल रहा है। आरोपी ने फर्जी अरेस्ट वारंट दिखाकर धमकाते हुए दिल्ली पुलिस के एक उच्च अधिकारी बनकर बुजुर्ग से डिजिटल अरेस्ट की बात कही। इसके बाद बयान दर्ज करने के नाम पर बुजुर्ग से बैंक व बैलेंस की जानकारी ली। पैसे का वैरिफिकेशन कराने के नाम पर 6 अलग-अलग बैंक खातों के पैसे बुजुर्ग के ही एक खाते में ट्रांसफर कराए। इसके बाद 1.15 करोड़ रुपए की राशि एक बार ही में ट्रांसफर कर लिए।
राजस्थान के गिरोह की लिप्तता
उपायुक्त ने बताया कि जांच में पता चला कि जिस बैंक खाते में 1.15 करोड़ रुपए ट्रांसफर हुए थे वह अकाउंट राजस्थान के जालौर जिले के खितवाना साखौन निवासी शिवराज जाट के खाते में जमा हुए थे। उसके बाद अलग-अलग बैंक खातों में राशि ट्रांसफर हुई। आरोपियों को बनासकांठा जिले के डीसा में लोकेट किया गया जहां सभी रकम बांटने के लिए इकट्ठा हुए थे। वहां से एक आरोपी शिवराज को पकड़ा गया। दो आरोपी वहां से फरार हो गए, जिन्हें राजस्थान के बालोतरा से पकड़ा। इनमें राजस्थान के बालोतरा जिलेे की सिमदडी तहसील के फूलन गांव निवासी कमलेश कुमार बिश्नोई और जालौर जिले की जायल तहसील के कुवाडखेडा बडी खाटू गांव निवासी नाथूराम जाट शामिल हैं। आरोपियों ने गुजरात में बैंक अकाउंट खुलवाया था। इनके अकाउंट में ठगी की राशि जमा हुई थी।
तीन घंटे बाद हुई शंका, जल्द शिकायत मिलने से 63 लाख बचाए
उपायुक्त ने बताया कि बुजुर्ग को आरोपियों ने 3 घंटे तक डिजिटल अरेस्ट रखा। इस बीच उन्हें शंका हुई तो उन्होंने 1930 पर फोन कर साइबर क्राइम से मदद मांगी, जिससे उनके खाते से ट्रांसफर हुए 1.15 करोड़ में से 63 करोड़ रुपए फ्रीज कर लिए गए। आरोपियों से 11 लाख रुपए जब्त किए हैं। ऐसे में करीब 70 फीसदी राशि रिकवर करने में सफलता मिली है।
पुलिस नहीं करती डिजिटल अरेस्ट
उपायुक्त ने बताया कि कोई भी पुलिस, एजेंसी डिजिटल अरेस्ट नहीं करती है। इसका कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। न ही कोई एजेंसी वैरिफिकेशन के नाम पर या फिर बाद में लौटाने के नाम पर पैसे ट्रांसफर कराती है। पुलिस फिजिकल अरेस्ट करती है। ऐसा कोई भी दावा करे और डराए धमकाए तो थोड़ी देर रुकें, सोचें और फिर समझदारी से कदम उठाएं। फिर भी ठगी हो तो 1930 पर संपर्क करो।