सांझी को पहली बार राधा रानी ने साजाया था। इसका वास्तविक नाम संध्या की देवी है। जब श्री कृष्ण मथुरा छोड़ कर वृन्दावन चले गए थे, तो राधा रानी और गोपियों ने अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में फूल, रंगोली के रंगों और गाय के गोबर आदि को मिलाकर कृष्णा की लीलाओं का चित्रण किया, जो संध्या के समय करने के कारण सांझी कहलायी। श्री जगन्नाथ मंदिर के अध्यक्ष अरविन्द स्वरूप ने बताया कि सांझी ब्रज की एक बहुत ही प्राचीन लोक कला है, जो आज लुप्त होने के कगार पर है। स्वयं राधा रानी गोपियों के साथ मिलकर अश्विन मास के पूरे कृष्ण पक्ष में सांझी बनाया करती थीं। कुछ वर्षों पूर्व तक भी ब्रज के हर घर में संध्या के समय सांझी का निर्माण किया जाता था पर आज आधुनिकता की दौड़ में हम अपनी संस्कृति को भूल चुके हैं।
श्री जगन्नाथ मंदिर के अध्यक्ष अरविन्द स्वरूप ने बताया कि सांझी कला को आज संरक्षण देने की आवश्यकता है। इस अवसर पर केशव अग्रवाल, गौरव बंसल, राहुल बंसल, ओमप्रकाश, अमित मित्तल, मुकेश तिवारी, अमित बंसल, विपिन अग्रवाल आदि मौजूद रहे।