इस कार्यशाला में बोलते हुये डॉ. पीके शर्मा ने बताया कि अमूमन लोगों को जबतक इस रोग की जानकारी होती है, तब तक वे प्राइवेट अस्पतालों में दौड़कर अपना समय बर्बाद कर चुके होते हैं। इस रोग के लिये सरकारी अस्पताल में एक इजेंक्शन है, जो बिलकुल फ्री में लगता है। इसकी कीमत करीब 40 हजार रुपये की होती है। यदि ये इंजेक्शन अटैक के तीन घंटे बाद तक मरीज को लग जाये, तो अटैक का प्रभाव पूरी तरह खत्म हो जाता है। उन्होंने बताया कि मरीज इस रोग को पहचानने में देर करते हैं और अधिकतर मामलों में निजी अस्पतालों में दौड़ लगाते हैं, जबकि जिला अस्पताल आगरा में 24 घंटे ये सेवा जारी रहती है। इसके लिये स्पेशल डॉक्टर की नियुक्ति की गई है, जो वहां उपलब्ध रहते हैं।
डॉ. पीके शर्मा ने बताया कि युवावस्था में अत्यधिक भोग विलास, नशीले पदार्थों का सेवन, आलस्य आदि से स्नायविक तंत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है। सिर्फ आलसी जीवन जीने से ही नहीं, बल्कि इसके विपरीत अति भागदौड़, क्षमता से ज्यादा परिश्रम या व्यायाम, अति आहार आदि कारणों से भी लकवा होने की स्थिति बनती है।
पैरालिसिस के लक्षण आसानी से पहचान में आ जाते हैं। आकस्मिक स्तब्धता या कमज़ोरी ख़ासतौर से शरीर के एक हिस्से में, आकस्मिक उलझन या बोलने, किसी की कही बात समझने, एक या दोनों आंखों से देखने में आकस्मिक तकलीफ़, अचानक या सामंजस्य का अभाव, बिना किसी ज्ञात कारण के अचानक सरदर्द या चक्कर आना। चक्कर आने या सरदर्द होने के दूसरे कारणों की पड़ताल के क्रम में भी पक्षाघात का निदान हो सकता। ये लक्षण संकेत देते हैं कि पक्षाघात हो गया है और तत्काल चिकित्सकीय देखभाल की ज़रूरत है।