फिर इस अंदाज से बाहर आई,
देखो ऐ साकिनान- ए -खित्ता -ए- खाक
कि जमीं हो गई हैं, सर ता सर
सब्जे को जब कहीं जगह न मिली।
सब्जा ओ गुल के देखने के लिए
है हवा हमें शराब की तासीर
क्यूं न दुनिया को हो खुशी गालिब,
कलकत्ते का जो जिक्र किया तूने हमनशीं,
वो सब्जा जार हाये मुतर्रा कि है गजब,
सब्रआज्मा वो उन की निगाहें कि यक नजर
वो मेवा हाये ताजा ओ शीरीं कि वाह -वाह,
है बस कि हर इक उनके इशारे में निशां और
या रब वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
तुम शहर में हो तो हमें क्या गम, जब उठेंगे
हरचंद सुबुक दस्त हुए बुतशिकनी में
है खून ए जिगर जोश में दिल खोल के रोता
मरता हूं, इस जावा पे हरचंद सर उड़ जाये,
लोगों हो है खुर्शीद ए जहां ताब का धोका
लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दाम चैन
पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
हुई ताखीर तो कुछ बाइस ए ताखीर भी था,
तुम से बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला।
कि हुये हैं मेहर ओ माह तमाशाई
इस को कहते हैं आलमा आराई
रू कश ए सतहे चर्खे मीनाई
बन गया रू ए आब पर काई
चश्म ए नर्गिस को दी बीनाई
बादा नोशी है बादा पैमाई
शाह ए दीदार ने शिफा पाई
वो नाजनीं बुतान ए खुदआरा कि हाये हाये
ताकतरूबा वो उनका इशारा कि हाये हाये
वो बादा हाये नाब ए गवाना कि हाये हाये करते हैं मुहब्बत तो गुजरता है गुमां और
दे और दिल उनको जो न दे मुझको जुबां और
ले आयेंगे बाजार से जाकर दिल- ओ -जां और
हम हैं तो अभी राह में हैं संग ए गिरां और
होते कई जो दीदा ए खूं नाब फिशा और
जल्लाद को लेकिन वो कहे जायें कि हां और
हर रोज दिखाता हूं मैं इक दाग ए निहां और
करता जो न मरता कोई दिन आह ओ फुंगा और
रुकती है मेरी तबह तो होती है रवां और
कहते है कि गालिब का है अंदाज ए बयां और