जम्मू एवं कश्मीर में धारा 370 को लेकर डॉ. आंबेडकर के बारे में बड़ा खुलासा, देखें वीडियो
-जम्मू एवं कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने दी जानकारी
-25 नवम्बर, 1949 को ही जम्मू एवं कश्मीर विलय भारत में हो गया था
-70 साल बाद 5 अगस्त, 2019 को फिर वही काम करना पड़ा
आगरा। जम्मू एवं कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर (ashutosh bhatnagar) का कहना है कि कश्मीर कोई समस्या नहीं है। वास्तव में कश्मीर देश की बहुत सी समस्याओं का समाधान है। उन्होंने जम्मू एवं कश्मीर (Jammu and Kashmir) से धारा 370 (Article 370) को लेकर भारत के तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर (Dr Bhim rao Ambedkar) के बारे में बड़ा खुलासा किया।
कल्पना लोक का परिणाम श्री भटनागर आगरा साहित्य उत्सव 2019 एवं राष्ट्रीय पुस्तक मेला में ‘कश्मीरः धारा 370 से पहले और अब’ विषयक संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि 1947 में भारत का विभाजन हुआ। नए देश का गठन हुआ। कुछ लोगों का लगता था कि उनके सपनों की जगह मिल गई है। इसलिए उन्होंने वहां जाने का फैसला किया। कुछ लोगों को लगा कि यह हमारे पुरखों की धरती है, इसलिए यहां रहने का फैसला किया। इस कारण समाज में समरसता का भाव आया। जम्मू कश्मीर के बारे में जो लोग निर्णय करने की स्थिति में थे, उनके मन में बहुत सारे प्रश्न थे। उन्हें भारत की समझ नहीं थी। गलत व्याख्या अंग्रेजों ने पढ़ाईं। इसका नतीजा हुआ कि कश्मीर के बारे में ऐसे सवाल खड़े होने लगे जो किसी प्रांत के बारे में नहीं थे। कल्पना लोक में विचरण करते रहे कि जम्मू कश्मीर के लोग भारत साथ नहीं रहना चाहते हैं, संविधान में आस्था नहीं है, जबकि यह सच नहीं था। पूरी दुनिया में यह खड़ा हो गया कि भारत से कुछ अलग जम्मू एवं कश्मीर है। सच यह है कि भारत हमेशा से एक था और जम्मू कश्मीर एक हिस्सा था। नौ हजार साल से जम्मू कश्मीर में जो समाज है, उसके डीएनए के संबंध दक्षिण भारत से हैं।
ये जानना जरूरी उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के आने से पहले जम्मू एवं कश्मीर था। 370 जाने के बाद भी जम्मू कश्मीर है। 370 वास्तव में हटी नहीं है, यह है और इसके स्वभाव में परिवर्तन आया है। 26 जनवरी, 1950 को धारा 370 आई। भारत स्वतंत्र हुआ 15 अगस्त 1947 को। पाकिस्तान बना 14 अगस्त, 1947 को। 26 अक्टूबर, 1947 को जम्मू कश्मीर का विलय भारत में हुआ। ढाई साल बाद 370 आया। पांच अगस्त, 2019 से पहले अनुच्छेद 370 कह रहा था कि जम्मू कश्मीर के संबंध में भारत का संविधान जम्मू कश्मीर की बिना विधानसभा की सहमति के लागू नहीं होगा, चाहे कोई आदेश हो जाए। पांच अगस्त, 2019 को 370 में संशोधन कर दिया गया। भारत का संविधान जैसे देश के बाकी राज्यों में लागू है, वैसे ही जम्मू एवं कश्मीर में पूरा का पूरा लागू है।
25 नवम्बर, 1949 को ही हो गया था विलय 25 नवम्बर, 1949 को देश की सभी रिसायतों ने अपने हस्ताक्षरों से आदेश जारी किया कि भारत का संविधान पूरा का पूरा स्वीकार करते हैं। जम्मू कश्मीर के राज्य प्रमुख डॉ. कर्ण सिंह ने भी यह आदेश जारी किया। 25 नवम्बर, 1949 के इस आदेश को लेकर ऐसा माया जाल रचा कि कुछ अलग है। आपस की बातचीत को पूरे देश और जम्मू एवं कश्मीर पर थोप दिया। जम्मू एवं कश्मीर की जनता 70 साल तक भारत के संविधान के अच्छे पहलुओं का लाभ उठान से वंचित रही। धारा 35ए 1954 में लागू हुई। जो काम 25 नवम्बर, 1949 को किया था, वही काम पांच अगस्त, 2019 को करना पड़ा। पांच अगस्त, 1952 को संसद में ऐसा ही बिल आया, जिसमें प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया गया। 1952 में समस्या हल करने के लिए धन्यवाद दे दिया गया तो 70 साल से क्या चल रहा था।
70 साल तक गुमराह किया जुलाई में उमर अब्दुल्ला ने कहा कि 370 हटाया तो भारत से संबंध समाप्त हो जाएगा। दूसरी महिला मुख्यमंत्री ने कहा कि खून की नदियां बह जाएँगी। 370 में परिवर्तन हो गया, न भारत से संबंध समाप्त हुआ न खून की एक भी बूंद पही। यानी कि 70 साल तक गुमराह किया गया। वहां के लोगों का जीवन आज भी वैसा ही है। अब उन्हें संविधान प्रदत्त अधिकार मिल गए। विडम्बनाओं से हम बाहर आ गए हैं।
आंबेडकर ने धारा 370 को संसद में नहीं रखा संविधान की ड्राफ्ट कमेटी के अध्यक्ष डॉ भीमराव आंबेडकर थे। वे प्रत्येक धारा को संविधान पीठ और लोकसभा में रखते थे। प्रत्येक प्रश्न का उत्तर देते थे। कश्मीर में धारा 370 लाने पर भारत के तत्कालीन कानून मंत्री डॉ. आंबेडकर ने इसे लोकसभा में रखने से मना कर दिया। किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। आयंगर ने ही सवालों के जवाब दिए। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि भारत संघ है। उनका कहना था कि कनाडा के संविधान से यूनियन शब्द लिया है, अमेरिका में फैडरल है, जो नहीं लिया है। फैडरल में कुछ राज्य आपस में समझौता करते देश बन जाते हैं। भारत हजारों साल है, वे किसी समझौत से नहीं बना है। विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने से भारत नहीं हो गया, यह पहले से था। राजाओं ने अपने अधिकार छोड़कर संविधान को अंगीकार कर लिया है। 562 राजाओं ने बिना शर्त के हस्ताक्षर किए। यह 1935 से चला आ रहा था।
विषय प्रवर्तन संगोष्ठी की अध्यक्षता आरएसएस के विभाग संघचालक हरिशंकर शर्मा ने की। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. सुगम आनंद ने ने विषय प्रवर्तन किया। आरएसएस के क्षेत्र प्रचार प्रमुख पदम ने कहा कि हमें देश की भलाई के लिए कार्य करना है। जम्मू कश्मीर पहले से भारत का अंग है और हमेशा रहेगा। संचालन पत्रकार मधुकर चतुर्वेदी ने किया। गोष्ठी के संयोजक थे आरएसएस के विभाग प्रचारप्रमुख मनमोहन निरंकारी। धन्यवाद ज्ञापन पुस्तक मेले का मुख्य संयोजक डॉ. अमी आधार निडर ने किया।
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