ऑफिस से लौटकर मुदित रोज की तरह सोफे में धंसा चुपचाप बैठा था। तृप्ति पानी लेकर आई और उसे इस तरह बैठा देखकर बगल में बैठते हुए सौम्यता से बोली, “मुदित, क्या बात है, कुछ दिनों से परेशान दिख रहे हैं आप..पूछती हूँ टाल देते हैं.. प्लीज बताइए.. शायद कुछ मदद कर सकूँ।” हाँलाकि तृप्ति को उम्मीद कम थी कि मुदित कुछ बताएगा फिर भी उसने मुदित की हथेली अपनी हथेलियों में रखते हुए कहा,”कह देने से मन हल्का हो जाता है..”।
इस बार मुदित ने तृप्ति की ओर देखा। गहरी साँस ली और हल्के से बोला- “तुम कहती हो कि तुम मेरी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हो?” आँखों में प्रश्न भाव लिए मुदित तृप्ति के चेहरे पर नजरें गड़ाए बैठा था। इस सवाल से अचकचाई तृप्ति ने मुस्कराकर कहा- “आपको मेरे प्यार और समर्पण पर कोई शक है क्या? हाँ, मैं आपकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हूँ।”
इस बार मुदित ने अटकते हुए कुछ बेशर्म शब्दों को मुँह से निकाला-” मैं सहकर्मी रिया से प्यार करता हूँ और वो भ। हम दोनों शादी करना चाहते हैं, तुम समझ रही हो न?”
बात पूरी होने तक तृप्ति मुदित का हाथ छोड़ चुकी थी। आँखे डबडबा रही थीं और रक्तचाप गिरने की वजह से शरीर काँप रहा था। वो उठी और अपने कमरे में बंद हो गई। ये क्या हुआ? आखिर क्यों? इतना प्रेम और समर्पण फिर भी ऐसी नियति? ये वही मुदित है जो उसके जॉब करने की बात पर बोला था कि तुम्हें मर्दों के साथ रहने का ज्यादा शौक है क्या और उच्च शिक्षित तृप्ति ने अपनी महात्वाकांक्षाओं को तिलांजलि देकर घर को और मुदित के जीवन को सँवारने में खुद को खुशी-खुशी व्यस्त कर लिया। और आज? तृप्ति की आँखें रो-रोकर सूज गयीं थीं। किंकर्तव्यविमूढ़ तृप्ति का दिमाग शून्य हो चुका था। तृप्ति ने ब्लेड उठाया और कलाई पर रखा ही था कि उसे नन्हे सोमू का ख्याल आ गया जो वहीं गहरी नींद में सो रहा था। एक पल में होता हादसा बच गया।
तृप्ति ने अगले ही पल दरवाजा खोला उसके हाथ में एक सूटकेस था। मुदित चुपचाप खड़ा था। तृप्ति ने उसे सूटकेस पकड़ाते हुए दृढ़ता से कहा- “हाँ आपकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकती हूँ। आपको आजाद कर रही हूँ। अपनी प्रेमिका के साथ चाहे जहाँ जाकर रहो। ये मकान मेरे नाम पर लिया गया था तो लीगली इसकी मालकिन मैं हूँ और हाँ वो दोनों फ्लैट भी मेरे ही हैं। ये कार की चाबी यहीं रखते जाना। मेरे पापा ने दी है। अब आप जा सकते हैं।”
अवाक खड़ा मुदित घर से निकल लिया। उसे शांत सौम्य तृप्ति से कुछ और ही उम्मीद थी। दो घंटे बाद ही मुदित वापस दरवाजे पर था। “तृप्ति, मुझे माफ कर दो प्लीज” फूटफूटकर रोते हुए मुदित कहता जा रहा था- “वो रिया मौकापरस्त निकली। उसने मुझसे संबंध खत्म कर लिया मुझे इस हाल में देखकर। मैंने क्या नहीं किया उसके लिए और वो..”।
तृप्ति ने दरवाजा खोला और अंदर जाने लगी। पीछे-पीछे मुदित माफी माँगते हुए अंदर आ गया। “माफ कर दो न मुझे? मैं भटक गया था”। “मौकापरस्त तो तुम भी हो मुदित पर मैं तुम्हारे जैसी नहीं हूँ। तुम इस घर में मेरे साथ तो रहोगे पर अब मेरा प्यार, समर्पण और भावनाएं तुम्हें नहीं मिलेंगी। तुम अब मेरे पति नहीं हो। मेरा पति उसी दिन खो गया था जब उसके मन में किसी और के लिए आकर्षण पैदा हुआ। अब तुम सिर्फ़ एक परित्यक्त हो।” कहकर तृप्ति सोमू को लेकर अपने कमरे में चली गई।
–अंकिता, सदस्य, आगरा राइटर्स क्लब
Hindi News / Agra / प्रत्येक ‘पति पत्नी और वो’ को जरूर पढ़नी चाहिए ये लघु कथा