यह पुरातात्विक खजाना है सिकंदरपुर गांव में। पोइया घाट से पक्की सड़क गई है सिंकदरपुर गांव की ओर। यह गांव करीब एक किलोमीटर तक फैला हुआ है। इसी गांव में एक पुराना गुम्बद है, जिसे स्थानीय लोग ‘गुम्मट’ कहते हैं। पत्रिका टीम ने जब इस गुम्बद को देखा तो चौंकना स्वाभाविक था। यह गुम्बद मुगलकालीन है। मतलब 300 से 400 साल पुराना है। द्विस्तरीय है। अष्टकोणीय है। चारों ओर से प्रवेश द्वार हैं। ऊपर तक पहुंचने का रास्ता है, जो अब दिखाई नहीं देता है।
यह गुंबद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित नहीं है। इसलिए उसका इसकी ओर कोई ध्यान नहीं है। इस पुरातात्विक खजाने को कंडों से ढक दिया गया है। इसके अंदर कंडों का भंडारण कर दिया गया है। ककइया ईंटें निकल गई हैं। प्लास्टर झड़ रहा है। छत पर काई जमा है। पौधे उग आए हैं। इसके साये में लुहार बैठता है।
इसकी महत्ता से स्थानीय लोग पूरी तरह अनजान हैं। बुजुर्गे बाबूलाल ने बताया कि गुम्मट बहुत पुराना है। मुसलमानों के समय का है। वे यह भी कहते हैं कि पहले इस गांव का नाम बहादुर खां था, जो अब बहादुरपुर हो गया है। गांव में निषाद रहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि इस गुम्मट के बारे में अपने दादा और परदादाओं से सुनते आ रहे हैं। पुरातत्व विभाग का कोई भी कर्मचारी या अधिकारी इस गुम्मट को देखने नहीं आया है।
ग्रामीण चाहते हैं कि गुम्मट का रखरखाव हो जाए, ताकि लोग इसे देखने आएं। उन्होंने कहा- अभी तो हमारे गांव में कोई नहीं आता है। जब आगरा बैराज बनना शुरू हुआ था, तब अधिकारी आया करते थे। आगरा बैराज पर काम बंद हो गया तो यहां अफसरों का आना भी बंद हो गया।