ज्योतिषाचार्य डॉ. अरबिंद मिश्र के मुताबिक गणेशोत्सव को गणपति जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जा जा है। गणपति जी का जन्म दोपहर में हुआ था, इसलिए उनकी पूजा के लिए भी दोपहर का वक्त श्रेष्ठ होता है। इस बार 13 सितंबर को चतुर्थी तिथि पूरे दिन रहेगी लिहाजा किसी भी समय पूजन व स्थापना कर सकते हैं। लेकिन अगर सवश्रेष्ठ मुहूर्त की बात करें तो ये 11 बजकर 08 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्य का कहना है कि त्योहार मनाने के साथ हमें प्रकृति का भी ध्यान रखना चाहिए इसलिए गणपति जी मिट्टी की मूर्ति लाएं। ताकि विसर्जित करने पर ये पानी में घुल जाए और इससे किसी जल जीव को नुकसान न पहुंचे। घर लाकर मूर्ति को ईशानकोण यानी उत्तर—पूर्व दिशा में ऐसे स्थापित करें कि गणपति की मूर्ति का मुख दक्षिण में रहे। दक्षिण दिशा में राक्षसों का वास माना जाता है और गणपति शुभता का प्रतीक हैं। ऐसा करने से संकट और विघ्न नहीं आते। गणपति उनसे रक्षा करते हैं। स्थापना करने से पहले उस स्थान पर स्वास्तिक बनाएं और पीले चावल बिछाएं। कलश ईशानकोण में स्थापित करें व दीपक को अग्निकोण में रखें। नवग्रह भी बनाएं। पूजा के दौरान सभी देवी देवताओं, नदियों, पितृों और नवग्रह आदि का आवाहन करके पूजा करें। गणपति बप्पा को पान के पत्ते पर बूंदी या बेसन के लड्डू और दूब घास रखकर भोग लगाएं और जोरदार ढंग से आरती गाकर उनका स्वागत करें।
कहा जाता है गणपति को मोदक बहुत पसंद हैं, लेकिन इसके पीछे की कहानी को लोग नहीं जानते। दरअसल इसको लेकर गणेश और माता अनुसुइया की कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि एक बार गणपति भगवान शिव और माता पार्वती के साथ अनुसुइया के घर गए। उस समय गणपति, भगवान शिव और माता पार्वती तीनों को काफी भूख लगी थी तो माता अनुसुइया ने भोलेनाथ से कहा कि मैं पहले बाल गणेश को भोजन करा दूं, बाद में आप लोगों को कुछ खाने को देती हूं। वह लगातार काफी देर तक गणपति को भोजन कराती रहीं, लेकिन फिर भी उनकी भूख शांत नहीं हो रही थी, इससे वहां उपस्थित सभी लोग हैरान थे। इधर भोलेनाथ अपनी भूख को नियंत्रित किए बैठे थे। आखिर में अनुसुइया ने सोचा कि उन्हें कुछ मीठा खिलाया जाए। भारी होने के कारण मीठे से शायद गणपति की भूख मिट जाए। ये सोचकर उन्होंने गणेश भगवान को मिठाई का एक टुकड़ा दिया, जिसको खाने के बाद उन्होंने जोर से एक डकार ली और उनकी भूख शांत हो गई। उसी समय भोलेनाथ ने भी जोर जोर से 21 बार डकार ली और कहा उनका पेट भर गया है। बाद में देवी पार्वती ने अनुसृइया से उस मिठाई का नाम पूछा। तब माता अनुसुइया ने कहा कि इस मिठाई को मोदक कहते हैं। तब से भगवान गणेश को 21 मोदक का भोग लगाने की परंपरा शुरू हो गई। माना जाता है कि ऐसा करने से गणपति के साथ—साथ सभी देवताओं का पेट भरता है और वे प्रसन्न होते हैं।
गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा देखने से मना किया जाता है। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है कि एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे। चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा। जो तुम्हें देखेगा वह कलंकित हो जाएगा। इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए। तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब देवताओं ने विनती की कि आप चंद्र को श्राप मुक्त कर दो। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं। भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा। इसलिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके। ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है। इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है।