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आगरा

40 दिन में बनी ईदगाह मस्जिद, साल में सिर्फ दो बार होती है नमाज

ईदगाह मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने 1674 में कराया था। 344 साल पुरानी इस मस्जिद की खासियत है इसका विशाल आकार।

आगराJun 14, 2018 / 09:34 am

Bhanu Pratap

ईदगाह आगरा

ईदगाह

स मस्जिद की खासियत है इसका विशाल आकार।

आगरा। कुतलूपुर मोहल्ले में ईदगाह मस्जिद है। इसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने 1674 में सिर्फ 40 दिन में कराया था। 344 साल पुरानी इस मस्जिद की खासियत है इसका विशाल आकार। दूसरी खासियत यह भी है कि ईदगाह में साल में सिर्फ दो बार ईद के मौके पर ही नमाज होती है। इस बार ईद का त्योहार 15 जून को है। इसलिए सारी तैयारियां कर ली गई हैं। ईदगाह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित स्मारक है।
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किसने किया उद्धार

देखरेख के अभाव में ईदगाह मस्जिद बेकार हो गई थी। सन 1876 ईसवी में रामपुर के नवाब अली खां ने इसकी मरम्मत कराई। फिर 1940 ईसवी में केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग ने ईदगाह के उत्तरी भाग की मरम्मत कराई। छत की मरम्मत में तब 11,574 रुपये खर्च हुए थे। ईदगाह के बाहर खुला मैदान है। इसकी दीवारें इतनी ऊंची हैं कि पास से देखने के लिए सिर ऊंचा करना पड़ता है।
विशेषता

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व पुस्तकालय अध्यक्ष डॉ. राधेश्याम द्विवेदी ने बताया कि मस्जिद 159 फीट लम्बी तथा 40 फीट चौड़ी है। यह लाल बलुए पत्थरों से निर्मित है। मस्जिद के चारों कोनों में छतरियां बनी हुई हैं। इस मस्जिद की मुख्य दीवार छह स्तम्भों पर टिककर 5 या 7 फीट ऊंचे क्रॉस के मेहराब वाली जालियों से युक्त है। मस्जिद के प्रत्येक कोनों पर एक-एक अष्टभुजाकार मीनारें व बुर्जियां बनी हुई हैं। सामने का केन्दीय प्रवेश द्वार 23 फीट लम्बा है। सामने की दीवार 9 फीट 3 इंच मोटी है। ताज के छज्जे के प्रत्येक कोने पर या पश्चिमी तरफ एक पतला नाल या दण्ड है। उसके ऊपर एक सुन्दर बुर्जी बनी हुई है। इन दोनों नालों पर गुलदस्ता बना हुआ है, जो बुर्जियों के कारण दूर से ही स्पष्ट दिखाई देता है।
नमाज की तैयारी

15 जून को ईद की नमाज के लिए तैयारी पूरी कर ली गई है। ईदगाह के बाहर कच्चा मैदान है, जिसे साफ किया गया है। यहीं पर विभिन्न राजनीतिक दल अपने पंडाल लगाते हैं। ईद की नमाद अदा करके लौटने वाले मुस्लिमों से गले मिलकर ईद की बधाई देते हैं। इस कार्य में समाजवादी पार्टी और पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी सबसे आगे रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से अल्पसंख्यक मोर्चा ही बधाई देने पहुंचता है। भाजपा के अन्य नेता प्रायः नहीं जाते हैं।

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