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Bakrid 2017: जानिए बकरा ईद पर क्यों जानवर को खिला-पिला कर हलाल करते हैं?

मान्यता के मुताबिक Bakrid के दिन बलि देने के भी कई नियम हैं। जानें उन नियमों के बारे में।

आगराAug 31, 2017 / 11:35 am

suchita mishra

Bakrid

Bakrid

इस्लाम धर्म में दो बार Eid मनाई जाती है। एक है मीठी Eid और दूसरी Bakrid। जिसे बकर ईद, बकरा ईद या Eid-ul-zuha नाम से भी जाना जाता है। वहीं मीठी ईद को Eid-ul-Fitr भी कहा जाता है। मीठी ईद रमजान के बाद आती है इसलिए इस दिन सबसे पहले मीठे के रूप में सेवइयां खाने का चलन है। इसके दो महीने बाद बकरीद का त्योहार आता है। इस बार बकरीद 2 सितंबर को मनाई जाएगी। बकरीद के दिन बकरा, ऊंट आदि की बलि दी जाती है। इसके लिए उन्हें पहले खिला पिला का हष्टपुष्ट बनाया जाता है फिर बकरीद के दिन उसकी बलि दी जाती है। आइए जानते हैं कि बकरीद के दिन ऐसा क्यों किया जाता है?
ये है मान्यता
बकरीद को कुर्बानी का दिन कहा जाता है। इसको लेकर एक कहानी प्रचलित है। इब्राहीम अलैय सलाम नामक एक व्यक्ति थे उनकी कोई संतान नहीं थी। काफी मिन्नतों के बाद उन्हें एक पुत्र इस्माइल प्राप्त हुए जो बाद में पैगंबर बने। इस्माइल उन्हें दुनिया में सर्वाधिक प्रिय थे। एक दिन इब्राहिम को अल्लाह ने स्वप्न में कहा कि उन्हें उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी चाहिए। वे समझ गए कि अल्लाह इस्माइल की कुर्बानी मांग रहे हैं। एक तरफ बेटे का प्रेम था तो दूसरी तरफ अल्लाह का हुक्म। लिहाजा वे कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। कुर्बानी देते समय इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उनकी ममता न जागे। जैसे ही वे अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माइल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया। कुर्बानी के बाद उन्होंने आंखों से पट्टी हटाई तो देखा इस्माइल सामने खेल रहा है और नीचे मेमने का सिर कटा हुआ है। तब से इस पर्व पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया।
कुर्बानी के हैं कुछ नियम
कुर्बानी के लिए बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। लेकिन भारत में इनका चलन काफी कम है। इसके अलावा कुर्बानी के कुछ नियम हैं जैसे उस पशु को कुर्बान नहीं किया जा सकता जिसको कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो, सींग या कान का भाग टूटा हो। शारीरिक रूप से दुबले-पतले जानवर की कुर्बानी भी कबूल नहीें की जाती। बहुत छोटे बच्चे की बलि नहीं दी जानी चाहिए। कम-से-कम उसे एक साल या डेढ़ साल का होना चाहिए। कुर्बानी हमेशा ईद की नमाज के बाद की जाती है और मांस के तीन हिस्से होते हैं। एक खुद के इस्तेमाल के लिए, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा संबंधियों के लिए। वैसे, कुछ लोग सभी हिस्से गरीबों में बांट देते हैं। इसके अलावा ईद के दिन कुर्बानी देने के बाद गरीबों को दान पुण्य भी करना चाहिए।

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