बकरीद को कुर्बानी का दिन कहा जाता है। इसको लेकर एक कहानी प्रचलित है। इब्राहीम अलैय सलाम नामक एक व्यक्ति थे उनकी कोई संतान नहीं थी। काफी मिन्नतों के बाद उन्हें एक पुत्र इस्माइल प्राप्त हुए जो बाद में पैगंबर बने। इस्माइल उन्हें दुनिया में सर्वाधिक प्रिय थे। एक दिन इब्राहिम को अल्लाह ने स्वप्न में कहा कि उन्हें उनकी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी चाहिए। वे समझ गए कि अल्लाह इस्माइल की कुर्बानी मांग रहे हैं। एक तरफ बेटे का प्रेम था तो दूसरी तरफ अल्लाह का हुक्म। लिहाजा वे कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। कुर्बानी देते समय इब्राहिम ने आंखों पर पट्टी बांध ली ताकि उनकी ममता न जागे। जैसे ही वे अपने बेटे को कुर्बान करने लगे, वैसे ही फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन ने बिजली की तेजी से इस्माइल अलैय सलाम को छुरी के नीचे से हटाकर उनकी जगह एक मेमने को रख दिया। कुर्बानी के बाद उन्होंने आंखों से पट्टी हटाई तो देखा इस्माइल सामने खेल रहा है और नीचे मेमने का सिर कटा हुआ है। तब से इस पर्व पर जानवर की कुर्बानी का सिलसिला शुरू हो गया।
कुर्बानी के लिए बकरे के अलावा ऊंट या भेड़ की भी कुर्बानी दी जा सकती है। लेकिन भारत में इनका चलन काफी कम है। इसके अलावा कुर्बानी के कुछ नियम हैं जैसे उस पशु को कुर्बान नहीं किया जा सकता जिसको कोई शारीरिक बीमारी या भैंगापन हो, सींग या कान का भाग टूटा हो। शारीरिक रूप से दुबले-पतले जानवर की कुर्बानी भी कबूल नहीें की जाती। बहुत छोटे बच्चे की बलि नहीं दी जानी चाहिए। कम-से-कम उसे एक साल या डेढ़ साल का होना चाहिए। कुर्बानी हमेशा ईद की नमाज के बाद की जाती है और मांस के तीन हिस्से होते हैं। एक खुद के इस्तेमाल के लिए, दूसरा गरीबों के लिए और तीसरा संबंधियों के लिए। वैसे, कुछ लोग सभी हिस्से गरीबों में बांट देते हैं। इसके अलावा ईद के दिन कुर्बानी देने के बाद गरीबों को दान पुण्य भी करना चाहिए।