भारत छोड़ो आंदोलन की आग सुलग रही थी। एक दहशत का माहौल था। रात में बैठकों का दौर चलता था। इस बीच अंगूरी देवी जैन के निर्देश में थाना छत्ता में बम फेंका गया। टेलीफोन व्यवस्था भी भंग करा दी गई। टूंडला स्टेशन पर बोगियां जला दी गईं। महिलाओं द्वारा उठाए गए इस कदम ने अंग्रेज अधिकारियों के होश उड़ा दिए। अंगूरी देवी 1941 से 1944 तक लगातार कांग्रेस प्रचार और महिला संगठन की अगुवानी करती रहीं।
अंगूरी देवी जैन के अलावा वनका बस्ती लोहामंडी की कमला शर्मा ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 15 फरवरी 1943 को एक वर्ष कैदी की सजा पाई। तीन अगस्त 1943 को उन्हें रिहा कर दिया गया। वहीं 27 सितंबर 1930 में पार्वती देवी के नेतृत्व में दयालबाग में दिए गए धरने में महिलाओं ने जिस शौर्य और धैर्य का परिचय दिया, वह स्वतंत्रता के इतिहास में स्मरणीय रहेगा। आगरा क्लॉथ स्टोर पर धरना देते समय दफा 108 में इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। 1942 में भारत छोड़ों आंदोलन में इन्हें फिर गिरफ्तार किया गया।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रवर्तक जगन प्रसाद रावत की पत्नी सत्यवती रावत पति के साथ 1940 से राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा चलाये जाने वाले आंदोलनों से जुड़ गईं। 1942 को भारत छोड़ों आंदोलन पूरा परिवार जेल में था। 13 फरवरी 1943 को पुत्री सरोग गौरिहार के साथ राष्ट्रीय झंडा लेकर जूलूस निकाला। इस वजह से इन्हें एक वर्ष कारावास मिला।