कश्मीर पर कब्जे के बाद भी चीन के प्रति भारत नरम और पाकिस्तान के प्रति सख्त, आखिर क्यों? देखें वीडियो
-जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर ने खोले कई रहस्य
-पाक अधिकृत कश्मीर में हमारे 50 लाख नागरिकों का उत्पीड़न किया जा रहा
-चीन के कब्जे वाले कश्मीर में छह गांव और 1000 आबादी लेकिन तैयारी पूरी
डॉ. भानु प्रताप सिंह आगरा। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र दशकों से कश्मीर की वास्तविक समस्या को लेकर पूरे देश में वातावरण बना रहा था। कश्मीर, पाक अधिकृत कश्मीर (Pak occupied Kashmir) , चीन अधिकृत कश्मीर, ऐतिहासिक तथ्य, कश्मीर का सामरिक महत्व, पूरा कश्मीर मिलने पर सड़क मार्ग से यूरोप तक जाने का रास्ता, यूरेनियम भंडार आदि को लेकर नागरिकों के बीच गोष्ठियां कीं। देश में वातावरण बनाया। इसका प्रतिफल यह हुआ कि केन्द्र सरकार ने पांच अगस्त, 2019 को जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 (Article 370) और 35ए को समाप्त कर दिया। जम्मू-कश्मीर अध्ययन केन्द्र के निदेशक आशुतोष भटनागर (Ashutosh Bhatnagar) कहते हैं कि सिर्फ इससे कश्मीर की समस्या का समाधान नहीं हो जाता है। अभी बहुत कुछ करना बाकी है। पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) में हमारे 50 लाख नागिरकों का उत्पीड़न किया जा रहा है। उन्होंने भारत (India) की पाकिस्तान (Pakistan) के प्रति अधिक सख्ती और चीन (China) के प्रति कम सख्ती का रहस्य भी बताया। आगरा कॉलेज मैदान (Agra college ground) पर चल रहे राष्ट्रीय पुस्तक मेला (National Book Fair) में आए आशुतोष भटनागर ने पत्रिका से लम्बी बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंशः-
पत्रिकाः जम्मू एवं कश्मीर से धारा 270 हटाने में जम्मू कश्मीर अध्ययन केन्द्र की क्या भूमिका है? आशुतोष भटनागरः कोई भूमिका नहीं है। पत्रिकाः फिर आप जो इतना काम कर रहे हैं, वह बेकार है?
आशुतोष भटनागरः हमने जो काम किया, वह देश के लोगों के बीच में ले गए। इससे देश को खड़ा होने में मदद मिली है। हमारी भूमिका देश को जगाने की थी। सत्य लोगों तक पहुंचाने की थी। उनकी भाषा में सच पहुंचाया, जिसके कारण देश खड़ा हुआ और सरकार ने सही निर्णय़ लिया।
पत्रिकाः धारा 370 हटवाने में क्या यह अप्रत्यक्ष भूमिका नहीं है? आशुतोष भटनागरः हां, अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका है। हम तो भारत के लिए काम कर रहे थे। हमारा मानना है कि कश्मीर समस्या नहीं है, कश्मीर में समस्या है। कश्मीर में समस्या इसलिए है कि वह भारत है। अगर वह भारत नहीं होता तो वहीं कोई समस्या नहीं थी। भारत की समस्या को भारत को सुलझाना है। इस समस्या को सुलझाने के लिए जिस दिन भारत खड़ा हो गया, सरकार ने निर्णय ले लिया।
पत्रिकाः तो क्या अब कश्मीर अध्ययन केन्द्र की आवश्यकता खत्म हो गई है? आशुतोष भटनागरः बिलकुल खत्म नहीं हुई है। अभी पहला चरण पूरा हुआ है। बहुत बड़ा काम बाकी है। हमारा मुख्य काम एकात्मता का है। कश्मीर के लोगों को जोड़ना है। उन्हें अपने साथ एकाकार करना है। वो बहुत बड़ा काम है, जिसे करना बाकी है।
पत्रिकाः आपने अभी पीओके की बात की है, उसके वापस आने की संभावना कब तक है? आशुतोष भटनागरः उसकी कोई तिथि निश्चित नहीं की जा सकती, लेकिन पाकिस्तान जैसे काम कर रहा है, हो सकता है जल्दी हो जाए।
पत्रिकाः सरकार आपके मत की है, विचारों की है तो आप प्रेशर नहीं डाल सकते हैं?
आशुतोष भटनागरः सरकार के कारण नहीं होता है। विश्व की परिस्थितियों के आधार पर होता है। निश्चित रूप से आज विश्व की परिस्थितियां हमारे पक्ष में हैं। फिर भी तारीख बताना अनिश्चित है, लेकिन आने वाले वर्षों में हम इतिहास और भूगोल बदलता देखेंगे।
पत्रिकाः चीन लगातार कश्मीर में अपनी शक्ति बढ़ा रहा है, उस पर सरकार की चिन्ता दिखाई नहीं देती है? आशुतोष भटनागरः सरकार की चिन्ता है, लेकिन चीन और पाकिस्तान के साथ इन चिन्ताओं का फर्क है। पाकिस्तान में जो हिस्सा भारत का है, उसमें हमारे 50 लाख से ज्यादा नागरिक भी रहते हैं। चीन के पास जो हमारी 42 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि है, उसमें केवल छह गांव हैं और लगभग एक हजार की जनसंख्या है। पाकिस्तान में हमारे लोग हर दिन पीड़ित हो रहे हैं, इसलिए हमारी प्राथमिकता है, लेकिन चीन को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। उस पर निश्चित रूप से आगे बढ़ेंगे। पिछले पांच साल में हमने चीन की सीमा पर टैंक पहुंचाए हैं। हमारी सेना आगे बढ़ी है। वहां पर नई बटालियन खड़ी की है। सैनिक हवाई अड्डे वहां पर बन चुके हैं।
पत्रिकाः आप कहते हैं कि पूरा कश्मीर आने पर हम सड़क मार्ग से यूरोप जा सकते हैं, वह कब तक हो सकता है?
आशुतोष भटनागरः यह तो परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। पत्रिकाः क्या इसके लिए काम कर रहे हैं? आशुतोष भटनागरः वातावरण बनाने की बात है। चर्चा होती है। हर चीज की चर्चा का कोई न कोई फल मिलता है।