अगस्त 2017 से मार्च 2018 तक (8 माह) हादसे 858, मौतें 100
अप्रैल 2018 से दिसम्बर 2018 तक (9 माह) हादसे 1113, मौतें 91
जनवरी 2019 से मार्च 2019 तक (तीन माह) हादसे 402, मौतें 36
20 माह में कुल हादसे 2368, मौतें 227
सुझावों में यह भी कहा गया कि निजी व सरकारी बसों में सीट बैल्ट अनिवार्य रूप से होनी चाहिये ताकि हादसा होने की स्थिति में बस यात्री गंभीर रूप से चुटैल होने से बच सके। इस सम्बन्ध में सरकार को तुरन्त पहल करनी चाहिये। घिसे हुये टायरों के उपयोग पर तुरन्त रोक लगनी चाहिये और घिसे हुये टायरों वाले वाहन को एक्सप्रेसवे पर प्रवेश की अनुमति नहीं होनी चाहिये। इस सम्बन्ध में शासना द्वारा नियम बनाया जाना चाहिये।
एक्सप्रेसवे पर हादसों का मुख्य कारण वाहन चालक को नींद आना या अत्यधिक थका होना होता है। विदेशों में कोई भी वाहन चालक निश्चित समय से अधिक वाहन नहीं चला सकता है और उसे रुकना ही पड़ता है। इस प्रकार का कोई नियम भारत में नहीं है जो बनाया जाना चाहिये और उसे कड़ाई से लागू किया जाना चाहिये। यह उल्लेखनीय है कि 100 किमी0 की गति से चलने वाले वाहन 1 सेंकेड के अन्दर लगभग 30 मीटर चल लेते हैं। अतः वाहन चालक की झपकी सड़क हादसों का बहुत बड़ा कारण है।
एक्सप्रेस-वे पर जो भी सड़क हादसा हो उसके सम्बन्ध में एक स्थायी कमेटी द्वारा अध्ययन करके रिपोर्ट दी जाये जो प्रचारित-प्रसारित हो ताकि हादसों के कारण से प्रशासन व जनता अवगत हो और उन्हें बचाने के लिये आवश्यक जागृति उत्पन्न हो व कार्यवाही हो। इस सम्बन्ध में मोटर व्हीकल एक्ट की धारा-135 में भी प्राविधान है। उ0प्र0 रोड सुरक्षा कोष नियमावली, 2014 के नियम-10(ए)(पप) के अनुसार यह आवश्यक है कि सड़क सुरक्षा कोष की प्रबन्ध कमेटी द्वारा रोड एक्सीडेन्ट डाटा बेस मैनेजमेन्ट सिस्टम विकसित हो।
गति सीमा उल्लंघन या अपनी लेन पर न चलने के लिये प्रत्येक गलती करने वाले वाहन का चालान होना चाहिये। प्रतिदिन हजारों वाहन तेज गति से चलते हुये देखे जा सकते हैं लेकिन मात्र 5000 वाहनों का अब तक चालान हुआ है जो कि अत्यन्त दुःखद है। एक ओर राजस्व की हानि है वहीं दूसरी ओर सड़क हादसों को न्योता दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे इण्डिस्ट्रयल डेवलपमेन्ट अथॉरिटी (यूपीडा) द्वारा सेन्ट्रल रोड रिसर्च इन्स्टीटयूट (सी0आर0आर0आई) द्वारा आगरा लखनऊ एक्स्रपेस-वे की सड़क सुरक्षा के सम्बन्ध में अध्ययन कराया गया है किन्तु रिपोर्ट का खुलासा अभी तक नहीं किया गया है। सूचनाअधिकार में मांगने पर भी रिपोर्ट उपलब्ध नहीं करायी गयी है। रिपोर्ट की संस्तुतियों को लागू किया जाना चाहिये।
यूपीडा द्वारा इस एक्सप्रेस-वे पर होने वाले सड़क हादसों व चालान आदि के सम्बन्ध में गोपनीयता रखी जाती है और सूचना-अधिकार में मांगे जाने के उपरान्त भी सूचना उपलब्ध नहीं करायी जाती है। जहां एक ओर मानव सुरक्षा का महत्वपूर्ण पक्ष है वहां दूसरी ओर राज्य सरकार की एजेंसी द्वारा हादसों की संख्या को छिपाने का प्रयास नहीं करना चाहिये। हादसों के आंकड़़ों के प्रचार-प्रसार से वाहन चालकों के मध्य डर और जागरूकता दोनो हीं उत्पन्न होंगी।
आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे पर 10 स्थानों को बढ़ाकर 20 स्थानों पर कैमरे लगाये जायें। गति उल्लंघन करने वाले वाहनों को चालान के सम्बन्ध में समस्त कार्रवाई टोल संचालनकर्ता मै0 ईगल इन्फ्रा इण्डिया लि0 द्वारा ही की जाये।