SpeakUP: शिक्षा व्यवस्था का हाल-बेहाल, इतने साल में क्यों नहीं बदला यूपी?
देश के सबसे बड़े राजनैतिक सूबे उत्तर प्रदेश ने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए, उसके बाद ऐसी स्थिति प्रदेश का दुर्भाग्य है। शिक्षा के क्षेत्र की स्थिती तो बेहद खराब है। हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 17,602 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक ही शिक्षक मौजूद है।
लखनऊ. देश के सबसे बड़े राजनैतिक सूबे उत्तर प्रदेश ने देश को 9 प्रधानमंत्री दिए, उसके बाद ऐसी स्थिति प्रदेश का दुर्भाग्य है। शिक्षा के क्षेत्र की स्थिती तो बेहद खराब है। हाल ही में जारी रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 17,602 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक ही शिक्षक मौजूद है। ये शिक्षक पूरे स्कूल का प्रबंधन और शिक्षा अकेले ही संभाले हुए हैं। इन हालातों को देखकर बच्चों के भविष्य का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है।
प्राथमिक शिक्षा के लिए चलाई जा रही अनेक महात्वाकांक्षी योजनाओं के बावजूद देश में पांचवीं तक के छात्रों की संख्या में पिछले एक साल में ही 23 लाख बच्चों की कमी आई है, जिसमें अकेले उत्तर प्रदेश की कक्षाओं से 7 लाख बच्चे घट गए हैं। पिछले साल जारी हुई एक रिपोर्ट की मानें तो देशभर में पांचवीं और आठवीं में क्रमश:13.24 करोड़ और 6.64 करोड़ यानी कुल 19.88 करोड़ बच्चे प्रारम्भिक शिक्षा हासिल कर रहे हैं। लेकिन इतनी बड़ी तादाद में बच्चों का प्राथमिक स्कूल से कम होना सवाल खड़ा करता है कि आखिर इतनी सुविधाओं के बावजूद ऐसा क्यों? कमी कहां हैं? या फिर यह सभी सुविधाएं हवा-हवाई साबित हो रही हैं?
माध्यमिक व उच्च स्तरीय शिक्षा का भी हाल-बेहाल है। छात्रों को हायर एजुकेशन के लिए अक्सर प्रदेश को छोड़कर दूसरे प्रदेशों का रुख करना पड़ता है। जो छात्र यहां पढ़ते भी हैं उन्हें नौकरी करने फिर बाहर ही जाना पड़ता है। लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मुकुल श्रीवास्तव का इस पर कहना है कि जब तक लॉ-ऑर्डर की स्थिती यहां ठीक नहीं हो जाती, तब तक यहां बड़ी कंपनियां नहीं आएंगी।