‘कमर की ऊंचाई तक जमी नर्म बर्फ के बीच चलना तक बहुत कठिन होता है। आप तीन कदम बढ़ाते हैं और थक जाते हैं। इसलिए सियाचिन में उसी जवान की तैनाती की जाती है, जो शारीरिक और मानसिक रूप से बेहद सक्षम हो। ऐसे में यहां तैनाती होना एक जवान के लिए गर्व की बात होती है।’
ये कहना है तीस वर्षीय पूर्व सैन्यकर्मी सचिन बाली का। सचिन भी अपने सैन्य जीवन में करीब ढाई वर्ष तक तक सियाचिन पर तैनात रहे। सचिन ने यहां हिमस्खलम के एक बचाव अभियान का नेतृत्व किया था, जिसमें उनके हाथ-पैर की कुछ उंगलियां भी गल गईं। इसके बाद उन्हें सेना छोडऩी पड़ी। पेश है सचिन के साथ राजस्थान पत्रिका की खास बातचीत…
मुझे तो सेना में ही जाना था
सचिन कहते हैं, ‘मुझे कॉलेज के दिनों में फैसला करना था कि आगे क्या करूं। मेरे सामने एक यही विकल्प था जिससे मैं खुद को जोड़ सकता था। मेरे आचरण के मुताबिक मैं किसी और काम के बारे में सोच भी नहीं सकता था। मैं शारीरिक रूप से मौजूद होकर देश के लिए योगदान देना चाहता था। माता-पिता को बताए बिना मैंने सेना का आवेदन कर दिया। जब साक्षात्कार का बुलावा आया, तब उन्हें बताया। हालांकि उन्होंंने मुझे पूरा समर्थन किया।’
मुझे अपने देश के लिए लडऩा था
जिस इनफैंट्री में मुझे रखा गया उसे एक साल के लिए संयुक्त राष्ट्र के एक मिशन के लिए चुना गया था, इसलिए मैं इथियोपिया और इरिट्रिया गया। मैं इससे खुश नहीं था। मुझे किसी और की लड़ाई लडऩे की जगह अपने देश में होना चाहिए था और अपने देश के लिए लडऩा चाहिए था। मेरी इकलौती प्रेरणा मेरा देश था। यह कारगिल के बिल्कुल बाद की बात है इसलिए मैं यहां होने के लिए उत्सुक था।
2003 में शुरू हुआ सियाचिन का सफर
मार्च 2003 में मुझे सियाचिन जैसे स्थान पर रहने लायक बनने और वहां एक टीम का नेतृत्व करने के लिए एक एडवांस्ड ट्रेनिंग पर भेजा गया और वहां की सबसे अग्रिम चौकियों में एक में रखा गया। सियाचिन में नियुक्ति के लिए कई कारण देखे जाते हैं जिनमें शारीरिक और मानसिक रूप से सबसे बेहतर स्थिति वाला व्यक्ति होना चाहिए। यह एक सम्मान की बात होती है कि जो आप चाहते हैं उसके लिए आपको चुना जाता है।
..और वो हादसा
मार्च का महीना सियाचिन में बर्फ पिघलने वाला होता है। 2 मार्च 2003 को बड़ी घटना घटी। उस वक्त पूरे सप्ताह बर्फ गिर रही थी और बर्फीले तूफान आ रहे थे। मैं नियमित कार्रवाई के तौर पर हर पोस्ट को जांच रहा था तभी मंगेश से आने वाली लाइन डेड हो गई। यहां हिमस्खलन हुआ था। हमारे छह आदमी गायब थे। छह अन्य काफी कम कपड़ों के साथ खुले स्थान पर थे। अगर उनकी जान बचानी है तो रात से पहले हमें उन्हें बाहर लाना होगा।
शुरू हुआ बचाव अभियान
हमने एक साथ मिलकर टीम बनाई और एक बचाव अभियान शुरू कर दिया। यहां आप दो समूहों में चलते हैं। पहला रास्ता खोलने वाला दल, जबकि दूसरा दल हमसे 100 मीटर पीछे चल रहा था ताकि कोई जोखिम आने पर दोनों दल साथ न फंसे। कमर की ऊंचाई तक जमी नर्म बर्फ के बीच चलना बहुत कठिन होता है।
आप तीन कदम बढ़ाते हैं और थक जाते हैं वो भी तब जब यहां शारीरिक रूप से सबसे बेहतर स्थिति वाले लोग होते हैं। आपका शरीर ऑक्सीजन की जरूरत के कुल हिस्से के केवल 30 फीसदी ही में ही काम कर रहा होता है। हम इस तरह चलते हैं कि कोई भी न थके। अगर आप थोड़ा सा भी ज्यादा पसीना छोड़ते हैं तो चलना बंद करते ही आपका पसीना बर्फ बन जाता है।
मंगेश तक जाने के आधे रास्ते तक पहुंचने तक हमारे हाथ पैर जम गए थे। जबकि हमारे पास सबसे बेहतरीन उपकरण थे। ठंड से हमारे जबड़े अकड़ रहे थे। लेकिन उस वक्त इकलौता लक्ष्य अपने लोगों को बचाना था। अचानक हम लोगों पर मुलायम बर्फ की एक चट्टान आ गिरी और हम आगे नहीं जा पा रहे थे। अंत में हमें वापस आना पड़ा। खुशकिस्मती यह रही कि मंगेश पर फंसे साथियों को बाद में बचा लिया गया।
सब साथियों पर हुआ असर
वापस आने के बाद हमारे कुछ साथी सुधबुध खोकर बड़बड़ाने लगे थे। मुझे खुद भी बदहवासी जैसी स्थिति महसूस हो रही थी। ऐसे स्थान का दुष्प्रभाव हमारे ऊपर पडऩे लगा था जहां जबर्दस्त सन्नाटा था। मेरे सिर में घंटियां बजने लगी थीं। अस्पताल में लोग मुझे पहचान नहीं पा रहे थे क्योंकि ठंड की वजह से मेरा मुंह सूज गया था। जो नुकसान होना था वो हो चुका था और हम उसे रोक नहीं सकते थे। कड़ाके की ठंड के कारण मेरे हाथ-पैर की कुछ उंगलियां गल गई थीं जिन्हें अंतत: काटना पड़ा।
पर जिंदगी तो चलती है
ठीक है। और कर भी क्या सकते थे। जिंदगी में आगे बढऩा पड़ता है। आप एक ही जगह ठहर नहीं सकते। ग्लेशियर में जाने वाले ज्यादातर लोग अपनी स्वेच्छा से जाते हैं। यह मूर्खतापूर्ण लग सकता है, लेकिन यह एक सैनिक के लिए गर्व का विषय है कि वह दुनिया के सबसे दुर्गम और चुनौतीपूर्ण इलाके में देश की सेवा कर रहा है। सेना में रहकर दफ्तर में काम करना मेरे बस का नहीं था। इसलिए हादसे के बाद मैंने सेना छोड़कर नया जीवन शुरू करने का फैसला किया।
(खबर में दी गई तस्वीरें सांकेतिक हैं)