अब सवाल उठता है कि कोटा के ‘अर्थ’ की ‘व्यवस्था’ का दूसरा विकल्प क्या हो? कोटा की अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों को पर्यटन में अब अपार संभावनाएं नजर आ रही हैं। कोटा वही है, बस उसे देखने का नजरिया बदलना पड़ेगा। अपने ‘घर’ में कुछ भी ‘नया’ नजर नहीं आता। पर्यटक बनकर अपने शहर और पूरे हाड़ौती को देखें। यहां पर्यटकाें के लिए क्या नहीं है? धोरों के अलावा हमारे पास सब कुछ है। हम ‘राजस्थान मतलब रेगिस्तान’ के मिथक को भी तोड़ने की ताकत रखते हैं। नदी, पहाड़, जंगल, पुरा सम्पदा और धार्मिक स्थल…हमें प्रकृति ने हर रंग, रस और सौंदर्य का खजाना बख्शा है। चम्बल पर हेरिटेज रिवर फ्रंट से लेकर टाइगर रिजर्व तक, हमारे पास पग-पग पर ऐसे स्थल मौजूद हैं, जो पर्यटकों को यहां खींच ला सकते हैं। चाहे ईको टूरिज्म हो या वाइल्डलाइफ टूरिज्म… पर्यटन का कमोबेश हर क्षेत्र हमारे पास है।
अब वक्त आ गया है कि हम इसे शिद्दत से महसूस कर इसका पूरे जग में गुणगान करें। यहां पर्यटन को ‘बड़ा’ बनाने के तमाम संसाधन मौजूद है। बस जनप्रतिनिधि, प्रशासन, इस क्षेत्र से जुड़े एक्सपर्ट और सबसे जरूरी यहां का आम नागरिक मिलकर यदि संकल्पित हो जाएं तो वह दिन दूर नहीं, जब कोटा पर्यटन नगरी के रूप में पहचान बनाकर इसे अर्थवयवस्था का दूसरा नहीं, पहला विकल्प बना लेगा। हां, कोचिंग तो हमारी ‘यूएसपी’ बन ही गई है। इसे भी एजुकेशन टूरिज्म के रूप में जोड़कर देखा जा सकता है। कोचिंग इंडस्ट्री के लिए तैयार किए गए तमाम संसाधन पर्यटन उद्योग के लिए आसानी से काम आ सकते हैं। हॉस्टल, हॉटल, पेइंग गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट, ओपन मैस…यह सब टूरिज्म इंडस्ट्री के लिए भी जरूरत बनेंगे। तो फिर देर किस बात की, पर्यटन को पंख लगाइए और देखिए कोटा की परवाज…।