scriptYellow Poison: ‘पीले जहर’ से रहें सावधान ! वरना ये दुनिया की एक तिहाई आबादी निगल लेगा, जानिए कैसे | Yellow Poison: Beware of 'yellow poison'! Otherwise it will swallow one third of the world's population, know how | Patrika News
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Yellow Poison: ‘पीले जहर’ से रहें सावधान ! वरना ये दुनिया की एक तिहाई आबादी निगल लेगा, जानिए कैसे

Yellow Poison News : नीदरलैंड में रह रहे भारत के राजस्थान प्रदेश के अलवर जिले के ऐसे ही एक मशहूर प्रवासी भारतीय लेखक हैं रामा तक्षक। रामा तक्षक ने चीन के संबंध में तथ्यों के आधार पर एक सनसनीखेज रहस्योदघाटन किया है। पेश है :

नई दिल्लीMay 27, 2024 / 06:05 pm

M I Zahir

China the Dragon

China the Dragon

Yellow Poison News : ड्रैगन की करतूतों का सनसीनखेज खुलासा हुआ है पीले जहर से रहें सावधान, वरना ये भीड़ दुनिया की एक तिहाई आबादी निगल लेगी। नीदरलैंड में रह रहे भारत के राजस्थान प्रदेश के अलवर जिले के ऐसे ही एक मशहूर प्रवासी भारतीय लेखक ( NRI Writer ) रामा तक्षक ( Rama Takshak) ने चीन के बारे में तथ्यों के आधार पर यह सनसनीखेज खुलासा किया है, जानिए उन्हीं के शब्दों में:

सामने वाले के मुंह पर हाथ

अपना हाथ सामने वाले के मुंह पर रखकर, चीन बोलना जारी रखता है। सामने वाले को बोलने का अवसर ही नहीं देता है। आखिरी बाइबल रहस्योद्घाटन की इस पुस्तक में लिखा है “एशियाई भीड़ के संबंध में, एक भयानक भविष्यवाणी की गई है कि ये भीड़ दुनिया की एक तिहाई आबादी को निगल लेगी। उनके मुंह से निकलती आग, धुएँ और गन्धक इन तीन कारकों से विश्व की एक तिहाई प्रजा को अपनी लपटों में लील लेगी।” प्रकाशित वाक्य 9:18

चीन कल आज और कल

इस बाइबल रहस्योद्घाटन का आशय इस मायने में समझने जैसा है कि 1949 के आसपास चीन का भोगौलिक आकार क्या था और आज क्या है ? आपको ज्ञात होगा कि 1 अक्टूबर 1949 में पी आर सी यानि पीपुल्स ऑफ रिपब्लिक राष्ट्र की स्थापना हुई थी। तब से लेकर 1986 चीन का आधिकारिक भोगौलिक क्षेत्रफल 10.45 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल था। इस भौगोलिक क्षेत्रफल के विस्तार के ऐतिहासिक आंकड़े कुछ ऐसे हैं :

चीन ने हथियाया जिनजियांग

चीन ने 13 अक्टूबर 1949 को जिनजियांग को हथिया लिया। इसी पीपुल्स ऑफ रिपब्लिक ऑफ चाइना ने 1 मई 1950 को हाईनान पर कब्जा कर लिया। इसके ठीक अट्ठारह दिन बाद 19 मई 1950 को झाउसान पर आधिपत्य स्थापित कर लिया। इस घटना के ठीक एक बरस यानि 23 मई 1951 को स्वायत्त क्षेत्र तिब्बत पर अपना दावा ठोक दिया। ध्यान रहे कि तिब्बत पर आधिपत्य जमाने से पहले चीन की सीमाएं भारत से नहीं लगती थी। वहीं 3 सितम्बर 1954 को चीन ने यिजीयान और दासेन द्वीपों को अमेरिकी सातवें बेड़े की निकट ही उपस्थिति में, हथिया लिया।

विदेश और विस्तारवादी नीति

छठे दशक में चीन के आधाकारिक भौगोलिक क्षेत्रफल की कहानी भी गजब विदेश और विस्तारवादी नीति है। इस विस्तारवादी नीति में एक तुरुप चाल है। इस तुरुप चाल का नाम है, एक चीन’ नीति। दूसरे शब्दों में, बात करते समय इसे मुंह पर हाथ रख देना कहते हैं। कहने का अर्थ है कि लड़ते तो बेवकूफ हैं। समझदार तो अपने बटोरे से ही सत्ता का विस्तार करते रहते हैं।

हैवन झील को चीन का हिस्सा बनाया

छठे दशक में चीन उत्तरी कोरिया संधि के तहत पाएक्तु पर्वत के आसपास 280 वर्ग किलोमीटर जमीन और पचास प्रतिशत से अधिक हैवन झील को चीन का हिस्सा बना लिया। भारत चीन युद्ध भी छठे दशक की देन है। इस युद्ध में भारत को मुंह की खानी पड़ी थी। जिसमें अक्साई चिन का 37,555 वर्ग किलोमीटर और काराकोरम का 5180 वर्ग किलोमीटर चीन ने हथिया लिया।

पीपुल्स ऑफ रिपब्लिक ऑफ चाइना

रिपब्लिक ऑफ चाइना को 25 अक्टूबर 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ में पीपुल्स ऑफ रिपब्लिक ऑफ चाइना का नाम कर दिया गया। पीपुल्स ऑफ रिपब्लिक ऑफ चाइना तभी से ताइवान और पेंघू तथा फूजी में किनमेन और मत्सू पर भी अपना अधिकार जताता रहा है। जबकि इन पर चीन का नियंत्रण नहीं है। चीन ने सातवें दशक (1974) में ही पारासेल द्वीप पर अधिकार किया।

दक्षिण चीन सागर पर कब्जे की कोशिशें

दक्षिण चीन सागर पर आधिपत्य की कोशिश आठवें दशक से जारी है। इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय चीन की दावेदारी के खिलाफ आ चुका है। जो चीन को मान्य नहीं है। चीन सरकार के देखे यह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का निर्णय, एक कागज का टुकड़ा, कचड़े दान का हिस्सा है।

मकाओ चीन का हो गया

नवें दशक में रूस चीन समझौते के तहत चीन की सीमा से लगता रूसी क्षेत्र चीन को मिल गया। इसके अतिरिक्त 1 जुलाई 1997 में ब्रिटेन ने 99 वर्ष की लीज खत्म हो जाने पर हांगकांग चीन को लौटा दिया। नब्बे के दशक में ही मकाओ चीन का हो गया।

चीनी क्षेत्रफल में बढ़ोतरी

सन 2004 – 2005 में हुए रूस चीन समझौते से 337 वर्ग किलोमीटर का चीनी क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हुई। 2008-09 में तजाकिस्तान के साथ सीमांकन हुआ तो चीनी क्षेत्रफल में लगभग एक हजार वर्ग किलोमीटर का इजाफा हुआ। हालांकि चीन अभी भी तजाकिस्तान के क्षेत्र पर दावेदारी ठोक रहा है। 2009 में, चीन ने दक्षिण चीन सागर में ,150 वर्ग किलोमीटर का कृत्रिम टापू बना लिया था।

आंखें चौंधिया जाती हैं

उपरोक्त तथ्यों को यदि आप विश्व के भौगोलिक मानचित्र पर चीन के आकार को 1949 से आज तक देखते हैं तो आंखें चौंधिया जाती हैं। यह सब आप Territorial changes of people’s republic of china गूगल पर भी पढ़ सकते हैं। सतत् दबाव और बिन लड़ाई, सौ प्रयासों में से निन्यानवे प्रयास, यदि असफल रहें और केवल एक सफल रहे तो यह शत प्रतिशत है।

यही चीन की विदेश नीति

चीन अपनी बात को आधिकारिक तौर पर, धीरज से दोहराते रहने, शत्रु को हिला हिला कर देखने, शत्रु में भ्रष्ट को तलाशने, अवसर सृजित करने, दावे वाले क्षेत्र में जनता को भ्रमित करने में चीनी विशेषज्ञ हैं। जिस क्षेत्र पर चीन दावा करे वह ‘एक चीन’ नीति का हिस्सा होने का यह तथ्य बहुत ही महत्वपूर्ण है। यही चीन की विदेश नीति की तुरूप चाल है।

हर देश को हस्ताक्षर करने ही होते हैं

जिस भी देश के साथ चीन व्यापार या कोई अन्य समझौता करता है तो ‘एक चीन’ नीति पर, चीन की पहली शर्त पर, दूसरे पक्ष को हस्ताक्षर करने ही होते हैं। ‘एक चीन नीति’ पर हस्ताक्षर करने का मतलब है चीन के भौगोलिक दावों को स्वीकारना। यदि व्यापार का इच्छुक देश ‘एक चीन नीति’ पर हस्ताक्षर नहीं करता है तो व्यापार समझौता या संधि नहीं हो पाती है।

चीन की मुखालफत मेंं खिलाड़ी उतरा

इस उपरोक्त सारे इतिहास में एक बात गौर करने वाली है कि समझदार और विकसित पश्चिमी देशों ने नब्बे के दशक से लेकर पिछले दो तीन दशक में चीन को पूरी तकनीकी देकर, एक ‘चीन नीति’ पर हस्ताक्षर अपनी गर्दन दबाने के लिए थमा दी। डोनाल्ड ट्रम्प पहले अमरीकी राष्ट्रपति हुए, जिन्होंने चीन द्वारा गर्दन पर पकड़ के दर्द को महसूस किया और चीन की मुखालफत मेंं खिलाड़ी उतर आया।

चीन का क्षेत्र होने का दावा

ड्रैगन के मुंह से निकलती आग लपट या झल या फुंफकार, जहां तक जाये, वहां तक चीन का क्षेत्र होने का दावा, चीन के अधिकारियों द्वारा कर दिया जाता रहा है। आग की लपट, चीन के शब्द हैं जो पूरी समग्रता के साथ विरोधी पर, क्षेत्रीय दावों के रूप में झोंके जाते हैं। इन दावों की इतिहास से, बोली से, चेहरे से संस्कृति से जानकारी जुटा ली जाती है। इस जानकारी को तोड़ मरोड़ कर चीनी पक्ष की समझ खड़ी कर तैयार की जाती है।

भारत ने गलवान घाटी में झेला

भारत ने 15 जून 2020 में, ड्रेगन के मुँह से निकलती झल को गलवान घाटी में, बीस सैनिकों की मौत के रूप में, आखिरी बार झुलस को झेला। उसके बाद से भारतीय विदेश नीति में, चीन के प्रति सख्ती और तल्खी स्पष्ट दिखाई देती है। संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कम्बोज ने बहुत ही सशक्त वक्तव्य दिया “सुरक्षा परिषद को गुमनामी के रास्ते पर भेज देंगे।” यह वक्तव्य भारत के सुरक्षा परिषद की स्थाई सदस्यता पर चीन के अड़ियल रुख के लिए दिया गया।

चीन ने नये नाम रखे

चीन का भौगोलिक नाम बदलाव तमाशा, अरुणाचल प्रदेश के क्षेत्र में छ: नाम बदलाव के साथ 2017 में शुरू हुआ था। 2021 में पन्द्रह और 2023 में ग्यारह नाम बदलाव किये। इस वर्ष चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तीस, जिनमें 11 रिहायशी क्षेत्र, 12 पर्वत, चार नदियाँ, एक झील, एक दर्रे और एक जमीन के टुकड़े, नये नाम जारी किये।

चीन का तमाशा

चीन की इस चाल पर, भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश के तीस स्थानों का नाम बदलाव की चाल पर, विदेश मंत्रालय की कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस नाम बदलाव को चीन का तमाशा बताया था। उन्होंने फिलीपीन्स यात्रा के दौरान, ताल ठोककर, चीन को कड़े शब्दों में कहा था ” चीन उन नियमों का आदर करे जिनके लिए वह दूसरों को प्रवचन देता है।” भारतीय विदेश मंत्री का यह सशक्त संदेश अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर उभरते भारतीय सशक्त राजनय का संकेत है। हमें चीन के पीले जहर की लपटों को वापस मोड़ना ही होगा।

भारत ने अपना मत रखना शुरू किया

भारत ने अपने दम पर, अंतरराष्ट्रीय मसलों, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर दमदार तरीके से अपना मत रखना शुरू कर दिया है। मोदी सरकार की यह नयी सूझ अंतरराष्ट्रीय जगत में अपनी धाक जमा रही है। यूक्रेन युद्ध मामले में यूरोपीय संघ का भारत पर दबाव काम नहीं चल पाया।

चीन का रुख अजब

इसके उलट विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने एक साक्षात्कार में कहा था कि जिस समय चीन ने हमारे बीस सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था, तब यूरोप ने कहा था कि यह दो देशों की समस्या है। यूरोप ने यह कहकर पल्ला झाड़, समस्या से मुँह मोड़ लिया था। अब यूरोप को भारत की क्यों याद आ रही है ?
हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी की फ्रांस यात्रा के समय, चीन की नीतियों पर, फ्रांस और और यूरोपीय संघ का रुख कड़वा रहा।

चीन के रुख से चेता अमरीका

दक्षिण चीन सागर पर चीन के दावे को लेकर, चीन की नाक में नकेल डालने के लिए अमरीका और पश्चिमी देश चेत गये हैं। अप्रैल माह में, दक्षिणी चीन सागर में, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान की नेवी ने संयुक्त सैन्य अभ्यास किया। अभी 22 मई को भी अमेरिका और नीदरलैंड्स की नेवी ने दक्षिण चीन सागर में संयुक्त अभ्यास किया। देर सबेर पश्चिमी जगत भी जागना शुरू हो गया है। ईसाइयों की आख़िरी बाइबल रहस्योद्घाटन की पुस्तक में, स्पष्ट शब्दों में, लिखा है “पीले जहर से सावधान।”

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