शिंजो आबे भले ही एक नेता थे, लेकिन उनकी छवि कभी भी उन नेताओं जैसी नहीं रही जो एक दूसरे पर बयानबाजी के दौरान मर्यादाएं भूल जाते हैं। शिंजो आबे की छवि एक शांत व्यक्तित्व के नेता के तौर पर थी।
आबे ने चीन पर कई बार आक्रामक रुख अख्तियार किया, लेकिन हर बार शिंजो आबे का शालीन बर्ताव दुनिया के लोगों ने देखा और पसंद किया।
क्वाड को फिर बहाल करने में प्रमुख भूमिका
शिंजो आबे की ही पहल थी कि एशिया प्रशांत क्षेत्र में चीन को घेरने के लिए क्वाड को फिर से बहाल किया गया। हालांकि इस काम में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनका पूरा साथ दिया।
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शिंजो आबे जापान के प्रभावशाली परिवार से ताल्लुक रखते थे, लेकिन वे अपने परिवार के दम पर आगे नहीं बढ़ना चाहते थे, बल्कि अपनी काबलीयत के दम पर वो कुछ हासिल करना चाहते थे।
यही वजह है कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक स्टील फैक्ट्री के साथ की थी। वो इस फैक्ट्री में वर्कर के तौर पर काम करते थे।
शिंजो आबे का परिवार पहले से ही राजनीति से जुड़ा था। शिंजो के दादा और नाना दोनों ही एक पॉपुलर लीडर थे। आबे के दादा कैना आबे और पिता सिंतारो आबे, जापान के काफी लोकप्रिय राजनेताओं में थे।
जापान के पूर्व पीएम की बेटी थी शिंजो की मां
इतना ही नहीं शिंजो के परिवार की प्रभाव इस बात से भी लगाया जा सकता है कि, उनकी मां जापान के पूर्व प्रधानमंत्री नोबोशुके किशी की बेटी थीं।
21 सितंबर 1954 को टोक्यो में जन्मे आबे नेओसाका में अपनी स्कूली की पढ़ाई पूरी की थी। यहां की साइकेई यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र में ग्रेजुएशन किया और फिर आगे की पढ़ाई के लिए अमरीका चले गए। अमरीका की सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपनी बाकी की पढ़ाई पूरी की।
अमरीका से पढ़ाई पूरी करने बाद शिंजो आबे जापान लौट आए। अप्रैल 1979 में आबे ने कोबे स्टील प्लांट में काम करना शुरू किया। यहां पर आबे ने दो साल तक फैक्ट्री मजदूर के तौर पर काम किया। इसके बाद 1982 में कंपनी छोड़कर देश की राजनीति में एंट्री की।
हालांतिक एक राजनेता बनने से पहले उन्होंने सरकार से जुड़े कई पदों पर अपनी जिम्मेदारियां निभाई। साल 1993 में आबे के पिता का निधन हो गया।
पिता की मौत के बाद शिंजो आबे ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव में शिंजों की बड़ी जीत हुई। वो यामागुशी से चुने गए। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आखिरकार वो वक्त आया जब शिंजो आबे की मेहनत ने उन्हें वो मुकाम दिलाया जिसके वो हकदार थे। वर्ष 2006 में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के आबे को प्रधानमंत्री चुना गया।
वो साल 2007 तक देश के पीएम रहे। जिस समय वो पीएम बने उनकी उम्र सिर्फ 52 साल थी। उनके नाम दो रिकॉर्ड दर्ज हुए।
आबे न सिर्फ युद्ध के बाद देश के सबसे युवा पीएम बने बल्कि वह पहले ऐसे पीएम थे जिनका जन्म सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद हुआ था। इसके बाद 26 दिसंबर 2012 से 16 सितंबर 2020 तक वो दोबारा देश के प्रधानमंत्री बने और देश की जनता के दिलों पर राज किया।
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