इस ऑपरेशन में शामिल एक वैज्ञानिक ने सीएनएन से न्यूक्लियर फ्यूजन के कामयाब होने की पुष्टि की है। माना जा रहा है कि अमेरिकी ऊर्जा विभाग इसकी आधिकारिक रूप से इसकी सफलता की घोषणा मंगलवार यानी की आज कर सकता है। रविवार को विभाग ने कहा था कि अमेरिकी ऊर्जा सचिव जेनिफर ग्रानहोम मंगलवार को एक ‘प्रमुख वैज्ञानिक सफलता’ की घोषणा करेंगे। इसकी सफलता फॉसिल फ्यूल (fossil fuel) पर मानव की निर्भरता को खत्म करने में मदद कर सकती है।
वर्तमान समय में परमाणु रिएक्टरों से जो ऊर्जा पैदा की जाती है और जिसका इस्तेमाल दुनिया में बिजली निर्माण के साथ-साथ अलग-अलग ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए होदा है, उसमें दिक्कत ये है कि उसमें न्यूक्लियर कचरे का भी निर्माण होता है, जिसे खत्म करना काफी मुश्किल होता है। मगर न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए मुख्य रूप से ड्यूटोरियम और ट्रिटियम तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है और ये दोनों हाइड्रोजन के समस्थानिक हैं। जिसकी वजह से इसमें किसी तरह का कोई कचरा उत्पन्न नहीं होता।
आसान शब्दों में कहें तो न्यूक्लियर फ्यूजन वो प्रक्रिया है जहां दो या उससे ज़्यादा परमाणुओं के साथ आने से एक परमाणु बनता है। इस प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर ऊर्जा निकलती है। सूरज इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। इससे पैदा होने वाली ऊर्जा बहुत ही ज्यादा मात्रा में होती है। अगर इस ऊर्जा को नियंत्रित किया जा सके तो मानवता को प्रचुर और भरपूर मात्रा में स्थायी स्रोत मिल सकता है। वहीं चीन और अमेरिका की लैब ने इसमें सफलता हासिल कर ली है।
टेक्नोलॉजी के मामले में चीन ने अमेरिका, रूस और जापान जैसे देशों को पीछे छोड़कर सबसे पहले आर्टिफिशियल सूरज का निर्माण कर दुनिया में दूसरे सूरज के दावे को सच कर दिखाया था। ये प्रयोग चीन के अन्हुई प्रांत की राजधानी हेफ्यू में किया गया। यहीं नहीं चीन के इस आर्टिफिशियल सूरज ने बाद में एक विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। चीन के इस न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्टर से 1056 सेकंड यानी कि लगभग 17 मिनट तक 7 करोड़ डिग्री सेल्सिय ऊर्जा निकाली थी। चीन के इस नकली सूरज से निकली अपार ऊर्जा से दुनिया टेंशन में आ गई है। चीन की इस सफलता के बाद अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों ने इस टेक्नोलॉजी में शोध के लिए तेजी ला दी। और अमेरिका ने भी इसमें सफलता हासिल कर ली है।