भीड़ सड़कों पर उतर आई
रक्षा विशेषज्ञ सदानंद धुमे ( Sadanand Dhume) ने इसकी पड़ताल की है कि आखिर इज़राइल से अच्छे रिश्ते के बावजूद भारत सरकार हमास और हिज़बुल्लाह पर क्यों नरम हैं। धुमे लिखते हैं, ‘भारत में हिज़बुल्लाह प्रमुख हसन नसरुल्लाह की इज़राइली हमले में मौत के बाद भीड़ सड़कों पर उतर आई और कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। भारत में सड़क और सोशल मीडिया, दोनों जगह नसरुल्लाह का समर्थन किया गया। एक आतंकवादी के लिए खुला समर्थन भारत सरकार के इस्लामी आतंकवाद (terrorism) के प्रति कमजोरी उजागर करता है। हिज़बुल्लाह और हमास को आतंकवादी गुट घोषित करने में भारत की विफलता आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध (geopolitical relations) को भी बाधित करती है और अपनी जमीन पर कट्टरपंथ से लड़ाई भी कमजोर करती है।’कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए
धुमे के अनुसार ‘हिज़बुल्लाह और हमास को आतंकवादी संगठनों की लिस्ट में शामिल करना भारत के लिए कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। दोनों समूह कट्टर इस्लामवाद का समर्थन करते हैं और उनका नागरिकों को निशाना बनाने का उनका लंबा इतिहास रहा है। भारत दशकों से पड़ोसी पाकिस्तान की ओर से भड़काए गए इस्लामी आतंकवाद को दबाने के लिए काम कर रहा है,उसे खासकर जम्मू और कश्मीर के मुस्लिम बहुल क्षेत्र में चुनौती मिल रही है।’संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी समूह माना है
जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के आतंकवाद विशेषज्ञ डैनियल बायमैन कहते हैं कि जब लोग कहते हैं कि मुस्लिम भूमि पर गैर-मुस्लिम कब्जा कर रहे हैं, तो ऐसे हिंसक प्रतिरोध पर नरमी भारत के हित में नहीं है। हमास और हिज़बुल्लाह उन दर्जनों समूहों में क्यों नहीं हैं, जिन्हें भारत आतंकवादी संगठनों के रूप में सूचीबद्ध करता है। इसकी बड़ी वजह ये है कि दोनों में से कोई भी समूह भारत को टागरेट नहीं करता है, वे इज़राइल को दुश्मन मानते है। इनकी स्थिति अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के विपरीत है, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने आतंकवादी समूह माना है।हमास-हिज़बुल्लाह का हाईब्रिड स्टेटस
बायमैन कहते हैं कि हमास और हिज़बुल्लाह को कुछ सरकारें हाईब्रिड स्टेटस के तौर पर देखती हैं। वे इन गुटों में कुछ आतंक, कुछ प्रशासन और आंशिक रूप से सामाजिक आंदोलन भी देखती हैं। भारत की अनिच्छा शीत युद्ध से भी जुड़ी हो सकती है, जब अरब तेल पर निर्भर और तीसरी दुनिया के हितों की हिमायत करने के लिए भारत ने अपनी फिलिस्तीन समर्थक साख को प्रचारित किया।इसे कुछ इस तरह समझें
भारत का हिज़बुल्लाह और हमास को आतंकी संगठन मानने में अनिच्छा के पीछे कई कारण हैं, जिनमें से कुछ बिंदु पेश हैं:राजनीतिक और ऐतिहासिक संदर्भ
आर्थिक और रणनीतिक हित: भारत के अरब देशों के साथ अच्छे संबंध हैं, खासकर तेल की आपूर्ति के मामले में दोनों देशों के बीच रिश्ते हैं। भारत ने इन संबंधों को बनाए रखने के लिए हिज़बुल्लाह और हमास को आतंकवादी संगठन मानने से बचने की नीति अपनाई है।
सुरक्षा और रणनीति
भारत का लक्ष्य: भारत का मुख्य ध्यान अपने पड़ोसियों, खासकर पाकिस्तान की ओर से प्रायोजित आतंकवाद पर है। हमास और हिज़बुल्लाह का भारत को सीधे लक्ष्य नहीं बनाना भी इस नीति का एक हिस्सा है।हाईब्रिड स्टेटस: कुछ विश्लेषकों का मानना है कि हमास और हिज़बुल्लाह को एक हाईब्रिड संगठन के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें वे न केवल आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भी सक्रिय हैं।
आंतरिक राजनीति और जनसामान्य की धारणा
कट्टरपंथ के खिलाफ लड़ाई: भारत की आंतरिक सुरक्षा रणनीति में कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित किया गया है, और इसे मजबूत करने के लिए यह जरूरी है कि हिज़बुल्लाह और हमास को आतंकवादी संगठन के रूप में नहीं देखा जाए।
भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध
इस प्रकार, भारत की हिज़बुल्लाह और हमास के प्रति नरमी का कारण केवल आतंकवाद से लड़ने की उसकी नीति नहीं, बल्कि ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामरिक संदर्भों का एक जटिल जाल है।