कभी एक-दूसरे के दोस्त थे तालिबान-पाकिस्तान
तालिबान की स्थापना 1994 में हुई थी। शुरू से ही तालिबान को पाकिस्तान की तरह से काफी मदद मिली। पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने लंबे समय तक तालिबान की जमकर मदद की, जिससे तालिबान की ताकत बढ़ती गई। आईएसआई की तरफ से तालिबान को आर्थिक और सैन्य सहायता दोनों ही दी गई। 1996 में पाकिस्तान ने तालिबान सरकार को मान्यता भी दी थी और ऐसा करने वाले तीन देशों में से एक देश बन गया। अफगानिस्तान में पहली बार सत्ता में आने के बाद तालिबान ने देश में कड़े कानून लागू कर दिए, जिससे आतंकी संगठन की सच्चाई दुनिया के सामने आई। तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में राज किया और इस दौरान तालिबान और पाकिस्तान के बीच अच्छी दोस्ती रही।क्यों बने तालिबान और पाकिस्तान एक-दूसरे के दुश्मन?
आज के दौर में तालिबान और पाकिस्तान एक-दूसरे के दुश्मन बन चुके हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि दोनों के बीच दुश्मनी की शुरुआत कब और क्यों हुई थी? दरअसल 2007 में लाल मस्जिद की वजह से दोनों पक्षों के बीच तकरार की शुरुआत हुई थी।2007 में लाल मस्जिद के कुछ छात्रों (आतंकियों) ने इस्लामाबाद के एक मसाज सेंटर पर हमला कर वहाँ काम करने वाले 9 लोगों को अगवा कर लिया था। इसके जवाब में पाकिस्तानी सेना ने लाल मस्जिद को चारों ओर से घेरते हुए 3 जुलाई, 2007 को लाल मस्जिद के आतंकियों के खिलाफ ‘ऑपरेशन साइलेंस’ शुरू किया था।
इस ऑपरेशन के खिलाफ लाल मस्जिद के अंदर से आतंकियों ने गोलीबारी करने के साथ ही कई सरकारी इमारतों में आग लगा दी थी। 7 जुलाई तक स्थिति और बिगड़ गई, जब लाल मस्जिद के अंदर से एक आतंकी ने पाकिस्तानी सेना के कमांडर लेफ्टिनेंट कर्नल हारून इस्लाम को गोली मार दी थी। इसके बाद जंग और बढ़ गई और दोनों तरफ से भीषण गोलीबारी की गई। लाल मस्जिद के आतंकियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन साइलेंस में पाकिस्तानी सैनिकों और मस्जिद के आतंकियों को मिलाकर करीब 100 से ज़्यादा लोग मारे गए थे। इस कार्रवाई में पाकिस्तानी सेना को जीत मिली थी, लेकिन पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथी तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खिलाफ हो गए।
इस खिलाफत की वजह से ही पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) का जन्म हुआ जिसे तालिबान ने भी समर्थन दिया। टीटीपी की स्थापना के बाद पाकिस्तान में 88 बम धमाके हुए, जिनमें 1,100 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और 3,200 से ज्यादा लोग घायल हुए। इस वजह से पाकिस्तान को तालिबान से चिढ़ हो गई और धीरे-धीरे दोनों पक्षों में तकरार बढ़ती चली गई और दुश्मनी में तब्दील हो गई।