राष्ट्र गान का हिन्दी संस्करण
जन गण मन-अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छलजलधितरंग
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय गाथा। जनगणमंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।
वाक्य-दर-वाक्य अर्थ
जनगणमन-अधिनायक जय हे भारतभाग्यविधाता! जनगणमन:जनगण के मन/सारे लोगों के मन; अधिनायक:शासक; जय हे:की जय हो; भारतभाग्यविधाता:भारत के भाग्य-विधाता(भाग्य निर्धारक) अर्थात् भगवान जन गण के मनों के उस अधिनायक की जय हो, जो भारत के भाग्य विधाता हैंं। पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग। पंजाब:पंजाब/पंजाब के लोग; सिन्ध:सिन्ध/सिन्धु नदी/सिन्धु के किनारे बसे लोग; गुजरात:गुजरात व उसके लोग; मराठा:महाराष्ट्र/मराठी लोग; द्राविड़:दक्षिण भारत/द्राविड़ी लोग; उत्कल:उडीशा/उड़िया लोग; बंग:बंगाल/बंगाली लोग।
विन्ध्य:विन्ध्यांचल पर्वत; हिमाचल:हिमालय/हिमाचल पर्वत श्रिंखला; यमुना गंगा:दोनों नदियाँ व गंगा-यमुना दोआब; उच्छल-जलधि-तरंग:मनमोहक/हृदयजाग्रुतकारी-समुद्री-तरंग या मनजागृतकारी तरंगें। उनका नाम सुनते ही पंजाब सिन्ध गुजरात और मराठा, द्राविड़ उत्कल व बंगाल व विन्ध्या हिमाचल व यमुना और गंगा पे बसे लोगों के हृदयों में मनजाग्रतकारी तरंगें भर उठती हैं।
तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा तव:आपके/तुम्हारे; शुभ:पवित्र; नामे:नाम पे(भारतवर्ष); जागे:जागते हैं; आशिष:आशीर्वाद; मागे:मांगते हैं
गाहे:गाते हैं; तव:आपकी ही/तेरी ही; जयगाथा:वजयगाथा(विजयों की कहानियां)
सब तेरे पवित्र नाम पर जाग उठने हैं, सब तेरी पवित्र आशीर्वाद पाने की अभिलाशा रखते हैं
और सब तेरे ही जयगाथाओं का गान करते हैं
जनगणमंगलदायक जय हे भारतभाग्यविधाता!
जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।। जन गण मंगलदायक:जनगण के मंगल-दाता/जनगण को सौभाग्य दालाने वाले; जय हे:की जय हो; भारत भाग्य विधाता:भारत के भाग्य विधाता
जय हे जय हे:विजय हो, विजय हो; जय जय जय जय हे:सदा सर्वदा विजय हो जनगण के मंगल दायक की जय हो, हे भारत के भाग्य विधाता विजय हो विजय हो विजय हो, तेरी सदा सर्वदा विजय हो।
बांग्लादेश का राष्ट्र गान
‘आमार सोनार बांग्ला’ बांग्लादेश का राष्ट्रगान ( Bangladesh National Anthem ) है, जिसे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था। यह बांग्ला भाषा में है। गुरुदेव (Tagore’s Legacy) ने इसे बंग भंग के समय सन 1906 में लिखा था और जब धर्म के आधार पर अंग्रेजों ने बंगाल को दो भागों में बांट दिया था। यह गीत बंगाल के एकीकरण के लिए माहौल बनाने के लिए लिखा गया था। स्वतंत्र होने के बाद बांग्लादेश ने सन 1972 में इस गीत की प्रथम दस पंक्तियों को राष्ट्रगान के रूप में स्वीकार किया। आमार सोनार बाङ्ला आमार सोनार बांला, आमि तोमाय़ भालबासि। मेरा प्रिय बंगाल मेररा सोने का बंगाल, मैं तुमसे प्यार करता हूँ. चिरदिन तोमार आकाश, तोमार बातास, आमार प्राणे बाजाय़ बाँशि
हमेशा तुम्हारा आकाश, तुम्हारी वायु मेरे प्राणों में बाँसुरी सी बजाती है। ओ मां, फागुने तोर आमेर बने घ्राणे पागल करे, मरि हाय़, हाय़ रे, ओ मां,
अघ्राणे तोर भरा खेते आमि कि देखेछि मधुर हासि। ओ माँ, फाल्गुन में आम्रकुञ्ज से आती सुगंध मुझे खुशी से पागल करती है, वाह, क्या आनन्द! ओ माँ,
आग्रहायण में पूरी तरह से फूले धान के खेत, मैने मधुर मुस्कान को फैलते देखा है। कि शोभा, कि छाय़ा गो, कि स्नेह, कि माय़ा गो, की आँचल बिछाय़ेछ, बटेर मूले,
नदीर कूले कूले। क्या शोभा, क्या छाया, क्या स्नेह, क्या माया! क्या आँचल बिछाया है बरगद तले नदी किनारे किनारे! मा, तोर मुखेर बाणी आमार काने लागे,
सुधार मतो, मरि हाय, हाय रे, मा, तोर बदनखानि मलिन हले, आमि नय़न जले भासि। माँ, तेरे मुख की वाणी, मेरे कानो को, अमृत लगती है, वाह, क्या आनन्द!
मेरी माँ, यदि उदासी तुम्हारे चेहरे पर आती है, मेरी आंखें भी आँसुओं से भर जाती हैंं।
श्रीलंका का राष्ट्रगान टैगोर से प्रेरित
श्रीलंका के राष्ट्रगान (Srilanka National Anthem )’श्रीलंका मथा’ का एक हिस्सा रवींद्रनाथ टैगोर की कविता से प्रेरित है। श्रीलंका के राष्ट्रगान के बारे में कुछ और जानकारी यह है कि ‘श्रीलंका मथा’ के बोल आनंद समरकून ने लिखे थे। वहीं 22 नवंबर, 1951 को सर एड्विन विजेयेरत्ने की अध्यक्षता वाली एक समिति ने इस गीत को आधिकारिक रूप से श्रीलंका का राष्ट्रगान अपनाया था।
श्रीलंका के राष्ट्रगान के संगीत को रवींद्रनाथ टैगोर ने ही कंपोज़ किया था। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि पूरा राष्ट्रगान ही टैगोर ने लिखा था।
श्रीलंका: श्रीलंका मथा
सन 1948 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने पर श्रीलंका ने ” नमो नमो मथा ” को अपने राष्ट्रगान के रूप में अपनाया। गीत आनंद समरकून द्वारा लिखे गए थे, लेकिन संगीत रवींद्रनाथ टैगोर रचित था, और गान का मूल शीर्षक “नमो नमो मथा” था। ” श्रीलंका मठ ” (अंग्रेजी: “माँ श्रीलंका” ; सिंहल : ශ්රී ලංකා මාතා , रोमानीकृत: श्री लंका माता ; तमिल : ஸ்ரீ லங்கா தாயே , रोमानीकृत: श्री लंका ताये ) श्रीलंका का राष्ट्रगान है ।
“श्रीलंका मठ” की रचना आनंद समरकून ने की थी और मूल रूप से इसका शीर्षक ” नमो नमो मठ ” (“सलाम! सलाम! मातृभूमि”) था। “श्रीलंका माथा” को पहली बार 4 फरवरी 1949 को राष्ट्रीय दिवस समारोह के दौरान टॉरिंगटन स्क्वायर में स्वतंत्रता स्मारक हॉल में एक आधिकारिक समारोह में प्रस्तुत किया गया था। वहीं 1978 के दूसरे रिपब्लिकन संविधान में राष्ट्रगान को पूर्ण संवैधानिक मान्यता दी गई थी ।”श्रीलंका मठ” की उत्पत्ति के बारे में अलग-अलग विवरण हैं। सबसे व्यापक रूप से माना जाने वाला दृष्टिकोण यह है कि श्रीलंकाई संगीतकार आनंद समरकून ने भारतीय बंगाली कवि
रवींद्रनाथ टैगोर से प्रेरित/प्रभावित होकर गीत का संगीत और बोल लिखे थे।
इतिहासकारों ने नकार दिया
कुछ लोग कहते हैं कि टैगोर ने पूरा राष्ट्रगान लिखा था। कुछ ने सुझाव कहा है कि टैगोर ने संगीत लिखा था। जबकि समरकून ने गीत लिखे थे। श्रीलंका मथा लिखने वाले आनंद समरकून शांति निकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर के पास रहे थे. आनंद समरकून ने एक बार बताया था कि वे टैगोर स्कूल ऑफ पोएट्री से बेहद प्रभावित थे। टैगोर के गीत के निर्माण में सीधे तौर पर शामिल होने की बात को भारतीय लिपि घोष और श्रीलंकाई संदगोमी कोपरहेवा जैसे कुछ इतिहासकारों ने नकार दिया है। समरकून विश्व भारती विश्वविद्यालय , शांति निकेतन में टैगोर के शिष्य थे। सीलोन लौटने के बाद समरकून ने महिंदा कॉलेज , गैले में संगीत पढ़ाया । यह गीत, जिसे तब “नमो नमो माता” के नाम से जाना जाता था, यह गीत पहली बार महिंदा कॉलेज में छात्रों ने गाया गया था। एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कोलंबो के मुसेयस कॉलेज के गायक मंडली की ओर से गाए जाने के बाद यह सीलोन में बहुत लोकप्रिय हो गया व रेडियो पर व्यापक रूप से बजाया गया।