अरब लीग से ताल्लुक
सऊदी अरब के अल खोबर में जन्मी समीरा अज़ीज़ एक सऊदी नागरिक हैं। पेशे से सऊदी मीडिया मंत्रालय में से एक सीनियर एक प्रशिक्षित पत्रकार हैं और जद्दा में “समीरा अजीज ग्रुप ऑफ कंपनीज” की चेयरपर्सन भी हैं। उन्होंने “अंतरराष्ट्रीय संगठन के लिए पीएच.डी.की है और वे शायरा के साथ -साथ उर्दू विभाग की वैश्विक प्रमुख हैं, जो संयुक्त राष्ट्र और अरब लीग से संबद्ध है।कम समय में किया कमाल
समीरा अज़ीज़ ( Sameera Aziz) इंटरनेशनल रिलेशंस में मास्टर्स, पत्रकारिता में मास्टर्स, मास मीडिया में मास्टर्स ( उन्हें फिल्म निर्माण में विशेषज्ञता) हैं। खास बात यह है कि उन्होंने नौ साल पहले लिखना शुरू किया। उन्होंने उपन्यास लेखन, कथा लेखन, निबंध लेखन, कविता, फिल्म पटकथा, समाचार लेखक, संपादकीय, सामाजिक और राजनीतिक स्तंभ लिखना शुरू किया। वे लेखन, शोध पत्र, गीत के बोल, स्टेज शो और क्रिकेट में प्रयोग कर रही हैं। उनकी कई साहित्यिक कृतियां शाइरी की कई किताबें हैं, जिनमें से कुछ क्रमबद्ध भी हैं। उनके कविता संग्रह कलाम में कागज़ की ज़मीन, डिजिटल एलबम और मोम की गुड़िया शामिल हैं।सऊदी सांस्कृतिक पुरस्कार मिला है
वे सऊदी अरब की पहली उर्दू उपन्यासकार और खातून हैं , उन्हें अकादमिक और साहित्यिक सम्मान मिलते रहे हैं, जीसीसी राइटर्स अवार्ड, ग्रेट वुमन अवार्ड दुबई, जर्नलिज्म अवार्ड, बिजनेस अवार्ड, सऊदी सांस्कृतिक पुरस्कार (ए) (मीडियाकर्मियों आदि सहित) से नवाजा जा चुका है। उन्होंने सऊदी अरब के (अतीत के) रूढ़िवादी पुरुष समाज में उर्दू और अंग्रेजी का उपयोग किया है। उन्होंने शीर्ष पत्रिकाओं में प्रतिष्ठित पदों पर रहते हुए, न केवल साहसिक पत्रकारिता की है, बल्कि महिलाओं और मानवाधिकारों पर भी काम किया है। उन्हें उर्दू का विशेष ज्ञान है।अरब में खिलते हैं उर्दू शायरी के फूल
आज मीडिया, क्रिकेट, साहित्य, फिल्म और व्यवसाय को संदर्भित और मान्यता दी जाती है, लेकिन उनकी शायरी समाज को वचन देते हुए वह कहती हैं कि ‘अगर सऊदी अरब के रेगिस्तान से उर्दू शेर ओ नस्र के गुलाब ले कर मैं निकली, तो उर्दू का यह फूल यहां मुरझा न जाए, उस वक्त बतौर सऊदी शहरी मैं आगे न आई तो उर्दू का झंडा उठा कर इस सहरा से दुनिया में कौन निकलेगा? हमारे इस रेगिस्तान में भी महान भाषा ‘उर्दू’ के फूल खिलते हैं, कौन बताएगा? फिर इतिहास मुझे कभी माफ नहीं करेगा।’समीरा अज़ीज़ के शेर
समीरा अज़ीज़ से जब उनके चुनिंदा शेर के बारे में पूछा तो उन्होंने ये शेर सुनाए : यूं ही नहीं सुख़न का असासा मिला मुझे,
गुज़री है मेरी उम्र किताबों के दरम्यां। हर कदम फ़र्ज़ मुहब्बत का निभाया जाता,
बेटा होती तो मुझे घर में सजाया जाता। किसलिए पैदा किया इतना बताओ मुझको,
जब मेरा बोझ नहीं तुमसे उठाया जाता।
गुज़री है मेरी उम्र किताबों के दरम्यां। हर कदम फ़र्ज़ मुहब्बत का निभाया जाता,
बेटा होती तो मुझे घर में सजाया जाता। किसलिए पैदा किया इतना बताओ मुझको,
जब मेरा बोझ नहीं तुमसे उठाया जाता।
गर्दन झुकी हुई है उसको झुकाए रखना,
या रब मुझे परिंदा यूं ही बनाए रखना।
या रब मुझे परिंदा यूं ही बनाए रखना।
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