तक्षक ने बताया कि भारत के बाहर केवल मॉरीशस ( Mauritius ) एक ऐसा देश है जहाँ सर्वाधिक हिन्दी बोली जाती है। विश्व हिन्दी सचिवालय भी यहीं स्थित है। मॉरीशस में जन्मे पले बढ़े हिंदी के लेखक राज हीरामणि ( Raj Hiramani) के मतानुसार हिंदी भाषा धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव का माध्यम भर बन गई है। हालांकि महात्मा गांधी संस्थान में अभी हिन्दी पढ़ाई जाती है।
तक्षक ने बताया कि सन 2005 में सैम पित्रोदा की अध्यक्षता में गठित ‘ज्ञान आयोग’ ने अंग्रेजी भाषा को पहली कक्षा से अनिवार्य रूप से पढ़ाने की सलाह दी। इस सलाह के परिणामस्वरूप रोजगार के दरवाजे भी अंग्रेजी में ही खुलने लगे। हिन्दी पिछले पायदान पर खिसक गई।
विगत दशकों में भारत में हिन्दी भाषा पर जोर नहीं दिया गया है। परिणाम स्वरूप हिंदी भाषा, व्यापार की भाषा न बन सकी। हिंदी, ई मेल की भाषा न बन सकी और हिन्दी व्यवहार की भाषा न बन सकी, यानि हिन्दी रोजगार की भाषा न बन सकी। भारत की स्थिति का प्रभाव विदेशों पर भी पड़ा।
तक्षक ने कहा कि नीदरलैंड्स की ही बात करें तो यहाँ चार विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ने की व्यवस्था थी। अब से एक दशक पूर्व लायडन, एम्स्टर्डम, उटरेख्ट और ग्रोनिंग इन चारों विश्वविद्यालयों में इण्डोलोजी तक के विभागों को खत्म कर दिया गया। वहीं सन 2013 में ओहम टी वी भी बंद कर दिया गया। यही नहीं, सरनामी पत्रिका तो बहुत पहले ही बंद हो गई थी। इस समय ‘साहित्य का विश्व रंग’ व ‘एम्स्टल गंगा’ पत्रिकाएं नीदरलैण्ड से प्रकाशित की जा रही हैं। साथ ही इस समय हिन्दी में, उजाला रेडियो नीदरलैंड्स में सक्रिय है।
उन्होंने बताया कि यहाँ के मंदिरों में धार्मिक व सांस्कृतिक अनुष्ठानों में हिन्दी का उपयोग किया जाता है। यहाँ पर हिन्दू समुदाय के विवाह अनुष्ठान भी मंदिरों में ही होते हैं। इस कारण हिन्दी पढ़ाई भी जाती है। मूलतः वयस्क और बुजुर्ग लोग हिन्दी सीखते हैं। नीदरलैंड्स हिंदी परिषद की ओर से हिन्दी पढ़ाई जाती है। कोविड पूर्व के वर्ष के आंकड़ों की मानें तो शायद बीस से अधिक छात्र नहीं थे। हालांकि नब्बे के दशक में नीदरलैंड्स हिंदी परिषद के हजारों छात्रों ने हिंदी भाषा पढ़ी है। गांधी केंद्र द हेग में हिंदी और संस्कृत दोनों भाषाएँ पढ़ाई जा रही हैं। वर्तमान में छात्रों की संख्या बीस के आसपास है।
तक्षक ने बताया कि कनाडा में सिक्ख समुदाय की बहुलता के कारण पंजाबी का आधिपत्य है। हिन्दी दूसरी सीढ़ी पर है। एक ओर ब्रिटेन ( Britain) से वरिष्ठ साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा ( Tejendra Sharma ) का मत है कि “हिंदी भाषा के पठन पाठन के आंकड़े सही नहीं हैं। हिन्दी धार्मिक व सांस्कृतिक जोड़ का सेतु है।” साथ ही ब्रिटेन से ही वरिष्ठ साहित्यकार कादम्बरी मेहरा ( Kadambari Mehra ) का कहना है “जो लोग भारत में पले बढ़े हैं और शिक्षा पाई है। वे ही हिन्दी बोलते हैं। भारतवंशियों की दूसरी पीढ़ी हिन्दी के प्रति आशावादी नहीं हैं।”
पुर्तगाल (Portugal) से प्रोफेसर शिव कुमार ( Prosfessor Shivkumar) लिखते हैं कि पुर्तगाल व भारत का पांच सौ साल का इतिहास है। कुछ पुर्तगाली अपने बच्चों को हिन्दी, गुजराती सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इटली ( Italy) से विनोद चौधरी ( Vinod Choudhary) ने बताया कि भारतवंशियों की दूसरी पीढ़ी हिन्दी सीखने को प्राथमिकता नहीं दे रही है। दक्षिण अफ्रीका में ‘हिंदी शिक्षा संघ’ में हिन्दी सिखाई जाती है।
तक्षक ने बताया कि चीन के लगभग बीस विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षण हो रहा है। चीन व्यापारिक और कूटनीतिक क्षेत्र में हिंदी की सीख को हथियार के काम मेंं ले रहा है। यहाँ तक कि भारतीय सीमा पर तैनात चीनी सैनिकों को हिंदी सीखनी पड़ती है।
उन्होंने बताया कि सिडनी ( ) से डॉ भावना कुंवर ( ) के मतानुसार 2007 से ऑस्ट्रेलिया में अब हिन्दी प्राइमरी और हाईस्कूलों के साथ-साथ सप्ताहांत स्कूलों में भी पढ़ाई जाती है। लाँग-डिस्टेंस लर्निग में कई यूनिवर्सिटीस और निजी प्रबंधन में भी हिन्दी पढ़ाई जा रही हैं। वर्ष 2021 के आँकड़ों के अनुसार 197,132 लोग ऑस्ट्रेलिया में हिन्दी बोलते हैं।
तक्षक कहते हैं कि अमरीका ( America ) से वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार अशोक सिंह ( Ashoksingh) के मतानुसार यहाँ में पिछले दो दशकों से हिन्दी भाषा को सिखाने का श्रेय हिन्दी यू. एस. ए., बाल-विहार, यू एस हिन्दी एसोसिएशन, चिन्मय मिशन, बाल गोकुलम् व विश्व हिन्दी न्यास आदि को जाता है। अमरीकी सरकार ने 2007 में एक नए राष्ट्रीय कार्यक्रम ‘स्टारटॉक’ की घोषणा की थी, जिसमें 10 विभिन्न भाषाओं, जिसमें हिन्दी भी शामिल है, इसका पाठ्यक्रम शामिल किया गया था। जहां तक विश्वविद्यालयों का संबंध है – अमरीका में 150 से अधिक महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है।
सिंगापुर ( Singapore) से डॉ संध्या सिंह ( Sandhyasingh ) ने बताया कि सिंगापुर में हिन्दी भाषा को मान्यता प्राप्त है। लिहाजा विद्यालयों में मातृभाषा के घंटे में हिंदी शिक्षण का कार्य दो संस्थाओं हिंदी सोसायटी सिंगापुर व डीएवी हिंदी स्कूल करते हैं। इस समय हिन्दी सोसायटी सिंगापुर में लगभग 4500 और डीएवी हिन्दी स्कूल में 4000 के आसपास छात्र हैं। अंतरराष्ट्रीय विद्यालयों में ग्लोबल इंडियन इंटरनेशनल स्कूल, एनपीएस इंटरनेशनल स्कूल, डीपीएस इंटरनेशनल स्कूल आदि मुख्य हैं, जिनमें पढ़ने वाले छात्र द्वितीय भाषा के रूप में ज़्यादातर हिन्दी ही चुनते हैं। इनकी संख्या हज़ारों में है। इसके अतिरिक्त नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर ( National University of Singapore) और नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ( Nanyang Technological University ) में भी हिन्दी सिखाई जाती है।
वे कहते हैं कि इस जानकारी से यह तो स्पष्ट है कि वैश्विक स्तर पर, हिन्दी की स्थिति इन्द्रधनुषी नहीं है। भाषाओं के संक्रमण काल में हमें व्यक्तिगत, पारिवारिक, मैत्री, सामाजिक, संस्थाओं, लेखन पठन, पत्रकारिता और सोशल मीडिया के स्तर पर और सरकारी स्तर पर हिंदी की पहचान को समृद्ध और संरक्षण करने के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।