शुक्रवार को G-7 देश और यूरोपीय यूनियन ने रूस से आयात होने वाले कच्चे तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप लगाने का फैसला किया था। इसे सोमवार, 5 दिसंबर से लागू किया जाना था। मगर रूस ने इन पश्चिमी देशों की ओर से 60 डॉलर के प्राइल कैप को स्वीकार करने से मना कर दिया है। यूक्रेन पर हमले के बाद से ही पश्चिमी देश रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा चुके हैं। हालांकि वो तमाम प्रतिबंधों के बाद भी रूस की अर्थव्यवस्था को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचा सके हैं।
दरअस, यूक्रेन युद्ध को लेकर पश्चिमी देश रूस को सबक सिखाना चाहते हैं। अब वो रूस के ऑयल पर प्राइस कैप लगाकर उसकी फाइनेंशियल कंडीशन को कमजोर करना चाहते हैं। क्योंकि रूस ने कच्चे तेल को बेचकर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखा है। फिलहाल रूसी तेल का भाव 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल है, जोकि 60 डॉलर प्रति बैरल के प्राइस कैप से ज्यादा है।
शुक्रवार को रूसी तेल पर प्राइस कैप लगाने के फैसले का यूक्रेन ने स्वागत करते हुए कहा कि इससे रूस की अर्थव्यवस्था ‘बर्बाद’ हो जाएगी। हालांकि, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूसी ऑयल पर लगाए गए प्राइस कैप को कम ही बताया है। उनका कहना है कि G-7 देशों और यूरोपीय यूनियन की ओर से लगाए गए मौजूदा प्राइस कैप का पर्याप्त असर नहीं होगा। यूक्रेन ने कहा कि रूसी तेल पर 30 डॉलर प्रति बैरल का प्राइस कैप लगना चाहिए।
वहीं दूसरी तरफ इंटरनेशनल संस्थानों के वियाना में स्थायी प्रतिनिधि मिखाइल उल्यानोव ने चेतावनी दी है कि प्राइस कैप का फैसला यूरोप और उनके समर्थन में खड़े देशों के लिए भारी पड़ सकता है। उन्होंने एक ट्वीट में लिखा, “इस साल से यूरोप को अब रूसी तेल के बिना ही रहना होगा। मॉस्को ने पहले ही साफ कर दिया था कि वो एंटी-मार्केट प्राइस कैप के समर्थन में खड़े देशों को तेल सप्लाई नहीं करेगा। बहुत जल्द यूरोपीय यूनियन रूस पर तेल को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाएगा।”
रूसी तेल के बड़े खरीदार भारत और चीन हैं। ये दोनों ही देश अपनी जरूरतों के लिए यूरोप के किसी प्राइस कैप को नहीं मानते। सूत्रों के अनुसार, भारत अभी भी रूसी क्रूड ऑयल के लिए ब्रेंट से 15-20 डॉलर प्रति बैरल कम भुगतान कर रहा है। इसका मतलब है कि डिलीवर किए गए कार्गो की कीमत भी प्राइस कैप के आसपास ही है। इसलिए प्राइस कैप लगने के बावजदू भारत पर किसी भी तरह का असर नहीं पड़ने की संभावना है।