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पाक सेना ने जस्टिस ईसा के खिलाफ मोर्चा खोला

विश्व परिदृश्य: सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस काजी फैज ईसा के स्वतंत्र विचारधारा वाले फैसलों ने पाकिस्तानी हुकूमत को थोड़ा नाराज कर दिया है। चूंकि जस्टिस ईसा ने अपने खिलाफ लगाए जा रहे तमाम झूठे आरोपों के सामने झुकने से इनकार कर दिया है। लिहाजा, पाकिस्तान में मौलिक स्वतंत्रता की कीमत चुकानी पड़ रही है।

Jan 06, 2022 / 01:28 pm

Giriraj Sharma

पाक सेना ने जस्टिस ईसा के खिलाफ मोर्चा खोला

पाक सेना ने जस्टिस ईसा के खिलाफ मोर्चा खोला

अरुण जोशी
(दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलों के जानकार)

पाकिस्तान में सेना के बढ़ते वर्चस्व को लेकर यों तो कभी कोई संदेह रहा ही नहीं, लेकिन अब तो इसने सिविल सोसायटी को चारों ओर से निरुद्ध कर दिया है और देश की सर्वाधिक सम्मानित संस्था न्यायपालिका के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस काजी फैज ईसा के स्वतंत्र विचारधारा वाले फैसलों ने पाकिस्तानी हुकूमत को थोड़ा नाराज कर दिया है। चूंकि जस्टिस ईसा ने अपने खिलाफ लगाए जा रहे तमाम झूठे आरोपों के सामने झुकने से इनकार कर दिया है, इसलिए अब उनके परिवार को डराया-धमकाया जा रहा है।

आम तौर पर सभ्य समाज में ऐसा नहीं होता। जस्टिस ईसा का परिवार इन दिनों पाक सरकार के निशाने पर है। पाक सैन्य गुप्तचर इकाई और खुफिया एजेंसी आइएसआइ के सदस्य जस्टिस ईसा के घर में उस वक्त जबरन घुस गए, जब उनकी पत्नी सबरीना और दोनों बेटियां घर पर थीं, और उन्हें डराया-धमकाया, प्रताडि़त किया। सबरीना ने प्रधानमंत्री इमरान खान को पत्र लिख कर पूछा कि उनके परिवार के साथ यह क्यों हो रहा है?

निष्पक्ष एवं बिना किसी दबाव के अपना काम करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज के परिवार के साथ ऐसा दुव्र्यवहार कर मानो देश में एक संदेश दिया जा रहा हो कि किसी को भी सेना या सरकार के खिलाफ बोलने की हिमाकत नहीं करनी चाहिए, भले ही वह बात तथ्यों पर आधारित हो और देश की सर्वोच्च अदालत में कही गई हो। यह एक राष्ट्र के तौर पर पाकिस्तान का पतन है, जिसे पूरी दुनिया देख रही है। लेकिन इससे पहले कि दुनिया पाकिस्तान के इन भद्दे घटनाक्रमों का संज्ञान ले, पाकिस्तान अपने ही नागरिकों को जस्टिस ईसा का उदाहरण पेश करके डरा रहा है।

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सबरीना ईसा के पत्र में लिखा ब्योरा डराने वाला है, फिर भी कोई संज्ञान नहीं लिया गया। न ही कोई ऐसा दावा किया जा रहा है कि उन सैन्य व आइएसआइ अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही की जा रही है। इसके मूल में है क्या? पहला, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस ईसा के पिता काजी मुहम्मद ईसा प्रख्यात वकील थे और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी थे। उनका परिवार बलूचिस्तान से संबद्ध है। जस्टिस ईसा पाक हुकूमत की भूमिका के मुखर आलोचक रहे हैं। उन्होंने पाक सरकार की दोहरी नीति को उजागर किया है। साथ ही पाक सेना की भी, जो अपने हित साधने के लिए दोनों ही पक्षों की सुन रही है और मान भी रही है।

आतंक और उग्रवाद के खिलाफ सख्त रुख के कारण उकसावे में आकर सेना स्वार्थवश जस्टिस ईसा के खिलाफ हो गई। 8 अगस्त 2016 को क्वेटा के सिविल अस्पताल में हुए आत्मघाती हमले की जांच करने वाले आयोग की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने आतंकवाद रोधी कानून लागू कर आतंकी संगठनों पर तुरंत पाबंदी लगाने की मांग उठाई थी। इस हमले में 74 जानें गई थीं। इनमें ज्यादातर वकील थे।

ईसा ने 56 दिन में यानी 6 अक्टूबर 2016 को आयोग की रिपोर्ट दे दी थी। साथ ही अफसोस जताया था कि तत्कालीन आंतरिक मामलों के मंत्री चौधरी निसार अली खान ने तीन प्रतिबंधित संगठनों ‘सिपाह-ए-सहबाÓ पाकिस्तान, मिल्लत-ए-इस्लामिया और अहले सुन्नत वल जमात के प्रमुख मौलाना मुहम्मद अहमद लुधियानवी से मुलाकात की थी। रिपोर्ट में उन्होंने सरकार से भी जवाब मांगा था। यह पाक सेना को हैरान करने वाला कदम था, जिसने कभी पाक आतंकियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की। इसलिए सेना ने जस्टिस ईसा के खिलाफ ही अभियान छेड़ दिया और मान लिया कि जस्टिस ईसा ने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में सेना को दोषी ठहराया है.

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रिपोर्ट में उन्होंने पाक सरकार को दोषी ठहराते हुए लिखा था कि ‘यह देश उन लोगों ने बनाया है जो उपमहाद्वीप में मुसलमानों के हालात बेहतर बनाना चाहते हैं और हर धर्मावलम्बी की स्वतंत्रता बनाए रखना चाहते हैं। दुर्भाग्यवश पाख्ंडियों और अतिवादियों ने एकता, विश्वास और अनुशासन का संदेश विकृत कर दिया, इसे नकारा जाना चाहिए।Ó लेकिन पाकिस्तान में ठीक उल्टा हो रहा है। वहां सेना उग्रवाद और आतंकवाद को संरक्षण दे रही है, जिससे देश की छवि खराब हो रही है जबकि जस्टिस ईसा को मौलिक स्वतंत्रता की मांग उठाने की कीमत चुकानी पड़ रही है।

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