करबला की जंग
प्रामाणिक धार्मिक इतिहास के अनुसार करबला की जंग में इमाम हुसैन का साथ देने गए हुसैनी ब्राह्मण भी शहीद हुए थे। ये वही हुसैनी ब्राह्मण थे, जो हुसैन की दुआ के बाद जन्मे थे। पाकिस्तान के मशहूर साहित्यकार इंतजार हुसैन ने इतिहास के आधार पर यह तथ्य प्रमाणित किया है। हुसैनी ब्राह्मणों का मानना है कि उनके पूर्वज राहिब दत्त ने अपने बेटों के साथ करबला में इमाम इमाम हुसैन के साथ लड़ाई लड़ी थी। जानकारी के अनुसार करबला की जंग में इमाम हुसैन के साथ उनके परिवार और 72 साथियों के अलावा दत्त परिवार के 7 बेटे भी शहीद हुए थे।हुसैनी ब्राह्मण के नाम से जाना जाता
दरअसल, 1400 साल पहले इराक की सरजमी पर एक ऐसी जंग लड़ी गई थी, जिसे ‘करबला की जंग’ के नाम से जाना जाता है। अपनी खुदाई का दावा करने वाले क्रूर यजीद के पत्थर दिल फरमानों से इमाम हुसैन के साथ उनके काफिले के कई लोगों ने यह जंग लड़ी थी, जिसमें सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि ब्राह्मण हिंदू भी शामिल थे, उन्हें हुसैनी ब्राह्मण के नाम से जाना जाता है।भारत के ब्राह्मण गए थे
शिया मौलाना जलाल हैदर नकवी बताते हैं कि करबला की जंग क्रूर शासक यजीद के जुल्म ओ सितम के खिलाफ इमाम हुसैन ने लड़ी थी। इस जंग में मुसलमानों का बड़ा तबका यजीद के साथ था, जो हक पर थे, वही हुसैन के साथ थे। ऐसे में इमाम हुसैन का साथ देने भारत के ब्राह्मण गए थे।ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के लोग
जानकारी के अनुसार हुसैनी ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के लोग हिंदू और मुसलमान दोनों में होते हैं। मौजूदा समय में हुसैनी ब्राह्मण अरब, कश्मीर, सिन्ध, पाकिस्तान, पंजाब, महाराष्ट्र राजस्थान, दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं। ये लोग इस्लामी हिजरी सन के पहले महीने मुहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत के गम में मातम और मजलिस करते हैं।सुनील दत्त और कश्मीरीलाल
यहां तक कि इस समुदाय से कई प्रसिद्ध हस्तियों का नाम भी जोड़ा जाता है। कहते हैं कि फिल्म अभिनेता और सांसद रहे स्वर्गीय सुनील दत्त हुसैनी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इसके अलावा उर्दू साहित्यकार कश्मीरीलाल जाकिर, साबिर दत्त और नंदकिशोर विक्रम ब्राह्मण समुदाय से जुड़े नाम हैं।इमाम हुसैन की दुआ से जन्म हुआ
प्रोफेसर असगर नकवी बताते हैं कि पैगंबर मोहम्मद के दौर की बात है, जब सुनील दत्त के पूर्वजों के संतान नहीं हो रही थी। उस समय वह अल्लाह के रसूल पैगंबर मोहम्मद के पास पहुंचे। दत्त परिवार ने अपनी बात रखते हुए कहा ऐ रसूल! हमारे परिवार में औलाद नहीं हो रही है। यह सुन कर नबी ने इमाम हुसैन से कहा कि आप इनके लिए दुआ करो, उस वक्त इमाम हुसैन बच्चे थे और वे खेल रहे थे। हुसैन ने अपने हाथ उठा कर खुदा से उनके लिए दुआ की। इमाम हुसैन की दुआ के बाद दत्त परिवार में बेटे का जन्म हुआ, तभी से ये हुसैनी ब्राह्मण के नाम से पहचाने जाने लगे। करबला की जंग में इमाम हुसैन का साथ देने गए हुसैनी ब्राह्मण भी शहीद हो गए थे, ये वही हुसैनी ब्राह्मण थे, जो हुसैन की दुआ के बाद जन्मे थे।कौन हैं हुसैनी ब्राह्मण
जानकारी के अनुसार हुसैनी ब्राह्मण पंजाब का एक मोहयाल ब्राह्मण समुदाय है। मोहयाल समुदाय में सात उप-गोत्र शामिल हैं, जिनके नाम बाली,भीमवाल,छिब्बर,दत्त ,लाउ व मोहन और वैद हैं। अपनी हिंदू परंपरा के अनुरूप , उन्होंने गैर- भारतीय परंपराओं को अपनाया है। इसके कारण मोहयाल समुदाय का एक छोटा सा उप-समूह इस्लाम और विशेष रूप से तीसरे इमाम हुसैन के प्रति के प्रति श्रद्धा रखने लगा है।