इस एग्रीमेंट पर भारत, अमरीका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, यूरोपीय संघ, इटली, फ्रांस और जर्मनी ने हस्ताक्षर किए हैं। भारत: मुंद्रा (गुजरात), कांडला (गुजरात), और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई) इसके बंदरगाह हैं। वहीं मध्य पूर्व में संयुक्त अरब अमीरात में फ़ुजैरा, जेबेल अली और अबू धाबी के साथ-साथ सऊदी अरब में दम्मम और रास अल खैर बंदरगाह हैं।
रेलवे लाइन फ़ुजैरा बंदरगाह (यूएई) को सऊदी अरब (घुवाईफ़ात और हराद) और जॉर्डन के माध्यम से हाइफ़ा बंदरगाह (इज़राइल) से जोड़ेगी। इसी तरह इज़राइल में हाइफ़ा बंदरगाह,
यूरोप में ग्रीस में पीरियस बंदरगाह, दक्षिण इटली में मेसिना और फ्रांस में मार्सिले शामिल हैं। इसका उद्देश्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने वाला एक व्यापक परिवहन नेटवर्क बनाना है, जिसमें रेल, सड़क और समुद्री मार्ग शामिल हैं।
पारदर्शी बुनियादी ढांचा साझेदारी
भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर, जी20 शिखर सम्मेलन, ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी), बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई), यूरेशियन क्षेत्र, एसईजेड विशेष आर्थिक क्षेत्र है। यह भारत के महत्वपूर्ण है। नई दिल्ली में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) परियोजना पर हस्ताक्षर किए गए, जो भारत के लिए महत्वपूर्ण भूराजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ रखता है। यह परियोजना वैश्विक अवसंरचना और निवेश साझेदारी (पीजीआईआई) का हिस्सा है। पीजीआईआई कई और मध्यम आय वाले देशों के विशाल बुनियादी ढांचे की जरूरतें पूरी करने के लिए एक मूल्य-संचालित, उच्च-प्रभाव और पारदर्शी बुनियादी ढांचा साझेदारी है।
इसका भूराजनीतिक और आर्थिक निहितार्थ चीन के BRI को विफल करना है। आईएमईसी को यूरेशियाई क्षेत्र में चीन के बैल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के संभावित प्रतिकार के रूप में देखा जाता है। यह खासकर अमरीका के साथ ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंधों वाले क्षेत्रों में चीन के बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव को संतुलित करने का काम कर सकता है ।
इसका एक मकसद अरब प्रायद्वीप के साथ रणनीतिक जुड़ाव रखना भी है। यह कॉरिडोर स्थायी कनेक्टिविटी स्थापित कर और क्षेत्र के देशों के साथ राजनीतिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ा कर अरब प्रायद्वीप के साथ भारत की रणनीतिक भागीदारी को गहरा करता है।
आईएमईसी प्रमुख क्षेत्रों के साथ अपनी व्यापार कनेक्टिविटी बढ़ाकर आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए भारत के लिए एक परिवर्तनकारी अवसर देता है। यह मार्ग पारगमन का समय काफी कम कर सकता है, जिससे स्वेज नहर समुद्री मार्ग की तुलना में यूरोप के साथ व्यापार 40% तेज हो जाएगी।
रोज़गार मिलेगा
इस कॉरिडोर के कारण जैसे-जैसे बेहतर कनेक्टिविटी के कारण आर्थिक गतिविधियों का विस्तार होगा, सभी क्षेत्रों में नौकरी के अवसरों में वृद्धि होगी। व्यापार, बुनियादी ढांचे और संबद्ध उद्योगों में वृद्धि के लिए रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कुशल और अकुशल श्रम की आवश्यकता होगी।
ऊर्जा सुरक्षा और संसाधन पहुंच
यह कॉरिडोर विशेष रूप से मध्य पूर्व से सुरक्षित ऊर्जा और संसाधन आपूर्ति की सुविधा दे सकता है। इन संसाधनों तक विश्वसनीय पहुंच भारत के ऊर्जा क्षेत्र को स्थिर करेगी और इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था को समर्थन देगी।
आईएमईसी की कई चुनौतियां हैं। इनमें रसद और कनेक्टिविटी मुद्दे हैं। इसमें कई देशों तक फैले रेल, सड़क और समुद्री मार्गों को शामिल करते हुए एक मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर विकसित करने के लिए हितधारकों के बीच जटिल लॉजिस्टिक योजना और समन्वय की आवश्यकता है। इनमें सबसे व्यवहार्य और लागत प्रभावी मार्गों का चयन करना, रेल और सड़क कनेक्शन की व्यवहार्यता का आकलन करना और इष्टतम कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना प्रमुख चुनौतियां हैं।
इस अंतर-महाद्वीपीय कॉरिडोर को साकार करने में विविध हितों, कानूनी प्रणालियों और प्रशासनिक प्रक्रियाओं वाले कई देशों के बीच प्रयासों, नीतियों और विनियमों का समन्वय करना एक बड़ी चुनौती है।
मौजूदा परिवहन मार्गों, विशेष रूप से मिस्र की स्वेज़ नहर का विरोध या प्रतिस्पर्धा से यातायात और राजस्व में कमी देखी जा सकती है, चुनौतियाँ और राजनयिक बाधाएँ पैदा हो सकती हैं।