इस तरह होती हैं संक्रामक बीमारियां
माना जाता है कि जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र तनुकरण प्रभाव नामक एक घटना के माध्यम से संक्रामक रोगों के प्रसार को सीमित करते हैं। शोध के अनुसार इंसानी दखल से जैसे ही मनुष्य जैव विविधता को नष्ट करता है, दुर्लभ प्रजातियां सबसे पहले गायब हो जाती हैं और संक्रामक रोगों का खतरा बढ़ जाता है। जलवायु परिवर्तन व रासायनिक प्रदूषण जैसे वैश्विक परिवर्तन भी कई तरीकों से संक्रामक रोग बढ़ाते हैं।
गैर-देशी प्रजातियां लाती हैं रोगजनक
जब गैर-देशी प्रजातियों को पर्यावरण में लाया जाता है, तो वे अपने साथ नए रोगजनकों और परजीवियों को लाते हैं, जिससे नई बीमारियों का प्रकोप हो सकता है। ऐसा ही हुआ जब एशियन टाइगर मच्छर एशिया से यूरोप पहुंचा और अपने साथ डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ लेकर आया। जलवायु परिवर्तन प्रजातियों के प्रवासी पैटर्न को बदल सकता है, जिससे उन्हें नए क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है, जहां वे स्थानीय प्रजातियों के संपर्क में आ सकते हैं और रोगजनकों की अदला-बदली कर सकते हैं