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युद्ध के चलते यूरोप से आई आवाज़,कलम की धार तीखी कर तू दुष्यंत का चेला है !

Hindi in Europe : हिन्दी भाषा का वैश्विक कैनवास इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहा है। हिन्दी भाषा की अनुगूंज विदेशों में भी सुनाई दे रही है। इस काम में प्रवासी भारतीयों का विशेष योगदान है।

नई दिल्लीOct 06, 2024 / 02:44 pm

M I Zahir

Hindi in Europe

Hindi in Europe

Hindi in Europe : विदेश हिन्दी से आलोकित हो रहा है। वैश्विक भाषा, कला व संस्कृति संगठन की शुरुआत पर डेनहाग, नीदरलैंड में सजे यूरोपीय कवि सम्मेलन में भारतीयता के इंद्रधनुषी रंग बिखरे। प्रवासी भारतीय साहित्यकार डॉ. शिप्रा सक्सेना ने सीधे जर्मनी से बताया कि वैश्विक भाषा, कला व संस्कृति संगठन ( Global language Art and Culture Organisation – GLAC) संस्था के शुभारंभ के अवसर पर यूरोप के कई देशों के साहित्यकारों, कवियों, पत्रकारों व विचारकों के साथ भारत व मॉरीशस के गणमान्य अतिथि कार्यक्रम में शामिल हुए।

वृहद वैश्विक मंच प्रदान करेगा

बेल्जियम से आए संस्था के संस्थापक कपिल कुमार ने कहा, अभी तक यूरोप के अलग अलग देशों में भाषा, कला व संस्कृति की दिशा में अच्छा कार्य किया जा रहा था, किंतु यह कार्य बिखरा हुआ था, GLAC पहला ऐसा यूरोपीय संगठन है जो सारे यूरोप को ही नहीं, वरन सम्पूर्ण विश्व को एक साथ मिलकर कुछ अनूठा, कुछ नवीन व सार्थक कार्य करने के लिए प्रेरित करेगा और सभी को एक वृहद वैश्विक मंच प्रदान करेगा।

कोरी किताब के कैनवास पर कोई रंग भरते हैं

कपिलकुमार ने अपनी बेहतरीन ग़ज़लों से शुरुआत करते हुए कहा “माना कि झूठ का पर्वत है ऊँचा ,मगर सच में भी गहराई बहुत है “! हर शेर पर उन्होंने श्रोताओं की वाहवाही पाई। नीदरलैंड के विश्वास दुबे ने अपनी ग़ज़लों से सभी विशिष्ट अतिथियों का मन मोह लिया। जहां एक ओर राकेश पै की रचना “ कोरी किताब के कैनवास पर कोई रंग भरते हैं” ने भावों के रंग बरसाए, वही इंद्रेशकुमार की रचना “आम सभी को खाना है पर पेड़ नहीं लगाना है” पौधरोपण का महत्व बताया।

इशारे मैं समझ जाता, नजारे तू समझ जाता

सुशांत जैन की ग़ज़ल “कलम की धार तीखी कर तू, दुष्यंत का चेला है”, डॉ सोनी वर्मा के मधुर प्रकृति गीत “रूम झूम रूम झूम बादल बरसे , बिजुरी चमके” ने मौसम बदल दिया। आलोक शर्मा की जोशीली प्रस्तुति “बरसाने होली खेलने आयो कन्हाई, पर राधा न मिल पाई “ ने जहां एक ओर सुधि साहित्य प्रेमी लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया, वही शिवम जोशी की ग़ज़ल “इश्क में कौन छोटा कौन बड़ा”, मनीष पांडेय की हास्य का पुट लिए ग़ज़ल “घर में आते ही सूंघ लेती है, भांप लेती है, बीवी वो मीटर है जो अच्छे अच्छों को नाप लेती है,” महेश वल्लभ पांडेय की ग़ज़ल “इशारे मैं समझ जाता, नजारे तू समझ जाता, तो तेरे साथ मेरी उम्र , मेरा वक्त गुजर जाता”, अश्विनी केगांवकर की खूबसूरत रचना “जिंदगी तू है ख्वाबगाह” व “हौसलों की उड़ान तुम से है”, डॉ ऋतु शर्मा ननन पांडे की जिंदगी से सवाल करती सार्थक कविता “एक दिन जिंदगी से सवाल किया मैने” ने सुधि श्रोताओं को अभिभूत कर दिया।

हो गई पगडंडियां सूनी हमारे गांव की

इस अवसर पर साझा संसार के संस्थापक रामा तक्षक ने अपनी प्रसिद्ध कविता संस्कृति के राजदूत “ मैं राजदूत हूं भारत का, मैं पत्थर इसी इमारत का” सुना कर शुभकामनाएं दीं। ब्रिटेन की डॉ विद्यासिंह ने अपनी मधु मिश्रित वाणी में “हो गई पगडंडियां सूनी हमारे गांव की, हो गई बेरौनकें गालियां हमारे गांव की“ गाकर सभी को भावुक कर दिया। श्याम पाणिग्रही ने कार्यक्रम को अलग रंग देते हुए अपनी सुरीली आवाज में “कहीं दूर जब दिन ढल जाए “ गीत सुना कर सभी को झूमने पर विवश कर दिया। वहीं नन्ही अक्षिता पाणिग्रही ने अपनी कविता “एक एक तिनका जोड़ कर चिड़िया अपना घर बनाती है” से सभी के मन को जीत लिया।

तुम्हे कितना चाहते हैं ये जताना पड़ेगा

विश्वास दुबे ने राधा कृष्ण के अनूठे प्रेम को समर्पित अपनी रचना “ क्या राधा ने और श्याम ने एक दूसरे को खुल कर बताया होगा, सुनो प्यार करने लगे हैं तुमसे क्या ऐसे बोल कर जताया होगा” एवं अपनी पत्नी को समर्पित गज़ल “तुम्हे कितना चाहते हैं ये जताना पड़ेगा, एक ही बात को बार बार बताना पड़ेगा” सुना कर मन मोह लिया। डॉ शिप्रा सक्सेना ने मोहक अंदाज में अपने प्रसिद्ध गीत “आबे जम जम ” इस काया में क्या रखा है सबने ही मिट्टी माना है, मिट्टी से निर्मित काया को मिट्टी में ही मिल जाना है “ सुना कर भावविभोर ​कर दिया।

क्षमताओं व प्रेम का ताप इन तीनों के पास

संस्था की संरक्षक प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने कहा, कपिल, शिप्रा व विश्वास अद्भुत व्यक्तित्व है, सामर्थ्य बोलता है, उजाला हमारे पास आता नहीं, किंतु उसका ताप हम महसूस कर सकते है, वैसे ही क्षमताओं व प्रेम का ताप इन तीनों के पास है, उस ताप से वशीभूत होकर हम सब इस सारस्वत आयोजन में एकत्र हुए है। उन्होंने कहा, कवि किसी का नुकसान नही करता, यही उसके चरित्र की सच्चाई है। इस अवसर पर उन्होंने अनुरोध किया, आज विश्व में युद्ध हो रहे है, हिंसा भी, कवियों को अपनी लेखनी की धारदार कर इस विषय पर लिखना होगा। अंत में उन्होंने अपनी कविता आंखों की हिचकियां सुनाईं।

विदेशी भूमि पर भाषा, कला व संस्कृति के प्रति समर्पण

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत से राष्ट्रीय कवि संगम के राष्ट्रीय महामंत्री अशोककुमार बत्रा ने कपिल कुमार, डॉ शिप्रा सक्सेना, विश्वास दुबे की भूरि भूरि प्रशंसा करते हुए कहा, विदेशी भूमि पर अपनी भाषा, कला एवं संस्कृति के प्रति ये समर्पण विरले ही देखने को मिलता है, इस उत्सव से जुड़ना गौरव का विषय है। जहां उन्होंने अपने हास्य की कविताओं से लोगों का भरपूर मनोरंजन किया। वहीं महावीर क्यों महावीर हुए ,” वो आंखों में धूल झोकता, तुम हो आंखे चार किए। वो आंखों में धूल झोंकता , तुम आंखों में प्यार लिए” जैसी अपनी शानदार, भावपूर्ण सार्थक रचनाओं के पाठ से कवि सम्मलेन को चरम पर पहुंचा दिया। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मॉरीशस से वरिष्ठ पत्रकार व मीडियाकर्मी आशुतोष देशमुख ने कहा, हिंसा हमारे चारों ओर फैल रही है, ग्लोबल हिंसा को नीचे लाते हुए उन्होंने कहा, रिश्तों में भी हिंसा बढ़ रही है। सुनाने वाले ज्यादा हैं व सुनने वाले बहुत कम रह गए हैं।

नई पुस्तकों का विमोचन किया

डॉ शिप्रा सक्सेना ने मधुर कंठ से “गूंज रही है कान में वीणा की झंकार, अर्पण है मां आपको भावों का यह हार” सुंदर दोहों से मां वीणा वादिनी को नमन करते हुए काव्य संध्या को गति प्रदान की। इस अवसर पर संस्था के संरक्षकों प्रसिद्ध कथाकार व साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा , ब्रिटेन व नीदरलैंड की विख्यात साहित्यकार व कवयित्री प्रो. पुष्पिता अवस्थी ने शिरकत की। कार्यक्रम में डॉ शिप्रा शिल्पी, प्रो. पुष्पिता अवस्थी, रामा तक्षक व अश्विनी केगांवकर की नई पुस्तकों का विमोचन किया गया। साथ ही GLAC की ओर से सभी विशिष्ट अतिथियों को फूल, शाल व प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया। प्रवीण आर्य और अतुलकुमार ने हौसला अफजाई की। बेल्जियम से संस्था के संस्थापक कपिल कुमार ,नीदरलैंड से विश्वास दुबे व जर्मनी से डॉ. शिप्रा शिल्पी सक्सेना के संयोजन व संचालन में कार्यक्रम खूब जमा।

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