पाकिस्तान की तो दुश्मनी पुरानी
1947 में भारत विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान (Pakistan) भारत को अपना दुश्मन समझता रहा है, और भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचता रहा है। लेकिन चीन के संपर्क में आने के बाद से पाकिस्तान की हरकतें बढ़ती ही गईं। पाकिस्तान पर चीन के प्रभाव का सबसे बड़ा उदाहरण चीन का प्रोजेक्ट CPEC यानी चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (China Pakistan Economic Corridor) है। ये परियोजना चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी BRI का हिस्सा है। समस्या ये है कि ये गलियारा पाक-अधिकृत कश्मीर यानी PoK से होकर जाता है, जो भारत का अपना क्षेत्र है। भारत ने कई मर्तबा इसे लेकर अपना विरोध दर्ज कराया है। क्योंकि यह गलियारा चीन को हिंद महासागर तक पहुंचने का एक खुला रास्ता दे देगा। जिससे भारत की सामरिक स्थिति ख़राब हो सकती है। सिर्फ इतना ही नहीं पाकिस्तान को चीन आर्थिक मदद के अलावा सैन्य और हथियारों की भी मदद देता है। इनका संयुक्त सैन्य अभ्य़ास भी होता है, हद तो तब हो जाती है जब ये अभ्यास भारत की सीमा बिल्कुल करीब होता है।
नेपाल भी अब चीन की जद में
नेपाल के साथ भारत के संबंध हमेशा प्रगाढ़ रहे हैं लेकिन कुछ वक्त से नेपाल और भारत के रिश्तों (Nepal India Relations) में थोड़ी बर्फ जम रही है। इसका कारण कोई और नहीं बल्कि चीन है। दरअसल नेपाल पिछले दो बार से चीन समर्थक सरकार बन रही है, जो भारत का कट्टर विरोध करती हैं। वर्तमान में नेपाल में चीन समर्थक केपी शर्मा ओली की सरकार है। चीन का प्रभाव नेपाल पर इस कदर हावी हो गया है कि अब नेपाल ने भी चीन की तरह विस्तारवादी और संप्रभुता का उल्लंघन जैसी हिमाकत कर दी है। दरअसल नेपाल ने भारत के हिस्सों लिपुलेख, लिपियाधुरा और कालापानी को अपने 100 रुपए के जारी नए नोटों पर छापा है, सिर्फ इतना ही नहीं नेपाल ने अपने मानचित्र में भी भारत के इन हिस्सों को अपना बताकर छापा है। ये बात अब नेपाल के घर-घर पहुंचाई जा रही है और स्कूलों तक में बच्चों को ये बात सिखाई जा रही है।
बांग्लादेश में कट्टर भारत विरोधी सरकार
बांग्लादेश में सैन्य तख्तापलट के बाद शेख हसीना ने अपने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर भारत की शरण ली तो इधर बांग्लादेश में चीन समर्थक और नोबल पुरस्कार विजेता मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में अंतिम सरकार का गठन हो गया। अब मोहम्मद युनूस चीन के इशारे पर काम कर रहे हैं। शेख हसीना पर तमाम तरह के मामले दर्ज कारकर उन्हें हत्यारा घोषित करने पर तुले हुए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं मोहम्मद युनूस की सरकार अब बांग्लादेश (India Bangladesh Relations) को धर्मनिरपेक्ष भी रहने दे रही है। 14 नवंबर को बांग्लादेश के अटार्नी जनरल ने संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने की मांग की है और बांग्लादेश को मुस्लिम राष्ट्र का दर्जा देने की मांग उठाई है। उन्होंने इसका तर्क ये दिया कि बांग्लादेश में 90 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमानों की है, इसलिए बांग्लादेश को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए।
आर्थिक परिदृश्य के लिहाज़ से देखें तो चीन का बांग्लादेश में बड़ा आर्थिक और प्रतिष्ठित निवेश है। मोहम्मद युनूस चीन समर्थक हैं, ऐसे में वे अगर चीन की निवेश या सहयोग को बढ़ावा देते हैं तो इससे भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के लिए सुरक्षा और व्यापार का खतरा पैदा हो जाएगा। यूनुस के मैकिनेंस मॉडल का उद्देश्य गरीबी असमानता और आर्थिक विकास है। अगर चीन इस मॉडल को बढ़ावा देने के लिए बांग्लादेश में अपनी हिस्सेदारी को बढ़ाता है, तो भारत के व्यापार और निवेश के अवसरों को नुकसान हो सकता है।
श्रीलंका पर चीन का सबसे ज्यादा प्रभाव
श्रीलंका सामरिक रूप से भारत के लिए सबसे अहम पड़ोसी देश है क्योंकि ये भारत के दक्षिणी हिस्से के बहुत पास है। चीन ने श्रीलंका को भारी कर्ज़ दिया हुआ है, जिससे वहां पर आर्थिक संकट आन पड़ा। 2022 में श्रीलंका में तख्तापलट इसी संकट का नतीजा था। इस संकट के बाद 2024 के सितंबर महीने में श्रीलंका में चुनाव हुए, इस चुनाव में वामपंथी और भारत विरोधी अनुरा कुमार दिसानायके ने जीत दर्ज की और सिर्फ इतना ही अब वहां के संसदीय चुनावों में भी अनुरा की पार्टी NPP ने ही जीत दर्ज की है। अनुरा मार्क्सवादी विचारधारा को मानते हैं। उन्हें चीन समर्थक भी माना जाता है। चीन का श्रीलंका में बड़े पैमाने पर निवेश है। खासतौर पर हंबनटोटा बंदरगाह और स्कॉटलैंड पोर्ट सिटी में। अनुरा दिसानायके अगर श्रीलंका की आर्थिक समस्याओं के समाधान के लिए चीन के दिए कर्ज और निवेश को सही ठहराते हैं, तो ये भारत के लिए भू-राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ा सकती है। क्योंकि श्रीलंका की राजनीति में चीन-समर्थक नेताओं का वर्चस्व है ऐसे में अगर श्रीलंका चीन की इशारों पर चला तो चीन हिंद महासागर में अपनी सैन्य और आर्थिक मौजूदगी और ज्यादा बढ़ा सकता है। ये भारत की समुद्री सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है, खासतौर पर तब, जब चीन हंबनटोटा बंदरगाह का सैन्य उपयोग करता है।
इस सिरदर्दी से कैसे निपटेगा भारत
हालांकि भारत के पड़ोसी राज्यों में चीन के वर्चस्व के बावजूद भारत का इन सभी देशों में निवेश है, कई तरह के प्रोजेक्ट चल रहे हैं और समय-समय पर भारत ने मुसीबत आने पर इनकी सहायता भी की है। लेकिन चीन की चालाकियों से बचने के लिए भारत भी कमर कस रहा है। इसका सबसे उदाहरण अंतर्राष्ट्रीय संगठन क्वाड (QUAD) है। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का ये समूह चीन के छक्के छुड़ाने के लिए काफी है। हाल ही में हुई QUAD की बैठक में चीन से निपटने की प्लानिंग की गई थी। जिसमें आर्थिक उद्यम और निवेश, सुरक्षा और सामरिक संरचना, इंफ्रा पोर्टेबल इनिशिएटिव जैसे कदम शामिल हैं। इसके अलावा भारत दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से संबंध मजबूत कर रह रहा है और रूस-ईरान से मजबूत व्यापारिक संबंध भी चीन को कंट्रोल में रख सकते हैं। चाबहार बंदरगाह प्रोजेक्ट इसी प्लानिंग का एक उदाहरण है।