बैठक में भारत ने स्पष्ट कहा है कि पहले सदस्यता के लिए कुछ मानक जैसे जीडीपी आकार, जनसंख्या आदि तय हों, फिर ये देखा जाए कि सदस्यता चाहने वाला देश इनमें से कितने मानदंडों पर खरा उतरता है, उसके बाद ही सदस्यता पर फैसला लिया जाए। गौरतलब है कि ब्रिक्स की सदस्यता के विस्तार का सुझाव पिछले साल चीन ने अपनी अध्यक्षता में हुए वर्चुअल शिखर सम्मेलन के दौरान दिया था। राष्ट्रपति जिनपिंग के इस सुझाव को चीन की विस्तारवादी आकांक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसके अंतर्गत वह समूह में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए अपने असर वाले देशों को समूह का सदस्य बनाना चाहता है।
बैठक में ये साफ हो गया है कि कुछ मौजूदा सदस्य कुछ देश विशेष की सदस्यता के लिए जोर दे रहे हैं। जैसे ब्राजील को जोर अर्जेंटीना को सदस्य बनाने पर है। वहीं, चीन तथा रूस चाहते हैं कि सऊदी अरब सदस्य बने। चीन का आग्रह इंडोनेशिया, ईरान को भी सदस्य बनाने के लिए है। पर भारत का आग्रह है कि चयन की प्रक्रिया में कुछ हद तक निष्पक्षता होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, जब दक्षिण अफ्रीका एक सदस्य के रूप में योग्य हो गया, तो एक बड़ी अर्थव्यवस्था नाइजीरिया को इससे बाहर क्यों होना चाहिए? गौरतलब है कि साउथ अफ्रीका के सदस्य बनने से पूर्व समूह का नाम चारों सदस्य देशों ब्राजील, रूस, चीन और इंडिया के पहले अक्षर के नाम पर ब्रिक था और 2010 में साउथ अफ्रीका के सदस्य बनने पर इसका नाम ब्रिक्स रखा गया था।
मंगलवार से शुरू हुई तीन दिवसीय बैठक में इस बात पर मंथन हुआ है कि क्या समूह के तत्काल विस्तार की आवश्यकता है और यदि हां, तो कितने नए सदस्यों को शामिल किया जाना चाहिए और इसका क्या आधार होना चाहिए। अब शेरपा अपनी रिपोर्ट देंगे जिस पर अगस्त में जोहांसबर्ग में होने वाले ब्रिक्स देशों के 15वें शिखर सम्मेलन में विचार किया जाएगा।
ब्रिक्स देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के एक चौथाई से अधिक और दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगस्त में होने वाले शिखर सम्मेलन में नए देशों की सदस्यता के साथ जो अन्य मुद्दा प्रमुखता से उठेगा, वह है ब्रिक्स देशों की अपनी एक मुद्रा लाना और वैश्विक व्यापार में डॉलर का विकल्प पेश करना।