पत्थर के आयात पर भी लगेगा प्रतिबंध
इंजीनियर्ड स्टोन कृत्रिम रूप से बने पत्थर होते हैं। इन्हें पत्थरों के चूरे से बनाए जाता है। इनमें 90 फीसदी तक क्वॉर्ट्जर् का चूरा होता है और बाकी हिस्सा धातु, रंगीन कांच के रूप में मिलाया जाता है। संगमरमर और ग्रेनाइट जैसे प्राकृतिक पत्थरों के टिकाऊ और किफायती विकल्प के रूप में लोकप्रिय यह पत्थर श्रमिकों की सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। प्रशासन इस संबंध में पत्थर के आयात पर भी बैन लगाएगा। हालांकि इसके लिए फिलहाल तारीख तय नहीं की गई है।
दो दशकों के दौरान लोकप्रियता बढ़ी
पिछले दो दशक में कृत्रिम पत्थर काफी लोकप्रिय हुआ है। सिलिकोसिस रोग के बढ़ते मामलों के कारण इंजीनियर्ड स्टोन को ‘2020 के दशक का एस्बेस्टस’ माना गया। एस्बेस्टस जहरीला रसायन होता है, जिसका प्रयोग भवन निर्माण में किया जाता है। इसके खतरों को देखते हुए दुनिया के 55 देशों में एस्बेस्टस पर प्रतिबंध है। अमरीका भी इस कृत्रिम पत्थर के बढ़ते प्रयोग से चिंतित है, जहां इसके मार्केट में लगातार वृद्धि हो रही है।
रोकथाम कार्यक्रमों से मामलों में कटौती संभव
नेचर जर्नल के अनुसार 2019 में विश्व स्तर पर सिलिकोसिस के 27 लाख से अधिक मामले सामने आए और 23 करोड़ श्रमिकों को यह रोग होने की आशंका थी। इनमें से अधिकांश असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे थे या प्रवासी थे। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक कुछ देशों के अनुभव बताते हैं कि उचित रोकथाम कार्यक्रमों से सिलिकोसिस के मामलों को कम करना संभव है। आज तक जिन देशों में सिलिकोसिस उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू किए गए हैं उनमें ब्राजील, चिली, चीन, भारत, पेरू, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, तुर्की और वियतनाम आदि शामिल हैं।
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ऑस्ट्रेलिया में सिलिकोसिस की समस्या
– 6,00,000 से अधिक कर्मचारी ऑस्ट्रेलिया में हानिकारक सिलिका धूल के संपर्क में है।
– 2015 में पहली बार सामने आया था इंजीनियर्ड पत्थर पर काम करने से जुड़ी सिलिकोसिस बीमारी का मामला।
– 2020 में क्वींसलैंड प्रशासन ने घोषणा की कि हजारों खदान श्रमिकों की फेफड़ों की जांच नि:शुल्क की जाएगी।
– 2023 के अंत में इंजीनियर्ड पत्थरों से बने उत्पादों के निर्माण, आपूर्ति और उपयोग पर राष्ट्रीय प्रतिबंध की घोषणा हुई।