आस-पास रहने वाले लोग भी इसे सच मानते हैं। वे तो ये भी कहते हैं कि इसमें से बहुत पहले आवाज भी आती थी। लोगों का मानना है कि वो संभवत: राजा रोहिताश्व के आत्मा की आवाज थी। इस आवाज को सुनकर हर कोई डर जाता था। इतिहासकार हो या पुरातत्व के जानकार, वे भी नहीं जानते कि आखिर ऐसी क्या बात थी जो किले के दीवारों से खून निकलता था।
बता दें, रोहतास का इतिहास, इसकी सभ्यता और संस्कृति अति समृद्धशाली रही है। इसी कारण अंग्रेजों के समय यह क्षेत्र पुरातात्विक महत्व का रहा। 1807 में सर्वेक्षण का दायित्व फ्रांसिस बुकानन को सौंपा गया। वह 30 नवम्बर 1812 को रोहतास आया और कई पुरातात्विक जानकारियां एकत्रित की। 1881-82 में एचबीडब्लू गैरिक ने इस क्षेत्र का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया और रोहतास गढ़ से राजा शशांक की मुहर का सांचा प्राप्त किया।
जानकारी के मुताबिक, रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। इस किले का घेरा 28 मील तक फैला हुआ है आैर इसमें कुल 83 दरवाजे हैं। इन दरवाजों में मुख्य चारा घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतियाघाट व मेढ़ाघाट है। प्रवेश द्वार पर निर्मित हाथी, दरवाजों के बुर्ज, दिवालों पर पेंटिंग अद्भुत है। रंगमहल, शीशमहल, पंचमहल, खूंटामहल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी विद्यमान हैं। परिसर में अनेक इमारतें हैं जिनकी भव्यता देखी जा सकती है।