इस कुंड के पानी को लेकर कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने देवी गंगा का अहम तोड़ने के लिए उसे अपनी जटा में समा लिया था, जिससे गंगा भगवान के शरीर से स्पर्श में आ गई थी। इस वजह से देवी पार्वती काफी गुस्सा हो गई थी। यह बात माता पार्वती को अच्छी नहीं लगी थी। भगवान के शरीर को छूने से गंगा पवित्र हो गई थी, जो माता पार्वती को अच्छा नहीं लगा।
माता पार्वती को लगा कि अब से गंगा भगवान के साथ ही रहेगी। वह उदास हो गई और गंगा से नाराज हो गई। इसके बाद कहा जाता है कि जब भी कोई व्यक्ति इस कुंड़ के पास से गंगा जल लेकर निकलता है तो उसका पानी खौलने लगाता है। इसलिए कोई भी यहां से निकलते समय गंगाजल लेकर नहीं जाता।