दर्शन कर आगे बढ़ने वाला नहीं लौटता वापस यहां 4 फीट ऊंचा शिवलिंग विराजित है। शिवलिंग के ऊपर प्राकृतिक तौर पर पवित्र जल की धारा गिरती रहती हैं। इसी जगह पर पिण्डियों के रुप में माता पार्वती, पुत्र गणेश और कार्तिकेय भी विराजमान है। स्थानीय लोगों के मानें तो जो कोई शिवलिंग और पिण्डियों के दर्शन करके आगे की ओर बढ़ता है, वह कभी लौटकर नहीं आता।
एेसी है मान्यता पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर ने घोर तप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। उसने शिवजी से वर मांगा कि वह जिस किसी के सिर पर भी हाथ रख दे, वह भस्म हो जाए। शिवजी ने जैसे ही उसे वरदान दिया, वह राक्षस शिवजी को भस्म करने के लिए दौड़ पड़ा।
शिवजी को भस्मासुर से करना पड़ा युद्ध भस्मासुर से बचे के लिए शिवजी को उससे युद्ध करना पड़ा। रणसु या रनसु वही जगह है, जहां भगवान शिव और भस्मासुर के बीच युद्ध छिड़ा। इस रण (युद्ध) के कारण ही इस क्षेत्र का नाम रणसु पड़ा। युद्ध के दौरान भस्मासुर हार मानने को तैयार नहीं था और शिवजी उसे मार नहीं सकते थे, क्योंकि खुद उन्होंने ही भस्मासुर को अभय का वरदान दिया था।
खुद गुफा बनाकर उसने छिपे शिवजी भस्मासुर से पीछा छुड़ाने के लिए भगवान शिव ऐसी जगह की तलाश करने लगे जहां भस्मासुर उन्हें ढूंढ न पाए। तब शिवजी ने पहाड़ों के बीच एक गुफा बनाई और उसमें छिपे। खुद शिवजी ने ही जिस गुफा का निर्माण किया, वह शिव खोड़ी गुफा कहलाती है।
भगवान विष्णु ने ऐसे की रक्षा भगवान शिव को इस तरह गुफा में छिपा देखकर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धरा और भस्मासुर के रिझाने के लिए उसके समीप पहुंच गए। मोहिनी का रूप देखकर भस्मासुर सबकुछ भूल गया और प्रेमांध होकर मोहिनी के साथ नृत्य करने लगा। नृत्य के दौरान उसने खुद के ही सिर पर हाथ रख लिया और हाथ रखते ही भस्म हो गया। भस्मासुर के खुद को ही भस्म कर लेने के बाद भगावन शिव गुफा से बाहर आए।
नहीं दिखाई देता गुफा का अंतिम छोर
शिवजी द्वारा निर्मित की गई इस गुफा का अंतिम छोर दिखाई नहीं देता है। मान्यता है कि जो कोई भी इस गुफा में स्थित शिवलिंग और पिण्डियों के दर्शन कर गुफा में आगे की तरफ बढ़ता है, वह कभी लौटकर नहीं आता।
शिवजी द्वारा निर्मित की गई इस गुफा का अंतिम छोर दिखाई नहीं देता है। मान्यता है कि जो कोई भी इस गुफा में स्थित शिवलिंग और पिण्डियों के दर्शन कर गुफा में आगे की तरफ बढ़ता है, वह कभी लौटकर नहीं आता।
गुफा में स्वयं विराजमान हैं शिवजी कहते हैं कि अंदर जाकर यह गुफा दो भागों में विभाजित हो जाती है, जिसका एक छोर अमरनाथ गुफा में खुलता है और दूसरे के अंतिम छोर के बारे में जानकारी ही नहीं है। मान्यता है कि गुफा के अंदर स्वयं शिवजी साक्षात विराजित हैं।