दरअसल, काजू कठोर खोल की दो परतों में बंद होता है। इनके बीच ऐनाकार्डिक नाम का एक नेचुरल एसिड होता है। इसका रंग पीला होता है और जब इसे तोड़ा जाता है तो यह हाथों को जला देता है। हथेली पर इस एसिड के गिरते ही तेज जलन होने लगती है। हाथों में छाले पड़ जाते हैं।
पौधे से काजू को तोड़ने के बाद उसे कुछ देर के लिए भाप में रखा जाता है। इसके बाद पूरे 24 घंटे छांव में सुखाया जाता है और इसके बाद जाकर इसे छीला जाता है। अंत में आकार के हिसाब से इन्हें छांटकर अलग किया जाता है। फिर इन्हें पैक कर दुकानों को सप्लाई किया जाता है।
इस काम को करने वाले मजदूर बहुत गरीब होते हैं। हमें बाजार में काजू 1200 से 2000 रुपये प्रति किलो के दर से मिलता है जबकि इन मजदूरों को इस काम के लिए बहुत ही कम पैसा मिलता है।
एक अखबार में इंटरव्यू देने के दौरान पुष्पा नामक महिला जो कि इस काम से काफी लंबे समय से जुड़ी हुई हैं वह कहती हैं कि उनके हाथों पर जलने जैसे निशान हो चुके हैं। पेट पालने के लिए वह दूसरे घरों में भी काम भी करती हैं। हाथ से खाना खाने पर उनके हाथ में बेहद दर्द होता है जिस वजह से उन्हें चम्मच का सहारा लेना पड़ता है।
पुष्पा जैसे और भी कई लोग ऐसे हैं जिन्हें काजू छीलने से हम तक पहुंचाने में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। ऐनाकार्डिक काजू से नाखूनों में घाव हो जाने से इंफेक्शन भी हो जाता है, लेकिन फिर भी इन मजदूरों को मजबूरी में इस काम को करना पड़ता है।