एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस टोले की आबादी करीब 1200 है। टोले में संथाल जनजाति के लोग रहते हैं। संथाल जनजाति के लोग हिंदू धर्म का पालन करते हैं। यह टोला शहरी आबादी और सुख सुविधा से एकदम कटा है। यहां के लोग अपनी मातृभाषा हिंदी भी सही से बोल नहीं पाते। संथाल के लोग मज़दूरी करके अपना पेट पालते हैं। बता दें कि शहरी आबादी से दूर इस इलाके में सरकारी सुविधाओं का आभाव है। यह टोला हर तरह की सुविधाओं और विकास की योजनाओं से अछूता है।
बता दें कि इस टोले में न तो कोई स्कूल है न ही कोई अस्पताल। पाकिस्तान टोला से स्कूल 2 किमी दूर है जबकि अस्पताल यहां से करीबन 12 किलोमीटर दूर है। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस टोले का नाम कैसे पड़ा इसका कोई पुख्ता जवाब नहीं है। लेकिन इस गांव के आस-पास के लोग बताते हैं कि पहले इस टोले में पाकिस्तान के कुछ लोग रहते थे जिसके बाद इसका नाम पाकिस्तान पड़ा।
कहते हैं आज़ादी के बाद यहां के लोगों को पाकिस्तान भेज दिया गया। इसके बाद जो लोग यहां आकर बसे उन्होंने इस टोले का नाम पाकिस्तान ही रहने दिया। जब किसी हिंदुस्तानी को पता चलता है कि हमारे देश में पाकिस्तान नाम की एक जगह है तो वह चौंक जाता है। यहां के लोगों का कहना है कि कोई उनसे जब उनके गांव का नाम पूछता है तो उन्हें बेहद अजीब लगता है। लोगों का कहना है कि “विकास के नाम पर यहां बदहाल कच्ची सड़कें हैं। इसके साथ बच्चों का भविष्य खतरे में है, इलाज के नाम पर झोलाछाप डॉक्टरों का ही सहारा है।”