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इस वजह से समुद्र में नहीं डूबे थे रामसेतु के पत्‍थर, दुनिया करती है इस चमत्कार को नमस्कार

समुद्र पर बने इस रामसेतु को दुनियाभर में ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है।

Oct 29, 2018 / 01:05 pm

Arijita Sen

रामसेतु के पत्‍थर

इस वजह से समुद्र में नहीं डूबे थे रामसेतु के पत्‍थर, दुनिया करती है इस चमत्कार को नमस्कार

नई दिल्ली। राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद भूमि पर सुनवाई के चलते इसकी चर्चा जोरों पर है। ऐसे में राम की महिमा एक बार फिर से केंद्र बिंदु पर है। आज हम आपको रामसेतु के पुल के महत्व के बारे में बताएंगे। जहां राम का नाम लिखकर पत्थरों को पानी में फेंका गया लेकिन वो डूबे नहीं बल्कि पानी में तैरने लगे और इस प्रकार लंका तक पहुंचने के लिए समुद्र के ऊपर पुल का निर्माण संभव हुआ।

रामसेतु

समुद्र पर बने इस रामसेतु को दुनियाभर में ‘एडेम्स ब्रिज’ के नाम से जाना जाता है। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ रामायण के अनुसार यह एक ऐसा पुल है, जिसे भगवान विष्णु के सातवें एवं हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार श्रीराम की वानर सेना ने भारत के दक्षिणी भाग रामेश्वरम में बनाया था।

यह पुल भारत के रामेश्वरम से शुरू होकर श्रीलंका के मन्नार को जोड़ता है। कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं तो वहीं साइंस इसके पीछे कुछ और ही तर्क देता है। हालांकि इस पुल के निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थरों के बारे में जानने के लिए लोगों के मन में आज भी कौतूहल बना हुआ है।

रामसेतु के पत्‍थर

धार्मिक मान्यता के अनुसार जब असुर सम्राट रावण भगवान राम की पत्नी माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका ले गया था, तब श्रीराम ने वानरों की सहायता से समुद्र के बीचो-बीच एक पुल का निर्माण किया था। यही आगे चलकर रामसेतु कहलाया था। कहा जाता है कि इस विशाल पुल को वानर सेना ने केवल 5 दिनों में ही तैयार कर लिया गया था। यह पुल 30 किलोमीटर लंबा और 3 किलोमीटर चौड़ा था।

रामसेतु

दरअसल, समुद्र पार कर लंका जाना एक बड़ी समस्या थी। ऐसे में भगवान राम ने समुद्र देवता की पूजा शुरू की, लेकिन जब कई दिनों के बाद भी समुद्र देवता प्रकट नहीं हुए तो क्रोध में आकर श्रीराम ने समुद्र को सुखा देने के लिए अपने धनुष में बाण का संधान किया। इससे भयभीत होकर समुद्र देवता प्रकट हुए और बोले, ‘श्रीराम! आप अपनी वानर सेना की मदद से मेरे ऊपर पत्थरों का एक पुल बनाएं। मैं इन सभी पत्थरों का वजन सम्भाल लूंगा।’

रामसेतु

इसके बाद नल और नील ने इस पुल को बनाने की जिम्मेदारी ली। इसके लिए बानरों की मदद से पुल बनाने का सामान एकत्रित किया गया। जिसमें पत्थर, पेड़ के तने, मोटी शाखाएं एवं बड़े पत्ते तथा झाड़ शामिल था। वैज्ञानिकों का मानना है कि नल तथा नील शायद जानते थे कि कौन सा पत्थर किस प्रकार रखने से पानी में डूबेगा नहीं और दूसरे पत्थरों को सहारा भी देगा। इसलिए उन्होंने ‘प्यूमाइस स्टोन’ का उपयोग किया होगा।

यह ऐसे पत्थर हैं जो ज्वालामुखी के लावा से उत्पन्न होते हैं। इन पत्थरों में कई सारे छिद्र होते हैं। छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पॉंजी यानी कि खंखरा आकार ले लेता है जिस कारण इनका वजन सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है और पानी में डालने पर यह तैरता रहता है, लेकिन बाद में जब इन छिद्रों में पानी भर जाता है तो यह डूब जाते हैं, यह वजह है कि आज के समय में रामसेतु के पत्थर कुछ समय बाद समुद्र में डूब गए। खास बात यह है कि नासा ने सैटलाइट की मदद से रामसेतु पुल को खोज निकाला है।

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