हम जानते हैं कि पांच पांडवों में युधिष्ठिर सबसे बड़े थे। अपने सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर की इज्जत बाकी के सभी भाई करते थे। इतनी इज्जत होने के बावजूद भी ऐसा क्या हो गया कि अर्जुन को अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को मारने के बारे में सोचना पड़ा? ऐसी भी क्या मजबूरी थी कि अर्जुन ने युधिष्ठिर का वध करना चाहा? आइए जानते हैं।
महाभारत के कर्ण पर्व के अनुसार, जब कर्ण कौरव सेना का सेनापति था तब कर्ण और युधिष्ठिर में घमासान युद्ध हुआ था। इस युद्ध में कर्ण ने युधिष्ठिर को घायल कर दिया। घायल युधिष्ठिर अपने शिविर में आराम फरमा रहे थे, ठीक उसी समय अर्जुन व श्रीकृष्ण उनसे मिलने वहां पहुंचे।
दोनों को साथ आते देख युधिष्ठिर को लगा कि शायद अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया है और वह यहां इसी बात को बताने आया है, लेकिन जब युधिष्ठिर को पता लगा कि कर्ण जीवित है, तो वे बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने अर्जुन को खूब खरी-खोटी सुनाई। इतना ही नहीं युधिष्ठिर ने अर्जुन को यह तक कह दिया कि वो अपने शस्त्र दूसरे को दे दें।
इधर अर्जुन ने प्रतिज्ञा की थी कि जो कोई उनसे उनके शस्त्र दूसरे को देने के लिए कहेगा, उसे वे मार डालेंगे। प्रतिज्ञा का पालन करने के लिए अर्जुन ने युधिष्ठिर का वध करने के लिए जैसे ही अपनी तलवार उठाई, श्रीकृष्ण ने तुरंत उन्हें रोक लिया।
भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि,अपने से बड़ों को यदि अपशब्द कहे जाए तो वह भी उनका वध करने जैसा ही होता है। श्रीकृष्ण की सलाहनुसार, अर्जुन ने युधिष्ठिर को कई सारे अपशब्द बोलें। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर और अर्जुन दोनों को ही समझाया और दोनों भाइयों के बीच विवाद को समाप्त किया।