इतिहास के पन्नों में जो जानकारी इस मंदिर की मिलती है वो चौंकाने वाली है। विजय सूर्य मंदिर का निर्माण परमार काल के शासक राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने 11वीं सदी में कराया था। मंदिर का निर्माण परमार शैली के अनुरूप भव्य विशाल पत्थरों पर अंकित परमारकालीन राजाओं की गाथाओं से किया गया है। बताया जाता है कि यह मंदिर करीब डेढ़ सौ गज ऊंचा था। मुगल शासकों को मंदिर की भव्यता और लोगों की आस्था खटकती रहती थी। इसलिए मुगल शासक औरंगजेब ने 17वीं शताब्दी (करीब 1682 में) में इसे 11 तोपों से उड़ा दिया था और लूटपाट कर मूर्तियों को बर्बाद कर दिया था। इसके बाद मालवा का राज्य जब मराठों के पास आ गया तो इसे दोबारा से खड़ा करने का प्रयास हुआ। इसके अवशेष आज भी मंदिर में दफन हैं। 1992 में हुई खुदाई में मंदिर के प्राचीन अवशेष मिले हैं, जिससे मंदिर का भव्य रूप सामने आया था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इसे अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया है।
ASI की वेबसाइट के अनुसार ध्वस्त हिन्दू मंदिर पर मस्जिद का निर्माण किया गया था। यहां मिले शिलालेख के मुताबिक यह देवी चर्चिका का मंदिर था, जिसका निर्माण 12वीं और 13वीं शताब्दी में हुआ था। औरंगजेब ने मंदिर को तबाह करके उसी सामग्री से मस्जिद तैयार कराई थी।
मंदिर में है रहस्यमयी बावड़ी
विदिशा के विजय मंदिर के विशाल परिसर में एक रहस्यमयी बावड़ी है। स्थानीय लोग कहते हैं कि इसका पानी कभी नहीं सूखता। इसकी गहराई और लंबाई के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। एक धारणा यह भी है कि इस बावड़ी का एक रास्ता मध्यप्रदेश के प्राचीन शहर रायसेन की ओर जाता है।
दोनों संसदों में मध्यप्रदेश की झलक
देश का वर्तमान संसद भवन का डिजाइन भी मुरैना के चौसठ यौगिनी मंदिर से मिलता-जुलता है। अब नए भवन का डिजाइन भी मध्यप्रदेश के ही विदिशा के विजया मंदिर के जैसा लगता है। इतिहासकार कहते हैं कि यह मध्यप्रदेश के लिए गौरव की बात है कि यहां के विजय मंदिर की प्रतिकृति दिल्ली के नए संसद भवन में देखने को मिल रही है। प्राचीन विजय सूर्य मंदिर के गेट पर निर्मित दो विशाल स्तंभ संसद भवन के प्रवेश द्वार से मिल खाते हैं। ड्रोन से लिए गए संसद भवन और विजय मंदिर के फोटो में यह समानता स्पष्ट नजर आती है।
त्रिकोण आकार की चर्चा
971 करोड़ की लागत से बनी संसद की नई बिल्डिंग के त्रिकोणीय होने की चर्चा भी हो रही है। सेंट्रल विस्टा की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इमारत में मौजूद जगह का भरपूर इस्तेमाल करने के मकसद से इसका आकार ऐसा रखा गया है। नए भवन में राष्ट्रीय पक्षी मोर के आधार पर तैयार लोकसभा में सदस्यों के बैठने की संख्या भी बढ़ाकर 888 की गई है। जबकि कमल के आधार पर तैयार राज्यसभा में 348 सदस्य बैठ सकेंगे। लोकसभा में ज्वाइंट सेशन के लिए 1272 सीटें होंगी। इन दो विशाल कमरों के अलावा भवन के मध्य में एक संविधान कक्ष होगा। नई इमारत में दफ्तरों को बेहद आधुनिक ढंग से तैयार किया गया है।
72 साल से ताले में बंद है यह मंदिर
पिछले साल विजया मंदिर उस समय चर्चाओं में आया था जब विदिशा के व्यापार और उद्योग मंडल ने विदिशा के विजय मंदिर का ताला खुलवाने का मुद्दा उठाया था। शहर में कई जगह पोस्टर लगाए गए थे और प्रदर्शन किए गए थे। लोगों ने बताया था कि विजय मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन उस समय 72 सालों से पुरातत्व विभाग का ताला लडका हुआ है। इसके कारण मंदिर वर्तमान में महज एक स्मारक बनकर रह गया है। यह मंदिर सिर्फ नागपंचमी के दिन खोला जाता है। यह विजय मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित है। चालुक्य राजायों ने अपनी सौर्य पूर्ण विजय को अमर बनाने के लिए इसका निर्माण किया था। मंदिर के निर्माण का श्रेय चालुक्यवंशी राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री वाचस्पति को जाता है। सन् 1922 के समय मुस्लिमों द्वारा यहां नमाज पढ़नी शुरू कर दी गई और हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली पूजा का विरोध प्रारम्भ हो गया। 1947 के बाद से हिन्दू महासभा द्वारा इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया गया, जिसके बाद विजय मंदिर को सरकारी नियंत्रण में ले लिया गया।