उदयपुर में राजा उदयादित्य के महल के एक हिस्से पर निजी संपत्ति का बोर्ड लगा देने की खबर पत्रिका में प्रकाशन के बाद प्रशासन हरकत में आया और गंजबासौदा से नायब तहसीलदार को मौके पर भेजा गया। नायब तहसीलदार दौजीराम ने वहां पहुंंचकर महल की दीवार से वह बोर्ड हटवाया। नायब तहसीलदार ने महल की जमीन को राजस्व की जमीन माना है। हालांकि महल के किसी भी हिस्से से किसी का भी कब्जा नहीं हटवाया गया है। यहां परिवार रह रहे हैं और मदरसा भी संचालित हो रहा है। लोगों ने प्राचीन महल की कुछ दीवारों को तोड़कर वहां सीमेंट और लोहे का निर्माण कराकर गेट आदि भी लगा लिए हैं। लेकिन इस पर प्रशासन ने अभी निगाह भी नहीं डाली है।
महल पर जिस काजी परिवार ने अपनी निजी संपत्ति के नाम का बोर्ड लगाया था, उसी परिवार के सदस्यों ने महल को मुगल बादशाह जहांगीर और शाहजहां से जोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि ये महल कोई हजार साल पुराना नहीं है, ये बादशाह जहांगीर के समय इसकी और शाही मस्जिद की नींव उदयपुर में रखी गई थी, और शाहजहां के समय इसका निर्माण पूरा हुआ और शाहजहां ने इसका उद्घाटन किया था। काजी परिवार के मुखिया डॉ इरफान अली का कहना है कि बादशाह का महल था ये जो बाद में जमीदार बनाकर काजी परिवार को दे दिया गया। हमारी चार पीढिय़ों से यहां कब्जा है। 25 वर्ष से हम यहां मदरसा चला रहे हैं। अब हम कभी यहां तो कभी भोपाल रहते हैं। तहसीलदार जांच करने आए थे, उनके कहने पर हमने बोर्ड हटवा दिया है। बाहर हमने बोर्ड पर अपने नाम लिखे थे, हमें कानून की ज्यादा जानकारी नहीं है प्रशासन ने कहा तो हमने बोर्ड हटा लिया।
लोग आगे आए, दिन भर चला ज्ञापनों का दौर
पत्रिका में खबर प्रकाशित होने के बाद से ही जागरूक लोग इस विषय को लेकर आक्रोशित थे। बुधवार को बैठक के बाद गुरूवार को अलग-अलग दौर में ज्ञापन देने और विरासत को बचाने के लिए मंथन के दौर चले। सुबह कलेक्टर के नाम प्रशासन को दिए ज्ञापन में राजा उदयादित्य की नगरी उदयपुर को अतिक्रमण से मुक्त कर हैरीटेज टाउन बनाने का अनुरोध किया गया। ज्ञापन में यह भी कहा गया कि राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी और इतिहासकार डॉ सुरेश मिश्र ने यहां का दौरा कर बेहद चिंता जताई है। उन्होंने अपनी पोस्ट में यह भी लिखा है कि हजार -ग्यारह सौ साल प्राचीन संपदा और महल आदि किसी की निजी संपत्ति कैसे हो सकती हैï? महल के कुछ हिस्से में तो घर और दुकानें बन गई हैं जबकि कुछ में मवेशी बांधे जा रहे हैं। यह सब हम जिले वासियों के लिए चिंतनीय है। महल को निजी संपत्ति घोषित करने के मामले की जांच और रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग भी की गई। ज्ञापन देने वालों में गोविंद देवलिया, विजय चतुर्वेदी, तीरथ प्रताप दरबार, संजय पुरोहित, देवेंद्र राठौर, अतुल तिवारी, संजीव शर्मा, मयंक कानूनगो, नारायण शर्मा, श्रीकांत दुबे, विजय दीक्षित, बलराम दांगी, संजीव तिवारी, संजू जोशी, हेमंत शर्मा, एसएन शर्मा और रामलखन शर्मा आदि शामिल थे।
राजपूत करणी सेना ने भी प्रतापसिंह सेंगर के नेतृत्:व में ज्ञापन देकर उदयपुर की विरासत को अतिक्र्रमण से मुक्त कराने की मांग की। ज्ञापन देने वालों में उदय सिंह राठौड़, अमरदीप सिंह, अभिषेक तोमर, गोविंद सिंह, जीतेंद्र सिंह आदि अनेक लोग मौजूद थे। सेना के प्रतापसिंह सेंगर ने कहा कि इस बारे में कठोर कार्रवाई हो अन्यथा करणी सेना हस्तक्षेप करने मजबूर होगी।
सांची के एक समारोह में आईं मप्र की पर्यटन और संस्कृति मंत्री डॉ ऊषा ठाकुर को भी उदयपुर मामले में ज्ञापन दिया गया। वहां गोविंद देवलिया, प्रशांत शर्मा, विजय चतुर्वेदी, श्याम तिवारी और एसएन शर्मा ने ज्ञापन देकर इस संबंध में हस्तक्षेप का अनुरोध किया।
पत्रिका में खबर प्रकाशित हुई थी कि खसरा नंबर 822 महल पर किसी ने अपनी निजी संपत्ति का बोर्ड लगवा दिया है। हमने आज यहां आकर बोर्ड हटवाया है। अंदर कुछ लोग रह रहे हैं। मदरसा भी यहां चलता है। काजी परिवार देखरेख के लिए होगा। उनका यहां स्वामित्व नहीं है। वे किस हैसियत से यहां रह रहे हैं, यह जानने के लिए दस्तावेज मंगाए हैं।
-दौजीराम, नायब तहसीलदार गंजबासौदा
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उदयपुर के महल से निजी संपत्ति वाला बोर्ड हटवा दिया गया है। कुछ लोग वहां रह रहे हैं, वे समझ रहे होंगे कि कब्जा कर लेंगे। ये जगह राजस्व की है। पुरातत्व के अधीन नहीं है। महल कितना पुराना है, किसका है यह इतिहास और पुरातत्व का विषय है।
-राजेश मेहता, एसडीएम गंजबासौदा