वाराणसी. काशी नगरी की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्व से अटूट रिश्ता है। यह हमेशा से पर्यटकों को लुभाता रहा है। इस शहर की गलियों में संस्कृति और परम्परा कूट-कूट भरी हुई है। मथुरा-वृंदावन और हरिद्वार की तरह यहां भी आपको हर घर में प्रचीन मंदिरों के दर्शन होते हैं। कहते तो यह भी हैं कि काशी के कड़-कड़ में शिव का वास है। शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसीलिए यह धर्म, कर्म और मोक्ष की नगरी मानी जाती है।
काशी में सबसे फेमस दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती है। जिसे देखने के लिए विदेशी सैलानी आते हैं।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली इस भव्य गंगा आरती की शुरुआत 1991 से हुई थी। यह आरती हरिद्वार में हो रही आरती का जीता जागता उदाहरण है। हरिद्वार की परंपरा को काशी ने पूरी तरह आत्मसात किया है। सबसे पहले हरिद्वार में इस आरती की शुरूआत हुई। उस आरती को देखते हुए काशी के लोग भी 1991 में बनारस के घाट पर आरती की शुरूआत की।
हर शाम गंगा आरती करते होती है। उस समय नदी का नीचे की ओर बहता जल पूरी तरह से रोशनी में नहाया होता है। आज वही आरती विश्वप्रसिद्ध हो गई। जिसे देखने के लिए प्रतिदिन सैलानियों का ताता लगा होता है। यहां सेलीब्रिटी हों या वीवीआईपी सभी काशी के गंगा आरती को देखने और गंगा आरती करने के लिए बनारस आते हैं।
काशी को यह गौरव प्राप्त है कि यह नगरी विद्या, साधना और कला तीनों का अधिष्ठान रही है। काशी के घाट गंगा के मुहाने पर बसे इस शहर की छटा को निखारने वाले सौ से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुषाकार स्वरूप प्रदान करते हैं। प्रात: काल सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देखने योग्य होती है।
यह शहर सहस्त्रों वर्षों से भारत का विशेषकर दशाश्वमेघ घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग के अंतिम छोर पर पड़ता है। प्राचीन ग्रंथों के मुताबिक, राजा दिवोदास द्वारा यहां दस अश्वमेध यज्ञ कराने के कारण इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा।
काशी के घाट
दशाश्वमेध घाट गंगा के किनारे काशी के हर घाट का अपना अलग महत्व है। सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध घाट है। इस घाट को सर्वप्रथम बाजीराव पेशवा ने बनवाया। यह घाट पंचतीर्थों में एक है। मणिकर्णिका घाट पर मणिकर्णिका कुंड अवस्थित है। मान्यता है कि यहां चिता कभी नहीं बुझती। जहां से गुजरते हुए बरबस संसार के सबसे बड़े सच से साक्षात्कार होता है। पंचगंगा घाट पुराणों के मुताबिक, गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपाया नदियों का गुप्त संगम है। इसलिए इसे पंचगंगा घाट भी कहा जाता है।
दशाश्वमेध घाट की गंगा आरती
धर्म और अध्यात्म की नगरी काशी को बाबा विश्वनाथ, गंगा व घाटों और यहां की गंगा आरती दुनिया भर में प्रसिद्ध माना जाता है। काशी में दुनिया के हर कोने से लोग इस शहर के मिजाज को और इसकी खासियतों को देखने आते हैं। इन सब खासियतों के साथ काशी की गंगा आरती भी अब विश्व प्रसिद्ध हो गई है।
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर होने वाली इस भव्य गंगा आरती की शुरुआत 1991 से हुई थी। इस घाट पर आरती का आयोजन करने वाली संस्था गंगा सेवा निधि के संस्थापक अध्यक्ष स्व. सत्येंद्र मिश्र के नेतृत्व में गंगा आरती की शुरुआत हुई थी। समिति घाट पर ही रहने वाले कुछ लोगों ने बनाई जिसके अंतर्गत गंगा आरती कराने का विचार बना और आरती शुरू हुई। तीन लोगों से शुरू की गई आरती को बाद में भव्य रूप दिया गया। आरती की भव्यता धीरे-धीरे लोगों को आकर्षित करने लगी और इसको देखने के लिए प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में लोग गंगा घाट पहुंचने लगे।
सेलिब्रेटीज की भी पसंद काशी की ‘गंगा आरती’
हर रोज पूरे विधि-विधान से होने वाली इस आरती को देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों के साथ वीवीआईपी और सेलिब्रेटीज भी इस मनोरम दृश्य का आनंद लेने वाराणसी आते हैं। बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड स्टार और देश-विदेश के राजनेता अकसर गंगा आरती देखने काशी पहुंचते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, बिग बी अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी जया बच्चन बेटे अभिषेक बच्चन और बहु ऐश्वर्या राय के साथ गंगा आरती में शरीक हो चुके हैं। हॉलीवुड स्टार एंजलीना जोली भी इस भव्य आरती को देखने काशी आ चुकी हैं। इसी प्रकार अनुपम खेर, जूही चावला, विद्या बालन, सोनम कपूर, मुकेश अम्बानी, नीता अम्बानी, उमा भारती, राजनाथ सिंह सहित कई वीवीआईपी और सेलिब्रेटीज मां गंगा आरती में सम्मिलित हुए हैं। विदेशों से दलाईलामा, भूटान के प्रधानमंत्री, भूटान नरेश, पोलैंड अम्बेसडर, यूएस अम्बेसडर और कई बड़ी और नामचीन हस्तियां भी गंगा आरती में शामिल होती रही हैं।
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