अब चुना जाएगा नया डोम राजा चौधरी
बात करें डोम राजा वंश की तो ऐसा कहा जाता है कि मौजूदा डोम राजा वंश की शुरुआत आज से करीब ढाई सौ साल पहले कालू डोम से हुई थी। कालू डोम का परिवार मान मंदिर घाट स्थित शेर वाली कोठी में पिछले दो सौ साल से रहता चला आ रहा है। मंगलवार को जिन डोम राजा जगदीश चौधरी का निधन हुआ वह छठीं पीढ़ी के तीसरे डोम राजा थे। तीन साल पूर्व ही उन्होंने गद्दी संभाली थी। छठीं पीढ़ी के सबसे बड़े भाई रंजीत सिंह चौधरी को उनके पिता कैलाश चौधरी के निधन के बाद डोम राजा की गद्दी मिली। उनके निधन के बाद एक दशक पहले मझले भाई संजीत चौघरी राजा बने। फिर तीन साल पहले संजीत चौघरी के निधन के बाद जगदीश चौधरी ने गद्दी संभाली। अब डोम राजा का दायित्व उनके पुत्र ओम हरिनारायण पर आ गय है। कहा जा रहा है कि डोम राजा की विरासत वही संभालेंगे। जानकार बताते हैं कि यह आपसी सहमति से होता चला आ रहा है।
नाल जोड़ी फेरने की है परंपरा
काशी के डोम राजा परिवार में पहलवानी भी परंपरागत चली आ रही है। हालांकि कहा जा रहा है कि पहलवानी की विरासत संभालने वाले जगदीश चौधरी अंतिम कड़ी थे। मान मंदिर घाट स्थित घर में ही पुश्तैनी अखाड़ा बना हुआ है। अखाड़े में पांच कुंतल से लेकर 30 कुंतल तक नाल है, जिसे सैकड़ों साल पुरानी बताया जाता है। ये डोम राजा परिवार का पहलवानी के प्रति लगाव और शारिरिक बल की कहानी बयां करता है। आज के जमाने में पहलवान कुंतल वजन ही उठा पाता है, लेकिन ऐसा कहा जाता है कि डोम राजा के पूर्वज 30 कुंतल वजनी नाल भी उठाया करते थे। परिवार के अखाड़े का आकर्षण है कांटे वाली जोड़ी जो कभी देश भर के पहलवानों के लिये बड़ी चुनौती का सबब रही है। परिवार में राजा की गद्दी संभालने वाला हर व्यक्ति कांटे वाली जोड़ी फेरता चला आ रहा है। यह 40 किलो वजन वाली नाल है, जिसे लगातार 352 हाथ फेरने का कीर्तिमान भी जगदीश चौधरी के नाम है।
अखंड अग्नि और डोम राजा परिवार का संबंध
काशी के मणिकर्णिका घाट पर अखंड अग्नि जलती है जिसके बारे में मान्यता है कि वह सदियों से इसी तरह जलती चली आ रही है। काशी के बुद्घिजीवी डाॅ. अत्रि भारद्वाज बताते हैं कि अंतिम संस्कार के लिये इसी से आग लेकर दाह संज्ञकार किया जहाता है। जो काशी के डोमराजा की अनुमति के बिना मुमकिन नहीं। यहां ठीहा होता है और डोम राजा की अनुमति से ही अंतिम संस्कार के लिये अग्नि मिलती है, जिसके बदले में उन्हें कुछ शुल्क मिलता है। यह शुल्क क्षमता के अनुसार अलग अलग लोगों पर अलग अलग होता है।
ये हैं मान्यताएं
पहली मान्यता
हिन्दू पौराधिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती काशी आए। मणिकर्णिका घाट के पास स्नान करते समय उनका कुंडल गिर गया। उसे कालू नाम के एक व्यक्ति ने छिपा लिया। कालू को कुछ लोग राजा तो कुछ ब्राह्मण बताते हैं। ऐसी मान्यता है कि तलाश करने पर भी जब कुंडल नहीं मिला तो भगवान शिव ने क्रोधित होकर कुंडल को अपने पास रखने वाले को नष्ट हो जाने का श्राप दे दिया। कालू ने आकर क्षमा याचना की तो भगवान शिव ने अपना श्राप वापस लेकर उसे श्मशान का राजा बना दिया। तभी से कालू के वंश का नाम डोम पड़ गया।
दूसरी मान्यता
डोम जाति से जुड़ी एक और मान्यता बतायी जाती है कि महादानी राजा हरिश्चन्द्र की कोई संतान नहीं थी। भगवान वरुण ने आशीर्वाद दिया तो उनको रोहितास नाम का एक बेटा हुआ। ऋषि विश्वामित्र ने एक बार उनकी परीक्षा लेने के लिये उनसे पूरा राजपाठ ही मांग लिया। हरिश्चन्द्र ने दे दिया। विश्वामित्र ने और दान मांगा तो उन्होंनेे अपने आपको वाराणसी के एक डोम के हाथों बेच दिया, जबकि पत्नी और बेटो को एक ब्राह्मण को बेचा। बेटे रोहितास की सांप काटने से मौत हो जाती है तो उनकी पत्नी अंतिम संस्कार के लियेेे घाट पर जाती हैं। हरिश्चन्द्र बेटे के अंतिम संस्कार के लिये भी पैसे मांगते हैं।