पूर्वांचल के पिछड़ेपन का मुद्दा आजादी के बाद सबसे पहले 1962 में उठा जब गाजीपुर के सांसद विश्वनाथ गहमरी ने गाजीपुर सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन, गरीबी की दास्तान संसद में रो-रोकर सुनायी। गहमरी के उस मुद्दे पर संसद में मौजूद सांसद ही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अवाक रह गए। तब नेहरू ने पटेल आयोग का गठन किया। आयोग की रिपोर्ट भी आ गई पर धऱातल पर उसका क्रियान्वयन 2018 तक नहीं हो पाया। इसके पीछे राजनीतिक दलों की उदासीनता सीधे तौर पर जिम्मेदार रही। खास तौर पर क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि ही कहीं ज्यादा जिम्मेदार रहे। कहा जाता है कि यदि पटेल आयोग की रिपोर्ट पर अमल हुआ होता तो पूर्वांचल के हर जिले की तस्वीर कुछ और होती। इसके बावजूद यह महत्वपूर्ण मुद्दा चुनाव में पूरी तरह से मुर्दा हो गया है।
पूर्वांचल के 28 संसदीय क्षेत्रों में गाजीपुर प्रदेश का सबसे पिछड़ा और सुविधाविहीन जिला है। 1962 में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विश्वनाथ सिंह गहमरी ने संसद में अपने पहले संबोधन में जिले की दुर्दशा और गरीबी का जिक्र करते हुए कहा था कि जिले सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग भुखमरी के कारण अपना जीवन-यापन करने के लिए पशुओं के गोबर से अनाज बीनकर उसके आटे की रोटी खाते हैं। उनकी यह बात सुनकर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सहित पूरी संसद द्रवित हो गई थी। उस संबोधन के बाद सांसद विश्वनाथ सिंह गहमरी ट्रेन से गहमर आ गए थे। उधर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री सत्यनारायण सिन्हा को गाजीपुर के सांसद से तत्काल बात कराने का निर्देश दिया। इसके बाद गहमरी जी के दिल्ली में न रहने के कारण सिन्हा ने गाजीपुर के कलक्टर से बात कर गहमरी से बात कराने को कहा। फिर तत्कालीन वित्त सचिव एफएम पटेल की अध्यक्षता में आयोग गठित कर गाजीपुर सहित समूचे पूर्वी उत्तर प्रदेश के विकास पर रिपोर्ट मांगी गई थी।
साढ़े पांच दशक से अधिक समय बीत गया, लेकिन इस पर न तो जिले का कोई जनप्रतिनिधि ही गंभीर हुआ और न ही कोई राजनीतिक दल। कांग्रेस सरकार के बाद देश में जनता पार्टी, जनता दल और भाजपा की सरकारें बनीं। लेकिन पूर्वांचल और गाजीपुर की तस्वीर जस की तस बनी रही। 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने चुनाव प्रचार के दौरान गाजीपुर के लंका मैदान में भाजपा प्रत्याशी को जिताने की अपील करते वक्त जनता से वादा किया कि जिले के विकास के लिए पटेल कमीशन रिपोर्ट को कुछ संशोधन के साथ ला
गू किया जाएगा। जनता ने उनके इरादे पर मुहर अवश्य लगाई। लेकिन वाजपेयी की सरकार बन भी गई, लेकिन इस महत्वपूर्ण घोषणा पर कोई अमल नहीं हुआ। उसके बाद 2014 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव हुआ। लेकिन किसी राजनीतिक दल या नेता ने इसे मुद्दा नहीं बनाया है। इससे यह बात साफ होती है कि जिले के पिछड़ेपन पर किसी का ध्यान नहीं है। अब 2019 का चुनाव के पहले दिल्ली के सीएम व आम आदमी पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल ने फिर से पृथक पूर्वांचल राज्य का बिगुल फूंका तो सियासी हलचल तेज हो गई है।
पूर्वांचल का हाल यह है कि कभी अनावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि, कभी गंगा की बाढ़ तो कभी प्राशासनिक/राजनीतिक स्तर पर भ्रष्टाचार में बह रहे पूर्वांचल की बेचारगी पर जब दृष्टि पड़ती है तब-तब याद आते हैं गहमरी। वो गहमरी जिन्होंने पूर्वाचल पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में पूर्वांचल में व्याप्त गरीबी की सच्ची तस्वीर दिखाने की गरज से संसद में बैलों के गोबर को घोल कर उसमें से अनाज छान कर निकाला और बताया कि पूर्वांचल में गरीबी व भुखमरी की यह स्थिति है कि आमजन के भोजन का यह गोबर से निकला हुआ अनाज ही एक मात्र सहारा है। पुरनिए बताते हैं कि उस कारुणिक दृश्य को देख उपस्थित माननीय अवाक रह गए और नेहरू जी रो पड़े। तब इसके निदान के दृष्टिगत पंडित जी द्वारा तत्काल वी. पी. पटेल की अध्यक्षता में पूर्वांचल की गरीबी का कारण और तत्काल निवारण विषयक आयोग गठित किया गया, जिसे पटेल आयोग के रूप में जाना गया। इस आयोग के सदस्य आरडी धर, आरएन माथुर, कृष्णचन्द्र विषयों के विशेषज्ञ थे। इन पर पूर्वांचल की समस्याओं और उपलब्ध संसाधनों की समीक्षा के लिए प्रदेश के चार जिलों गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, और देवरिया (तत्कालीन मऊ आजमगढ़ तथा कुशीनगर देवरिया का हिस्सा था) की आर्थिक तथा सामाजिक दशा और विकास संबंधी समस्याओं का बारीकी से अध्ययन, इनमें प्रथम दो पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान हुई प्रगति का मूल्यांकन तथा तृतीय पंचवर्षीय योजना के लिए विकास की योजना पर विचार विमर्श, साथ ही अध्ययन द्वारा प्रशासनिक एवं वैकाशिक सुझाव का भार सौपा गया।
उस जिले में आयोग द्वारा अनेक स्थलों का स्थलीय निरीक्षण व संबंधित विषयों पर जांच कर दो साल बाद पांच खंडों में अपनी रिपोर्ट सौपी। इसमें प्रस्तावित जिलों के लिए उन जिलों की आवश्यकतानुसार अलग-अलग संस्तुतिया की गईँ। उसमें गाजीपुर को व्यावसायिक केंद्र बनाने के लिहाज से गाजीपुर मुख्यालय के पास गंगा नदी पर रेल तथा सड़क पुल का निर्माण, फल संरक्षण, कैनिंग इन्डस्ट्रीज, चर्म उद्योग, हैण्डलुम उद्योग, प्लास्टिक खिलौना उद्योग की स्थापना तथा कृषि के लिए सिंचाई संसाधन बढ़ाने की संस्तुति की गई। संस्तुति के आधार पर सड़क पुल का निर्माण तो हो गया लेकिन रेल पुल (जो ताड़ीघाट से गाजीपुर को जोड़ता) व अन्य संस्तुतियां (जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 1962 में पुर्वाचल के लोगों द्वारा बार-बार भेजे गए पत्र के बावजूद शीर्ष नेतृत्व की अनदेखी की शिकार है।