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वाराणसी

70 वां गणतंत्र दिवसः जिसने गरीब और मजलूमों के लिए खपा दिया सारा जीवन, उन रजनीकांत को मिला पद्म सम्मान

बनारस और पूर्वांचल के शिल्पियों, बुनकरों और भूमिहीन महिलाओं को समर्पित ये सम्मानः डॉ रजनीकांत

वाराणसीJan 26, 2019 / 03:26 pm

Ajay Chaturvedi

डॉ रजनीकांत

डॉ रजनीकांत

वाराणसी. भारतीय गणतंत्र दिवस का ये 70वां संस्करण काशी वासियों के लिए यादगार बन गया। शिक्षा और संस्कृति की राजधानी काशी की चार विभूतियों के नाम की घोषणा पद्न सम्मान के लिए हुई। खासबात यह कि इसमें शास्त्रीय संगीत से लेकर लोक गायकी के मुर्धन्य संगीतकार हैं तो बुनकरों, शिल्पियों, भूमिहीन महिलाओं और बच्चों की शिक्षा के साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार के क्षेत्र में पिछले 25 वर्षों से काम करने वाले भी हैं। साथ ही हैं खेल के मैदान पर देश का नाम रोशन करने वाली महिला खिलाड़ी भी हैं। एक साथ चार-चार विभूतियों को देश के श्रेष्ठ सम्मान में से एक पद्मश्री से नवाजा जाना काशी के लिए गौरव की बात रही। इन चार शख्सियतों में एक हैं डॉ रजनीकांत जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज के कमजोर तबके के उत्थान को समर्पित कर दिया। अब जब उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक के लिए चुना गया तो उनका कहना था, जिनके लिए काम किया उनका जीवन अगर संवर जाए तो ही इस मान और मेरे कार्य की सार्थकता है।
25 वर्ष से जुडे हैं काशी की थाती के संरक्षण में
बीते 25 वर्षों से बुनकरों, शिल्पियों, भूमिहीन महिलाओं और बच्चों की शिक्षा के साथ ही बौद्धिक संपदा अधिकार के क्षेत्र में काम कर रहे सारनाथ के मवइयां में रहने वाले डॉ. रजनीकांत मूल रूप से मिर्जापुर जिले के चुनार थाना के जलालपुरमाफी गांव के रहने वाले हैं। उन्होंने स्वयं सहायता समूह के माध्यम से शिल्पकारों को आर्थिक रूप से सबल बनाने में अहम भूमिका निभाई। साथ ही बनारस और आसपास के शिल्प उत्पादों को जीआई के तहत पेटेंट कराया। डॉ. रजनीकांत ने कहा कि यह पुरस्कार बनारस सहित पूर्वांचल के शिल्पियों, बुनकरों और भूमिहीन महिलाओं को समर्पित है। इस पुरस्कार ने समाज हित में अब और ज्यादा बेहतर करने की जिम्मेदारी बढ़ा दी है। डॉ. रजनीकांत ने पूर्वांचल के बुनकरी से जुड़े घरेलू उत्पादों को वैश्विक मंच दिलाने में अहम भूमिका निभाई। स्वयं सहायता समूहों की नींव डालने वालों में से रहे। अब तक नौ उत्पादों का जीआई पंजीयन कराया और सात उत्पाद पंजीयन की प्रक्रिया में हैं। 2017 में बौद्धिक संपदा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
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शिल्पियों और बुनकरों के जीवन में आए बदलाव तो ही मान सार्थकः डॉ रजनीकांत
पत्रिका से बात करते हुए डॉ रजनीकांत की खुशी का ठिकाना न रहा। खुशी से उनकी आंखें सजल हो उठी थीं। कहा मैने तो ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था। बस एक इच्छा थी कि काशी की थाती जिससे काशी की पहचान है, उसे संरक्षित कर सकूं। अपनी जन्मभूमि और कर्मभूमि के लिए कुछ कर सकूं। इसी उद्देश्य से पहले मां गंगा की सेवा करने के लिए महामना की बगिया में गया। ब़ॉटनी विभाग में गंगा कार्य योजना के अंतर्गत काम किया। पांच साल तक बीएचयू से जुड़ कर गंगा स्वच्छता अभियान में लगा रहा। उसके बाद महामना को प्रणाम कर, समाज सेवा में उतर आया। काशी के शिल्पियों, बुनकरो और भूमिहीन मजदूरों का जीवन संवारना ही जीवन का मकसद बन गया। निराश्रित बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जो़ड़ने में जुड़ गया। काफी हद तक सफता मिली। करीब 80 हजार बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ पाया। 20 लाख बुनकरों और शिल्पियों को बौद्धिक संपदा अधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज गर्व होता है कि इन्हें बौद्धिक संपदा अधिकार (जीआई) कानून का संरक्षण मिल सका है। अब इन सभी के जीवन में कुछ बदलाव आ जाए, इनका जीवन संवर जाए तो मानूंगा कि मेरा जीवन और यह सम्मान सार्थक हुआ।
रजनीकांत का बायडाटा

जन्म- 1960
जन्म स्थान-जलालपुरमाफी, चुनार जनपद मिर्ज़ापुर
पीएचडी- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय,
सोशल वर्क- 25 वर्ष से समाज सेवा के कार्य मे, बुनकरों, शिल्पिओ, भूमिहीन महिलाओ और बच्चों के शिक्षा विकास का कार्य, 9 जी आई पंजीकरण कराया और 7 उत्पाद जी आई की प्रकिया में शामिल है, बनारस और पूर्वांचल के शिल्पिओ, बुनकरो के लिए सकारात्मक योगदान।
वर्तमान में मवइया, सारनाथ में निवास। वाराणसी में विगत 34 वर्षों से प्रवास और कार्य।

2017 में देश के बौद्धिक संपदा पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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